Saturday, July 09, 2011

जिन्हें नाज़ है हिंद पर.....उनको लाओ ...


ये गल्लियाँ ये कूंचे ...ज़रा उनको दिखाओ |
अशोक'अकेला'
...१९५७ की ये पुकार ...साहिर साहेब के शब्दों को रफ़ी साहेब ने
अपनी दर्द से भीगी आवाज मैं सचिन देव बर्मन के संगीत मैं तब के
भारत के नेताओं से ये अपील की थी ...
जो आज २०११ मैं भी वोही अपील उन सब की रूहे जन्नत से फिर दोहरा
रही हैं ...
शायद कल से भी ज्यादा आज इसकी जरूरत सब को महसूस हो रही है ...कल
तक  तो शायद एक-आध  ऐसा  एरिया  ही हुआ करता था ,जिसका नाम लेने से ही
लोग-बाग घबराते थे ..क्यों कि वो  नाम ...बदनाम नाम की और इशारा करता था |
पर आज ... हर पाश कौलनी ,हर छोटी -बड़ी  गली,मौहल्ला ,बाजार ,पार्क ,होटल ,
हर सड़क ,हर चौराहे ,मौल .... कोई गिनती नही ...कोई जगह नही बची....

न किसी माँ ,बहन,बेटी की इज्जत महफूज है और न किसी इंसान की जिंदगी ...
पर सवाल ये भी है ...? कि ये अपील हम सुना किस को रहें हैं ,वो नेता तो गए !
जो शायद सुन भी लेते थे ...और आज तो सब से ज्यादा खतरा ही आजकल के ...

सफ़ेद पोश ,नेताओं और अपने आस-पास मंडरा रहे अपनों से ही है .....?

चलिए छोडिये ...ये बड़ी बहस का मुद्दा है ...ये कहानी फिर सही ...पर
क्या ये झूठ है ? खुद सुनिये,सोचिये और फैसला कीजिये ...



17 comments:

  1. बहुत बेहतर गीत है, बोल तो कमाल के हैं

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  2. १९५७ की पुकार आज के दौर में कोई मान ले मुश्किल लगता है

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  3. sach kaha ... aaj bhi dil yahi kah raha hai jinhen naaj hai hind per wo kahan hain

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  4. कल जो था
    वो आज नहीं रहा
    और ये आज
    शायद कल नहीं रहेगा
    काल का पहिया , घूमे रे भैया .....

    बहुत ही संकल्प से लिखा गया आलेख है
    सन्देश, जन-मानस तक पहुंचे
    यही कामना करता हूँ
    "daanish"098722-11411.

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  5. मार्मिक और हृदयस्पर्शी गीत.
    दिल चीर दे ऐसी आवाज है.
    बहुत बहुत आभार गीत सुनवाने के लिए.

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  6. सधे हुए ..प्रभावित करते बोल...हृदयस्पर्शी गीत

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  7. कैसे भूल जाऊं तेरी यादो को, जिन्हें याद करने से तू याद आये...
    वाह इसे ट्वीट करने की इजाजत चाहूँगा..

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  8. बहुत ही लाजवाब गीत ही ये ... मेरे पास ये गीत और साहिर जी की एक किताब भी है जिसमें ये गीत है .... और आज के दौर में ये ज्यादा सार्थक लगता है ...

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  9. कहाँ है ? ढूंढें से भी नहीं मिलते जी .

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  10. ये ब्रह्मा की संतान ,भारत के बेटे ,
    मुकद्दर के ये खोट ,किस्मत के हेटे,
    जो रहतें हैं नफरत के काँटों पर लेते .....
    जिन्हें नाज़ था हिंद पर वो कहाँ है ....
    वह भारत के गुण गाने वाले कहाँ हैं .
    कक्षा ९ का विद्यार्थी था उस दौर में मुस्लिम इंटर -कोलिज बुलंद शहर ,एक एकांकी नाटक रफ़ी साहब के इस गीत के पैरोडी रची गई गई थी ,अब तक याद ...
    प्यासा का तो जवाब ही नहीं ...
    और रफ़ी साहब वही हैं हमारी सेक्यल्र धरोहर .मन तडपत हरी दर्शन को आज के गवैया ....मोरे श्याम ...के गायक .अच्छा गीत सुनवाया अशोक भाई .शुक्रिया .नोस्टाल्जिया है इस गीत से जुडी यादों के धुंधलके रह गएँ हैं अब .अवशेष और फोसिल्स भारत के गुण -ग्राहकों के .

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  11. शानदार गीत...शेयर करने हेतु आभार.
    _______________
    शब्द-शिखर / विश्व जनसंख्या दिवस : बेटियों की टूटती 'आस्था'

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  12. अब तो उम्मीद इसी गीत में ही रह गयी है।

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  13. लाजवाब, ये गीत तो पहले भी आशा था, आज भी है,
    आभार,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  14. आभार भाई साहब ."आज सजन मोहे अंग लगालो जनम सफल हो जाए ,हृदय की पीड़ा ,देह की अग्नी सब शीतल हो जाए "सुनवा दीजिए .शुक्रिया अग्रिम .

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  15. आपके विचारों से सहमत हूँ. यह मेरा भी पसंदीदा गीत है.


    धरोहर

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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