Friday, December 31, 2010

यादें ............................बहुत सारी,,,,,,,,, अच्छी .........बुरी.........

नमस्कार................
यादें,अच्छी कुछ रेह जायें गी.......
यादें,बुरी कुछ चली जायें गी,
इस जाने वाले पुराने साल के साथ.............
और आने वाला नया साल २०११,लाये गा,अपने साथ बहुत सारी खुशीयों के पल,
प्यार, सदभाव ,विश्वास, एकता से भरपूर भविश्य।
आज जिसकी और सारा विश्व निगाहें गडाये बेठा है।
ज्यादा केहने,और ज्यादा सुनने से कुछ नही होगा,सिर्फ़ और सिर्फ़ अच्छा करने से
होगा।
आओ, सब मिल कर एक चित्त से , सच्चे भाव से प्राथना करें कि आने
वाला २०११ का नया साल सारे विश्व के लिये सुख.शान्ति का सन्देश ले कर
आये।
इसी निश्चय और सच्चे भाव के साथ,आने वाला २०११ का नया साल आप सब
को बहुत बहुत मुबारक हो।
आप सब की सब अच्छी मनोकामनायें पुरी हों, आप सब सुखी और सेहतमन्दं रहें।
एक बार फ़िर, शुभ-कामनाऐं आप सब को।


सब को मुबारक हो आने वाला,२०११ का साल,
चारों तरफ़ हों खुशियां और हों सब खुशहाल॥        अशोक "अकेला"

Monday, December 27, 2010

बुढ़ापे दा सरमाया

                                 

 सौगातैं

आइये मैरे साथ और पढिये,समझिये, और फ़िर सुनियें।
येह हैं  बुढ़ापे  की सौगाते जो हर इन्सान के आने वाले  बुढ़ापे के साथ
यह बुढ़ापे  का सरमाया बिल्कुल मुफ्त में मिलेगा॥


एक
गौडे चलदे नही,मौडे हिल्दे नही
अख्खौ दिस्दा नही,कन्नौ सुनिन्दा नही
नक्कौ सुगीन्दा नही॥
मत्था दर्द ऐ,पिन्डा सर्द ऐ
मुहँ च दन्द नही,खान दा आन्नद नही
कोइ रेहा चन्गा हाल नही,
सिर ते रेहा वाल नही॥
ना कोइ मौज ऐ,ना कोइ बहार ऐ
तौन्द वी हुण आ गइ बाहर ऐ॥
पिठ दा दर्द वी करदा हुण बेहाल ऐ
बै के उठना वी हुण जी दा जन्जाल ऐ॥
हुण ते बस सौणां वी इक फाँसी ऐ
सारी रात उठदी खाँसी ऐ॥

दो
नब्ज दी धडकन वी हुण कुझ देर बाद
मिलदी ऐ,
वान्ग सपरिँग हुण मून्डी वी हिल्दी ऐ॥
हुण तां अपने टुरण लई वी चाइदिये इक
लठियां,
ऐ वखरी ए गल,पान्वे सारे शरीर दे जौड़ा
विच दौडदा ए गठिया॥
हुण कादा किसे ते जौर ऐ,
दिल वी हो गया कमजोर ऐ॥
न रेहा कोइ आदर,ते न सत्कार ऐ
हुण ते लाठी समेत,अपना मँजा वी
बाहर ऐ॥
तीन
गोली खाने आँ, बै जाने आँ
असर मुकदा ए टै जाने आँ॥
हुण ताँ पयै न कितीयाँ होइंयाँ
पुल्लाँ वी बख्शवाने आँ,
डर दे मारे अपनी जनानी नू वीं
पैण जी पये बुलाने आँ॥
मर जानी यादाश्त दा वी हुण
होया बुरा हाल ए,
हर किसे नु राह जान्दे पये मनाने आँ
हद ते ताँ हो जान्दी ए,जद अपना घर छड
पढोसी दे घर वढ जाने आँ॥
जन्दो कोइ पुछ बेन्दा ए,बाबा जी की
हाल ऍ,
ऐ केढा जणा! अगौ साडा ए सवाल ए॥
                  चार
किसे नु हुण सीख देने आँ ते,
सब हस्दे नें,
इक दूजे नु वेख के पुच्छदे ने
ऍ बाबा जी केढी सदी च वस्दे नें॥
हर माँ बाप दी रूंह अपने बच्चैयां
दे सुख च वस्दी ए,
जिन्हा नू असाँ हसना सिखाया हुण
औ औलाद पई साडे ते हसदी ऍ॥
बस हुण ऍ आ गया बुढ़ापा  ए,
ते जल्दी मुक जाना स्यापा ए॥
 बुढ़ापा सुना के न मै तवाँनू डराया ए
न भरमाया ए,
पर ऐ जिन्दगी दा सच ए कि
बुढ़ापे  दा बस ए ही सरमाया ऐ॥
सो इक इक करके मौत दा इकठठा
हो गया ए सारा समान,
बस थोड़ी दूर रह गया ऍ श्मशान॥
हुण सारे इक वारी मिल के बोलो,
जय श्री राम,जय श्री राम.....॥

तो अब नीचे एक चट्का भी लगाये और सुन कर भी 
इस कड्वी सच्चाई का लुत्फ़ उठायें ॥
आज के लिये इतना काफ़ी है क्या?  अशोक"अकेला"




Saturday, December 25, 2010

यादों का सफर....................................................

बंदा हाज़िर  है ! अपनी यादों का खज़ाना लिए हुए आप के साथ बाटने को
भले ही आप राज़ी  हो या न हो ? मैंने  भी जीने के लिए किसी के साथ तो
बोलना है | और मेरे को यह  रास्ता बड़ी मुश्किल से मिला है | जिसका मैं
भरपूर इस्तेमाल करना चाहता हूँ और करूँगा | कृपया मान जाएँ न !
बस थोड़ी देर मेरे साथ भी ......................................................नही तो यह
दुआएं देना बंद करो !


" इस उम्र में भी देते है, जीने की दुआ
क्या मेरे गुनाहो की फैरिस्त इतनी लम्बी है॥"

तो फिर आयें चलते है मेरी यादो के सफर पर मेरे साथ ....................


अशोक सलूजा




            बचपन की अनकही यादैं
                         एक 

मुझ को पाला था,पोसा था, बडा प्यार
दिया था मेरी नानी ने,
मुझ को अपने कन्धों पे घुमाया था,
मेरे मामा ने अपनी जवानी में॥
न माँ,न मौसी , न भाई, न बहना, न नाना
थी मेरी नानी,तो बस था एक ही मामा सयाना ॥
पढ़ती थी मुझको भी मार,बचपन में
जिसकी उठती ही मीठी पीड़ अब भी पचपन में॥
पढ़ा था मेरा भी बचपन में,शरारतों से पाला
कभी कभी मुझ को था उन्होने मुसीबत में डाला॥
याद आती मुझ को मार मामा की,याद आती है
सब को नानी ,मुझको तब याद आती थी नाना की॥
कभी कभी थप्पढ़,कभी लातो की मार
छुपा रहता  था , उसमें भी कही मामा का प्यार॥

दो
मामा तो चाहता था, पडना कमज़ोर
मेरा बचपन था, कुछ ज्यादा ही मुहंज़ोर॥
बीच बचाव में जब छुड़ाने  आती थी नानी
तब कुछ ज्यादा ही कर जाता था मैं मनमानी॥
चार आठ दस आने का ज़माना था
सिनेमा देखने का जब कोई बहाना था,
तब लगाता था मस्का मैं अपनी नानी को
किसी तरह पूरी करा लेता था अपनी मनमानी को॥
कभी ऐसा भी हुआ, जो बात न मेरी नानी ने मानी
अपनी हाथ सफा़ई से उन की ज़ेब पर की मनमानी॥
पकडा गया तो हुई मेरी पिटाई भी,फिर कुछ 
न सुनी मामे ने मेरी सफाई भी॥

तीन
फिर भी अच्छे दिन थे वो आज से
खाया पिया खेले और पिटे पर ख़ास थे॥
बचपन से ही मैरा शौक बडा अज़ीब था
मैं सिनेमा और सिनेमा सगींत के करीब था॥
जासूसी नावल, फिल्मी मेग्जीन और अच्छी
किताबो का शौक भी बडा है,
मैने फिल्मफेयर, जेम्स हेडली चेइज़ और
मुन्शी प्रेम चन्द का गौदान भी पढ़ा है॥
शैरो शायरी का भी मुझे शौक है सुनता हूं
खुशी से जो सुनाये कोई अच्छा सा जौ़क है॥
कहीं पे न अटका, जो थौडा सा भटका
तो फिर आ गया अपनी सीधी राहों पे,
अब तो अच्छे कर्मो के लिये निगाह है
अपने खु़दा की निगाहौ पे॥
अब भी मेरे साथ है, मेरा दोस्त,मामा और मेरी नानी
मरते दम तक बुढापे में,अपने दोती दोतों,पोती पोतों को
सुनाउंगा यही खट्टी मीठी मैं अपनी कहानी ॥      अशौक सलूजा
१९ जुलाई २००९.








     

Friday, December 24, 2010

mera bachpan

तो यादों की शुरुआत  करते है .............................












 मेरा बचपन
           एक


वो बचपन का ज़माना,
था कितना मासूम
था कितना सुहाना॥
वो मुहं से सिटी बजाना
वो बिजली के खम्बे को
  पत्थर से खटखटाना
घर से तुझ को बुलाना
तुझ से पहले तेरे बापू का आना
और मेरा फुर से भाग जाना॥ था कितना मासूम.........
वो जामुन के पेडो पर चढ़ना चढ़ाना
मार के पत्थर वो जामुन गिराना
वो उपर से माली का आना
और हमारा गिरते पढते वहां से
सरपट भाग जाना॥था कितना मासूम............


                   दो
होगा वो किस्सा तुझे याद भी
वो आपस में शर्ते लगाना
शर्ते लगा के माया राम हलवाई
के लड्डू चूराना,और देखना
तेरी तरफ करके बहाना
चोरी का लड्डू तुझ को थमाना॥
था कितना मासूम था कितना सुहाना.............
आता है याद वो स्कूल से भाग जाना
भाग कर सिनेमा कि लाइन में खडे हो जाना
टिकट के लिये हाथ मे मोहर लगवाना
देख के पिक्चर वो हाथ पर से
थूक से मोहर मिटाना॥ था कितना मासूम..............
घर पहूचं थकने का बहाना बनाना
वो रोब से अपनी शर्ते मनवाना
वो नानी से मिन्नते करवाना
मिन्नते करा के फिर मान जाना
फिर नखरे से न न करके
खाने को खाना॥ था कितना मासूम...............

                   तीन
भूला नही हूं वो आज भी
स्कूल से रिपोर्ट बुक का लाना
कम मिले नम्बरों को रबड से मिटाना
और फिर अपने ही हाथौ से
नम्बरं बडाना और फिर बडी
शान से सबको दिखाना॥था कितना मासूम.......
क्या दिन थे वो भी
था रामलीला का ज़माना
देखना रात रोज़ ९ से १२
सिनेमा का शौ और था
कभी राम को बनवास कभी लंका
दहन का बहाना॥था कितना मासूम.............
वो हसंना हसाना,वो रूठना मनाना
वो गुस्से में गाली,प्यार में गले लगाना
वो नखरे दिखना,वो मिन्नते कराना
मिन्नते कराके फिर मान जाना॥ था कितना मासूम................


                         चार
न किसी ने पूछा न समझा न जाना
कब कैसे और कहां खो गया
मेरा बचपन सुहाना॥ था कितना मासूम..............
कितने याद करूं वो बचपन के दिन
कितना याद करूं वो वक्त सुहाना
न रहें वो बचपन के दोस्त और
न रहा वो वक्त पूराना॥ था कितना मासूम.................
अब तो साथ हैं कुछ यादे उसकी
कुछ बीता हुआ वो वक्त सुहाना
वक्त के साथ मेरा भी खो गया बचपन
अब तो हो गया मैं भी
बुडा और पुराना॥ था कितना मासूम...................
था कितना सुहाना वो बचपन का ज़माना॥....
यूं ही याद करता हूं कभी कभी
किस्सा अपने बचपन का,
करते करते हो गया आज
मैं भी पचपन का॥...................१९९९.  हाँ हाँ ....ये में ही हूँ .......................................



स्वागत है आप सब का .......खुशाम्दीद.

आखिर भटकते भटकते पहुँच ही गया आप के पास ये बड़ी खुशनसीबी है मेरी की मेने आप को पा लिया |मेरे पास आप को देने को कुछ भी नहीं कियोंकि में तो अनपड़ और इस खेल में बिलकुल अनाड़ी हूँ |सो मेरे पास खोने को भी कुछ नहीं |बस आप अपने सामान का ध्यान रखें | में आप से कुछ लूँगा ,कुछ प्यार से ,कुछ तकरार से .और कुछ दरकार से .....आज के लिए बस इतनी ही मुलाकात ......आप सब खुश रहें


अशोक सलूजा 
प्यार के दो मीठे बोल सुनने का
मुझे सरूर है ,
नही कुछ और जरूरत मेरी इसका
मुझे गरूर है
शर्त इतनी ,बस प्यार से लो जान मेरी
मुझे मंजूर है |
                                   ये मैं हूँ |
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