Saturday, March 12, 2011

इस टाइटल को क्या नाम दूँ ....? (२ )








अपनी रोज़ी-रोटी के चक्कर, ओर कुछ निजी कारणों से ऐसे दोस्तों का दायरा ही नही बना सका ,
जो इस उम्र मैं मेरा अकेलापन बांटते | जो एक था बचपन का! वो भी करीब २६ साल पेहले विदा 
ले गया इस दुनिया से !अब हम जैसे भावुको का हर एक से दोस्ताना भी तो मुमकिन नही |सब के
पास दिमाग भी तो होता है ...
१९४२ मैं पैदा हुआ ,बड़ी मुश्किल से दसवीं क्लास पास की ...१९६१ मैं रोज़ी-रोटी के फेर मैं पड़ गया ...
१९६९ मैं शादी की ,तीन बच्चे हुए,दो बेटियां ओर एक बेटा ,अपने रेहने के लिए एक छोटा सा आशियाना 
बनाया ,तीनों बच्चों की शादी की |बेटियां अपने घर! एक भारत मैं ,एक कनाडा मैं ,बेटा मेरे साथ या यू 
कहें मैं बेटे के साथ |

काम धाम बेटे को सोंप २००७ दिसम्बर में , मैं अपने बनवास जीवन मैं प्रवेश कर गया |
अब रह गया मैं अकेला अपने मरीज दिल के साथ जो मुझे ४६ साल के काम के बदले इनाम के
रूप मैं मिला |अब तीनों बच्चे अपनी-अपनी ग्रहस्थी को सम्भाले जिन्दगी की दौड़ मैं मसरूफ हैं |
श्रीमती जी भी जिन्दगी की भागम-भाग से अलग हो कर अपना वक्त टी.वी. सीरिअल्स ओर 
किटी-पार्टीमैं खर्च करने लगी हैं | तो फिर मैं अपना अकेलापन दूर करने के लिए इधर-उधर ,
घूमता-घामता यहाँ आ निकला |अब अकेलापन भी नही अखरता ,न किसी से शिकवा न किसी से 
शिकायत, अपने अपने मन चाहे काम मैं खाली रहते हुए भी व्यस्त |

अब मुझे आप के साथ की जरूरत है ,एक-एक टिप देते रहिये ,ताकि कुछ नया सीख कर 
अपने आप को और ज्यादा मसरूफ कर सकूं | ओर अकेलेपन को कुछ नया सीखने मैं लगा दूँ |
जो भी अभी तक लिखा वो सब मेरे अपने एहसास थे ! जितनी सोच ,समझ का दायरा उतना 
लिखने का ,अब जितना-जितना आप सब से सीखने को मिलेगा ,अपनी समझ और उम्र के अनुसार 
सीखने की पूरी कोशिश रहेगी |मैंने तो नदी समझ छलांग लगाई ओर ये निकला समंदर जिसकी गहराई
का कोई अंत नही |

अंत मैं :- शोहरत ओर इज्ज़त तो मांगे से नही अपने कामों से मिलती है| 
उसके लिए कर्म जरूरी है, ये मैं अपनी उम्र के हिसाब से अच्छी तरह से जानता हूँ | 
अब रहा प्यार ओर आशीर्वाद तो वो मैं आप सब को दूँगा क्यों की मैं बड़ा हूँ ,उस को देने
का मेरा हक है ,वो बना रेहने दें| तोहमत ,लानत ,चुगली ओर पर-निंदा इनसे दुरी बनाये  
रखने मैं भी, मुझे आप सब की बहुत जरूरत होगी....
आप सब बहुत खुश और स्वस्थ जीवन जीये !
शुभकामनाएँ एवं आशीर्वाद 
आप का अपना (जो चाहे पुकारे चाचू,ताऊ,पापा ,दादू,नानू या फिर दोस्त ) 
अशोक "अकेला" 






9 comments:

  1. अशोक सलूजाSaturday, March 12, 2011 1:38:00 PM

    मनप्रीत :- मन को मोह लिया तुने मेरी बच्ची |बस हम बड़े अपने बच्चों से इतना ही चाहते हैं |थोडा प्यार ,थोडा सहयोग ,थोडा समय |बाकी
    आप बच्चों की सेहत और खूब खुशी |मुझे तेरे सहयोग की जरूरत होगी तो तुम से जरूर कहूँगा |
    अगर बुरा लगे :- तुम की जगह (आप) लगा लेना | आशीर्वाद!

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  2. सलूजा साहब,
    बेहतरीन चयन है यह आपका समय गुजारने के लिए ! अगर इंसान की आँखे और स्वास्थ्य बुढापे में अनुमति दे रहा हो तो मैं समझता हूँ कि एकाकीपन को दूर करने का इससे बेहतर उपाय तो कोई है ही नहीं और तब खासकर जब आप दिल्ली जैसे शहरों में रह रहे हो ! आप अपने Rich अनुभवों से लेखन के माध्यम से युवा पीढी का मार्ग दर्शन करें, और खुद भी सुखी रहे , मेरी यही दुआ है !

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  3. गोदियाल जी , होंसला देने का शुक्रिया !
    आप जैसे लेखक के लिए मैं, कुछ भी केह पाने में
    अपने को असमर्थ पाता हूँ !मेने क्या लिखना है ?पर आप के लेख पड़ कर समय बिताऊंगा |उम्र मैं बड़ा होने के कारण आप को दुआ तो दे सकता हूँ
    खुश रहें और स्वस्थ रहें |
    अशोक सलूजा !

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  4. मित्र!
    हम सब यहां एक दूसरे का साथ ही देने तो आए हैं।
    हां।

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  5. आ.चाचू,
    आपके पास जीवन का अच्छा अनुभव है .जीवन के चार आश्रम में आप भी वानप्रस्थ से सन्यास की ओर अग्रसर है.ऐसे में जितना अनुभव आप बच्चों में बाटेंगे बच्चों का भला होगा और आपको भी तृप्ति और शान्ति मिलेगी.आपने अपने मन की बातें हमसे पोस्टों के माध्यम से की बहुत अच्छा लगा.आप भी जो पोस्ट अच्छी लगें उनपर जाकर अपने विचार रखें और बच्चों का होंसला बढ़ाएं.सार्थक बातें करना ,सार्थक बातों से सीखना सैदेव निर्मल आनन्द प्रदान करता है
    आपकी दुआ और आपके आशीर्वाद का आकांक्षी
    आपका भतिजू

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  6. अशोक जी दिल को छू गई आपकी बात।
    मनप्रीत जी ने बहुत सही कहा, यहां कोई आपके बेटे की तरह है कोई बेटी की तरह। हर कोई आपका अपना है। इसलिए अकेलेपन का विचार दिमाग से निकाल कर अपने अनुभवों का लाभ हमें दें।
    आपको शुभकामनाएं और आपके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में ।
    http://www.atulshrivastavaa.blogspot.com/

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  7. मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर
    लोग मिलते गए और कारवां बनता गया '
    अब आपका परिवार कितना बढ़ गया है देखिये तो.... हा हा हा
    मुस्कराइए.अनुभवों के खजाने को खाली कर दीजिए,लोगों को फायदा होगा.
    जीवन में सफलताए कैसे पाई?
    धूर्त,नीच लोगो से सामना हुआ तब आपने कैसे हेंडल/टेकल किया?
    कई बाते हैं जिन्हें आप यहाँ शेअर कीजिये. और..........परिवार के सब मेम्बर्स के फोटो पोस्ट कीजिएगा. और.........स्माइल प्लीज़ हा हा

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  8. १९६१ मैं(मेरा जन्म १९६०)रोज़ी-रोटी के फेर मैं पड़ गया ......
    मैं थोड़ी देर से पहुंची बड़े भाई.... अकेलापन हर किसी के पास है .... शायद इसलिए blog-fb का आविष्कार हुआ .....

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    Replies
    1. भाई के यहाँ ...बहन का खुले दिल से स्वागत है !
      आशीर्वाद !

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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