Friday, February 25, 2011

अशआर ... जो मेरे दिल को छू गये!













आइना मुहं पर बुरा और भला कहता है
सच येह हे साफ जो होता हे सफा़ कहता हें॥ "दाग़"

तेरी इस बेवाफाई पर फिद़ा होती हे जाऩ मेरी
खु़दा जाने अगर तुझ में वफा़ होती तो क्या होता॥ "ज़फर"

 आप को भुलाने की कोशिश भी
 याद करने का इक बहाना है॥ "अज्ञात "

अगर मर्ज हो, दवा करें कोई
मरनें वालें का क्या करे कोई॥ "दाग़"

खुशी भी याद आती है
तो आँसू बन के आती है॥ "साहिर"


अब आप मेरी पसंद की एक गज़ल ,जो मरहूम 
परवेज मेहदी साहिब की खुबसूरत और दर्द भरी आवाज़ मैं है |
सुनिए !और खो जाइये किसी की यादों में |
गज़ल के बोल हैं ...फ़ना के बाद भी 
,मुझ को सता रहा है कोई...








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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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