Thursday, March 31, 2011

कैसी है ये ब्लाग की दुनिया ...क्या यहाँ भी चापलूसी करनी पडेगी ?












ZEAL के लेख प्रशंसा (प्रोत्साहन) के सन्दर्भ मैं |

क्या टिप्पणी करना इतना ही जरूरी है ?
हाँ ...जरूरी है |
प्रशंसा इन्सान की फितरत है,और हक भी 
पर सच्ची प्रशंसा ,न कि चापलूसी ,अच्छे के लिए प्रशंसा हर हाल 
मैं मिलनी चाहिए ताकि और अच्छा करने के लिए उत्साह-वर्धन  हो 
उस अच्छे किये से समाज का भला हो |

पर हाँ ...जरूरी है सिर्फ उनके लिए जो विषय के अनुरूप उसे समझ कर , अच्छा जानकर 
उत्साहवर्धन करें ,और अच्छा करने के लिए कुछ सुधार के साथ प्रेरित करें | नकि सिर्फ टीका-टिप्पणी
ताना-कशी,या मजाक उड़ाने के लिए | जो उस विषय के बारे में कुछ नही जानते ,कुछ केह नही सकते 
वो उस पोस्ट से अपना ज्ञान बड़ाने कि कोशिश करें न कि टिप्पणी संख्या बड़ाने मैं अपना योगदान करें |
जैसे:- कि मैं (माफ करना ) या मेरे जैसे अगर हों तो ....

ऐसे ही टिप्पणी पाने वाले भी ...
टिप्पणी का इंतज़ार करने की बजाय ,और संख्या गिनने के स्थान पर सिर्फ 
अपने अच्छे लेखन पर ध्यान दें,अच्छे लेख पर पेहली टिप्पणी उनका अपना दिल देगा |
जो सबसे ज्यादा उत्साहवर्धक होगी |
टिप्पणी पाने के लिए टिप्पणी न करें ,अनुसरण कराने के लिए अनुसरण न करें |
मनचाह न होने पर नाराज न हों ,मनचाह हो जाने पर खुशी जरूर बांटे...अच्छा लगेगा !
करके देखिये !

मेरे पास अपने समझने के लिए मेरे एहसास बहुत हैं ,पर समझाने के लिए शब्द बहुत कम !
बोलने से संकोच और लिखने मैं असमर्थ .....

हाँ आखिर में एक और बात ,सिर्फ अपनी जानकारी के लिए :-अगर मेरे जैसे की टिप्पणी 
या किसी का अनुसरण करने से भी किसी को ,किसी तरह से ,इस इन्टरनेट की दुनियां 
में कुछ फायदा होता है तो कृपया मुझे ज्ञान कराए और लाभ सिर्फ आप ही उठायें |
जहां चाहें मेरा अंगूठा लगवायें ...ये बिल्कुल मजाक नही ...मेरे एहसास ही ऐसे हैं ...
ये अब ऐसे ही बहते जायेगें सो बस........!

नोट:- ये लेख किसी का भी दिल दुखाने की मंशा से नही लिखा गया |
सारे लिखे विचार मेरे अपने थे जो ZEAL के लेख से पेहले ही लिखे थे |
बस संयोग से उनका लेख पेहले आ गया | फिर भी छोटा मुहँ और.......
मैं माफ़ी का तलबगार हूँ! 
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ! अशोक"अकेला" 




Monday, March 28, 2011

जन्म दिन पर मिले आप से... स्नेह के लिए ... आप सब को आशीर्वाद !

आप सब को आशीर्वाद !

खुश रहो ,खुशहाल रहो ,
जीवन की हर खुशी से 
माला-मॉल रहो ...

भले ही मैं  अब उम्र में 
बड़ा हूँ ,
अपनी जवां उमंगो के 
बल पर खड़ा हूँ 
न छल,न कपट 
मन का मैं सच्चा हूँ 
इस लिए मैं अपने 
दिल से अब भी बच्चा हूँ ||

धन्यवाद ! एहसान के लिए होता है !
आप के स्नेह के लिए ...
सब को बहुत-बहुत आशीर्वाद ||

आप का अपना ....
अशोक"अकेला"



Saturday, March 26, 2011

पतझड़ में ...टूटा पत्ता !

बनवास खत्म हो चुका है !पार्क में जाना शुरू कर दिया है| 
                                      वहाँ आजकल पेडों से पतझड में पत्ते टूट कर गिर रहें हैं|
उन्हें देख कर कुछ इस तरह से एहसास हुआ:-  

पतझड़ में पत्ता टूटा,
अब शाख से नाता छुटा |
जब तक डाली पे लटका था, 
न जान को कोई खटका था |
अब कौन करें रखवाली, 
रूठ गया बगिया का माली |
क्यों सूख गिरा नीचे मैं , 
मैं वहाँ किसी का क्या लेता था |
धूप में छांव ,गर्मी में, ठंडी हवा, 
मैं हर चलते राहगीर को देता था |

अब किस पर छांव बनाऊंगा ,
अब पैरों में रोंदा जाऊंगा | 
अब झाड़ू से बुहारा जाऊंगा, 
फिर मिटटी में मिल जाऊंगा | 
अब पानी में गल जाऊंगा , 
आग लगी जल जाऊंगा |
जिस मिटटी में जन्मा था, 
उसी में फिर दब जाऊंगा |
जब बरसे गा मुझ पे पानी, 
लौट के फिर आ जाऊंगा |

यही है जीवन-मरण का नाता ,
रचे जो इसको ,उसको केहते 
भाग्य-विधाता ||

अशोक"अकेला"
  

ये मेरे हाथ का खींचा चित्र जो आप उपर देख 
रहे हैं ! ये उसी पार्क के एक कोने का है |



Thursday, March 24, 2011

जिन्दगी में कामयाबी की ऊँचाइयों को छूने के ...तीन राज ?...









१. अपने बजुर्गो के सिद्धांतों पर विश्वास कर के आगे बडो |

२. समय-समय पर नई पीढी   के नौजवानों की, सीखी नई तकनीक को, 
   उन्हें आजमाने का मौका दो |

३. अपने साथ काम करने वालो के दुःख-दर्द का ध्यान रख उनका प्यार और समर्थन 
   हासिल करो |

ये हैं वो जिन्दगी की ऊँचाइयों को छूने के तीन मूल-मन्त्र !

ओर ये मन्त्र हैं !आज की नौजवान पीढी  को एक महान और कामयाब 
उद्योग-पति की तरफ से ! जिनका नाम है, श्री रतन'टाटा"जी |
इन्ही तीन सिद्धांतों पर टिका है रतन टाटा जी की कामयाबी का राज !

अपनी सफलता का ये राज खुद उन्होंने खोला ,और नई पीढी   को ये संदेश दिया |
मौका था -आल इण्डिया मेनेजमेन्ट एसोसिएशन की तरफ से लाइफ टाइम 
अचीवमेंट सम्मान प्राप्त करने का|

ये सम्मान २२ मार्च ,मंगलवार २०११ को श्री रतन टाटा जी को ,प्रधानमंत्री के 
सलाहकार श्री सेम पित्रोदा और एस बी आई के अध्यश श्री ओ पी भट्ट के 
हाथो दिया गया |

२३ मार्च,बुधवार २०११ के हिंदुस्तान पेपर की ये खबर थी |
बिजनेस  पेज पर ये छोटे से कालम की खबर मुझे नौजवान पीढी के लिए 
बड़ी प्रेरणा-दायक लगी | इस लिए मेने ये आप की नजर कर दी | 

Tuesday, March 22, 2011

हिंदी अखबार "हिन्दुस्तान" की...हेड-लाइन...?











(इस होली किसी बजुर्ग को हंसाइये !)
तो इस होली आप किस बजुर्ग को 
खुश कर हें ?ये बात आप से इस लिए 
पूछी जा रही है कि क्योकि जब आप 
गुलाल लिए ,दूसरे के गाल लाल कर 
रहें होंगे उसी वक्त देश भर मैं ७५ फीसदी 
बजुर्ग किसी अपने के हाथों के स्पर्श को 
तरस रहें होंगें ...वो एहसास तो उन्हें उन्ही 
हाथों से मिल सकता है | जिसकी कभी उन्होंने 
ऊँगली थाम के चलना सिखाया ,पर फिर भी 
कुछ देर के लिए ही सही आप उनकी टीस जरूर 
कम कर सकेंगें .....
ये शुक्रवार ,१८ मार्च ,२०११ के हिंदी पेपर हिंदुस्तान,नई दिल्ली  
के फ्रंट पेज पे छपने वाली पेहली लाइन थी |
और ये अपने आप मैं बहुत कुछ केह रही थी 
आज की नौजवान नस्ल को ...बानगी देखिये ...
३५% बजुर्ग हैं...! अपनी सम्पति के मालिक !... 

इसके बावजूद सहते है अपमान,बेरुखी,ओर अपनों 
से परायापन और जिन के पास अपना कहने को
कुछ नही बचा, वो क्या क्या सहते ...........?

तो कम से कम इस बुजर्ग की और से आप सब को बधाई !
मैंने आप सब का इस होली पे, रंगों से भरा हाथ, अपने गालो पे 
प्यार और अपनेपन से भरपूर एहसास के साथ स्पर्श करते 
महसूस किया |
ये प्यार ,अपनापन और एहसास का  कर्तव्य अपने किसी भी 
बुजर्ग को कराने पर, जो मुस्कान से भरपूर संतुष्टि उनके चेहरे पर 
देखने को मिलती है उससे आपको अपने बचपन की खिलखिलाहट
का एहसास होगा |इसके लिए आप धन्यवाद के नही ,अपना कर्तव्य 
निभाने पर बधाई के पात्र हैं |
मेरा यकीन कीजिये ! अपने बजुर्गो के चेहरे पर मुस्कान देखकर 
आप को उससे कई गुना ज्यादा खुशी हासिल होगी जितनी आप ने 
बांटी ! इसको एहसान नही ,अपना कर्तव्य समझ कर करें |
करके देखिये ! आप को सकूं मिलेगा ........
हमेशा खुश और तंदुरुस्त रहिये |--अशोक"अकेला" 



Saturday, March 19, 2011

बुरा न मानो ....होली है....





होली में ,प्यार के रंगों पे 
न कोई पाबन्दी है 
न शायर हूँ ,न ये शायरी है 
बस होली पे, ये तुकबंदी है ||

आज चारों और मचा इक शोर है 
यहाँ के ब्लागेर्स मैं बड़ा जोर है 
सलाह देते हैं अपने ब्लाग पे आने की 
न पहुंचे ,खबर लगती है ,बुरा मान जाने की  
क्यों हुआ नाराज़ ये सबसे 
कुछ कहा न जाये  हमसे 
आ गये हम जिस जहां से निकल के 
आते रपट गये ,गिर गये यहाँ  फिसल के ||

यहाँ भी तो मचा इक शोर है 
टिप्पणी की चर्चा पे बड़ा जोर है 
गुरु भाई अपने गीत मैं करते शिकायत 
न करते किसी पे भी कोई रियायत  
एक और हमारे मैं ऊँची सी हस्ती है 
जिसके हर लेख मैं मिर्ची सी बस्ती है 

बात हो गर सच्ची ,तो वो फिर लगती है || 

चुपके से ,पीछे कोई आता है 
सब की टांग,खींच ले जाता है 
न चेहरा अपना दिखलाता है 
बस राम-राम कर जाता है 
महा-पुरष यहाँ ऐसे है 
जो शब्दों का जाल बनाते है 
अपने नजरिये से फिर ,पाठकों को 
हकीकत की दुनिया से 
सपनों की सैर कराते है ||

लगता ,कुछ रह गया जो जरूरी है 
ओह!यहाँ टिप्पणी बड़ी जरूरी है 
हाय!ये कैसी मजबूरी है 
हम को मिले क्यों अधूरी 
क्यों उसको मिलती पूरी है ||

सब के उपर गुरु-महाराज पाबला जी 
हम सब को बना के रखा बावला जी 
मेरे लेखो का स्वाद चखिए 
कृपया दुरी से स्नेह बनाये रखिये  ||

न करना शिकायत कोई मुझ से 
भेजा अपने पास नही ,इक दिल को बचा के रखा है 
पर करे शिकायत क्यों कर मुझ से 
ये तो पहले ही मेने 
सब को बता के रखा है ||

बस:..सर मेरा चकरा गया 
लगता...भांग का नशा छा गया  
अब हो गई  जरूरी 
नींद की झोली है ...बुरा न मानो होली है ...
भाई होली है ...भाई होली है ...
होली मुबारक ||
-अशोक"अकेला"
  
होली की आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएँ:-
सदा खुश और स्वस्थ रहें | अशोक सलूजा !


Wednesday, March 16, 2011

मज़बूरी मैं.....बनवास


जब से बुडापे ने रंग जमाया है 
हमारा जीना मुश्किल मैं आया है 
हर साल लग जाती है पाबन्दी  
घर की चार दीवारी मैं किलेबंदी  
कटती है पार्कों मैं अप्रेल से नवम्बर
दिसम्बर से मार्च तक  घर के अंदर 
ये महीने है सर्दियों के पाले 
पड़ जाते है हमें  जान के लाले
अब क्या करें मज़बूरी है 
डाक्टर की जी-हजूरी है 
सर्दी से बचना हमारा जरूरी है 
सुबह की धुंध से बचना 
और सूर्य दर्शन जरूरी है||


बचपन से ही पड़ गयी पीनी दुखों की हाला   
माँ को देखा नही नानी ने मुझ को पाला 
फिर बन गया दिल का मरीज भी 
बड़ी मुश्किल से दिल  को संभाला  
बस अब तो लेपटॉप का सहारा है 
बस यही इस दुनिया मैं अब हमारा है 
हमें भी अब यही सब से प्यारा है 
ये न होता तो क्या हो गया  होता 
बस! जीना हमारा दुश्वार हो गया होता |
अब बनवास भी हमारा घटता जा रहा है 
मार्च का महीना जो कटता जा रहा है||

-अशोक"अकेला" 




Sunday, March 13, 2011

बेबसी इन्सान की ....कहर कुदरत का ...


इन्सान की बेबसी ,कुदरत का कहर 
एक तरफ हे जलजला ,एक तरफ सुनामी की लहर 
कांप उठी धरती सारी 
बिलख उठा तेरा इन्सान, 
देख पड़ा कहर कुदरत का 
इस नए युग मैं फसा जापान |
जुबां हो गई गूंगी 
आँखे पत्थरा गई 
धडकने रुक सी गई, 
जिन्दगी हो गई बेनामी 
ऐसे उठे जलजले,चली जापान मैं सुनामी 
देख दुनिया थर्रा गई |

क्या इन्सान का हाल हो गया 
मुहँ खोल जब अपना 
समंदर भी विकराल हो गया, 
शांत, धीर और गम्भीर समंदर 
छुपा के रक्खी थी, कितनी पीड अपने अंदर ||
ये क्या अब तुने ठानी है 
कहर बरपा रही क्यों जापान में  
जो सोनामी है |
इतिहास मैं दर्ज हो गई अब ये कहानी 
बरबादी की लिख रही है ,जो ये सोनामी |

ऐ ईश्वर हमारे, ऐ सब के खुदा 
तू सुन ले ,हम सब की सदा 
बख्श दे अब हम सब के गुनाह 
अब इस  कहर से हम को बचा
बहुत मिल चुकी अब हम को सजा |
ये तेरी है धरती 
ये तेरा आसमां 
हम सब तेरे ही बंदे,,
ये सारा तेरा जहां 
हम बनाये इन्सान तेरे है 
धरती पे रह रहे 
हम मेहमान तेरे हैं || 


अशोक"अकेला"




Saturday, March 12, 2011

इस टाइटल को क्या नाम दूँ ....? (२ )








अपनी रोज़ी-रोटी के चक्कर, ओर कुछ निजी कारणों से ऐसे दोस्तों का दायरा ही नही बना सका ,
जो इस उम्र मैं मेरा अकेलापन बांटते | जो एक था बचपन का! वो भी करीब २६ साल पेहले विदा 
ले गया इस दुनिया से !अब हम जैसे भावुको का हर एक से दोस्ताना भी तो मुमकिन नही |सब के
पास दिमाग भी तो होता है ...
१९४२ मैं पैदा हुआ ,बड़ी मुश्किल से दसवीं क्लास पास की ...१९६१ मैं रोज़ी-रोटी के फेर मैं पड़ गया ...
१९६९ मैं शादी की ,तीन बच्चे हुए,दो बेटियां ओर एक बेटा ,अपने रेहने के लिए एक छोटा सा आशियाना 
बनाया ,तीनों बच्चों की शादी की |बेटियां अपने घर! एक भारत मैं ,एक कनाडा मैं ,बेटा मेरे साथ या यू 
कहें मैं बेटे के साथ |

काम धाम बेटे को सोंप २००७ दिसम्बर में , मैं अपने बनवास जीवन मैं प्रवेश कर गया |
अब रह गया मैं अकेला अपने मरीज दिल के साथ जो मुझे ४६ साल के काम के बदले इनाम के
रूप मैं मिला |अब तीनों बच्चे अपनी-अपनी ग्रहस्थी को सम्भाले जिन्दगी की दौड़ मैं मसरूफ हैं |
श्रीमती जी भी जिन्दगी की भागम-भाग से अलग हो कर अपना वक्त टी.वी. सीरिअल्स ओर 
किटी-पार्टीमैं खर्च करने लगी हैं | तो फिर मैं अपना अकेलापन दूर करने के लिए इधर-उधर ,
घूमता-घामता यहाँ आ निकला |अब अकेलापन भी नही अखरता ,न किसी से शिकवा न किसी से 
शिकायत, अपने अपने मन चाहे काम मैं खाली रहते हुए भी व्यस्त |

अब मुझे आप के साथ की जरूरत है ,एक-एक टिप देते रहिये ,ताकि कुछ नया सीख कर 
अपने आप को और ज्यादा मसरूफ कर सकूं | ओर अकेलेपन को कुछ नया सीखने मैं लगा दूँ |
जो भी अभी तक लिखा वो सब मेरे अपने एहसास थे ! जितनी सोच ,समझ का दायरा उतना 
लिखने का ,अब जितना-जितना आप सब से सीखने को मिलेगा ,अपनी समझ और उम्र के अनुसार 
सीखने की पूरी कोशिश रहेगी |मैंने तो नदी समझ छलांग लगाई ओर ये निकला समंदर जिसकी गहराई
का कोई अंत नही |

अंत मैं :- शोहरत ओर इज्ज़त तो मांगे से नही अपने कामों से मिलती है| 
उसके लिए कर्म जरूरी है, ये मैं अपनी उम्र के हिसाब से अच्छी तरह से जानता हूँ | 
अब रहा प्यार ओर आशीर्वाद तो वो मैं आप सब को दूँगा क्यों की मैं बड़ा हूँ ,उस को देने
का मेरा हक है ,वो बना रेहने दें| तोहमत ,लानत ,चुगली ओर पर-निंदा इनसे दुरी बनाये  
रखने मैं भी, मुझे आप सब की बहुत जरूरत होगी....
आप सब बहुत खुश और स्वस्थ जीवन जीये !
शुभकामनाएँ एवं आशीर्वाद 
आप का अपना (जो चाहे पुकारे चाचू,ताऊ,पापा ,दादू,नानू या फिर दोस्त ) 
अशोक "अकेला" 






Friday, March 11, 2011

इस टाइटल को क्या नाम दूँ ....? (१)














मैं अशोक सलूजा अपने जीवन बसंत के ७० वें वर्ष मैं प्रवेश करने जा रहा हूँ | सो इस पुरानी उम्र वाले 
अपने बजुर्ग से अपनी इस नई ब्लाग कि दुनियां मैं कोई तकनीकी ज्ञानं कि उम्मीद न करना | मैं तो पेहले ही 
स्पष्ट रूप से मान चुका हूँ ,कि मैं तो आप के ब्लॉग की नगरी मैं भूले-भटके आ गया |बगैर कुछ सीखे-सिखाए 
सिर्फ ओर सिर्फ समय बिताने के लिये ,अपना अकेलापन मिटाने के लिए ,बिना इसकी क.ख. सीखे |

Thursday, March 10, 2011

ऐहसास ...बस ऐहसास ...और सिर्फ ऐहसास ....

ऐहसास जरूरी है ? 
माना, पंखों में न रही जान
मुझे उंचा उडाने के लिये
मुझ में बाकी अभी जान 
 पंखों को फ़ड्फ़डाने के लिये  


                                
न शायर, न कवि, न ही कोई लेखक हूँ में! न ही मुझ में इतनी समझ कि शब्दों की चाशनी बना कर उससे   
तुकबंदी कर सकूं |न उर्दू जानता हूँ ,न अंग्रेजी का ज्ञाता हूँ | सिर्फ और सिर्फ आसान हिंदी के शब्दों को समझ लेता हूँ | 
और काम चलाने के लिए इसी को लिख लेता हूँ |
 जो थोडा बहुत ज्ञान इंग्लिश या उर्दू के शब्दों को बोलने का आया ,वो सब सुन सुन कर समय के मुताबिक जिन्दगी मैं 
मिले लोगो और हिंदी मैं उर्दू के लफ्जों का प्रयोग , पड़ कर आया |और इंग्लिश तो हर जगह स्कूलों में पदाई जाती है |
सो इस तरह से अपना काम चलाने लायक लिख और समझ लेता हूँ | पर बोलने से कतराता और घबराता हूँ |

   शायरी किसे कहतें हैं ? मैं नही जानता क्यों कि ये एक बहुत बड़ा फलसफां है| पर जो जिन्दगी ने दिखाया ,और 
सिखाया उससे ये ही सीखा कि शायरी किसी पड़े लिखे कि जायदाद ,या अनपड़ की  मोहताज नही | हर वो इन्सान 
कुछ भी लिख सकता है ,जो दिल से भावुक है ,जो दूसरे के दुःख मैं दुखी हो सकता है ,जिसे दूसरे को जाने ,अनजाने  
चोट लगने या लगाने पर उनकी चोट को अपने दिल पर महसूस  कर सकता है |अपना दिल दुखने पर भी 
दूसरों का दिल रखने के लिये हस-बोल सकता है |अकेला रात के घने अँधेरे मैं रो भी सकता है | 

 और फिर  दुखे दिल से जो ऐहसास करता है, उसे कागज पर उतारता है |ये समझ कर कि वो अपना दुःख किसी अनदेखी ,अन्जानी 
शख्सियत के साथ बाँट रहा है | जिन्दगी ने उस को भी सिखाया है कि खुशी बाटने से दुगनी होती  है, और गम बाटने से आधा रह
जाता है | कुछ लिखने के लिए दिल मैं ऐहसास जरूरी है चाहे वो दर्द का ,दुःख का या फिर सुख का | हर शक्स के अंदर एक शायर
छुपा रेहता है ,जैसे हर एक के अंदर एक छोटा बच्चा, कौन कितना मासूम या कितना शरारती ? बस ऐहसास...और ऐहसास...  
जरूरीहै ...!

 अशोक "अकेला "



Wednesday, March 09, 2011

महिला दिवस या फिर पाखण्ड...? कितना सच था ये ZEAL का....

कितनी सच्चाई थी कल ZEAL की पोस्ट मैं :
ये आज उभर कर सामने आ गया ...
महिला दिवस ...पर हर उम्र की महिलाओं को पुस्कारों से
भारत की राजधानी मैं नवाजा गया ?

डी.यू  की २० वर्षीय छात्रा को गोली मार कर इस नश्वर संसार 
से भाव-भीनी विदाई दे कर इनाम से नवाजा गया |


३२ साल की महिला को उसके पति के हाथो सीडियों से गिरा कर 
मुक्ति दिलाई गयी |


७५ साल की एक महिला को मिक्सेर की तार से गला घोंट कर 
इस बुडापे से मुक्ति दिला कर इनाम से नवाज गया और अपने किये 
पे सबाब पाया | और न जाने भारत मैं कहाँ कहाँ और क्या-क्या ...

सो इस तरह से बिना किसी भेद-भाव माँ-बहन -और बेटी को
पुरस्कार से नवाज कर महिला दिवस को शान से मनाया गया ||

हाँ...ऐसा सिर्फ हमारे हिंदुस्तान में ही हो सकता है |

जय महिला दिवस !
जय भारत महान !
फिर भी हम इन्सान ?

डाक्टर दिव्या , अगर आप की नजर से ये पोस्ट गुजरे तो कृपया ,
इसपे, अपने ब्लॉग पर एक भर-पूर् तगड़ी ,तीखी,दिलों को भेदने वाली 
पोस्ट अपने सच्चे और बेबाक शब्दों की लड़ी मैं पिरोकर लिखे |
लोगो को सोचने पर मजबूर कर दें ...की यही सच है.....
मैं मजबूर हूँ ,मेरे पास शब्दों की भारी कमी है ...पर मेरे पास एहसास 
भरपूर है| उन्हें साथ मिला लें और हम जैसो की आवाज बन कर उभरे |
बहुत बहुत आशीर्वाद सहित ....अशोक "अकेला"

Tuesday, March 08, 2011

महिला दिवस ...पापा का सन्देश ....बेटी के लिए

दीपा के लिए 

क्या करूँ ,कैसे करूँ 

ऐसे करूँ या वैसे करूँ 

दुःख दूर हो तेरा ,जिस तरह 

तू जैसा कहे,मैं वैसा करूं 

                पापा |

Monday, March 07, 2011

एक बेटी के एस एम् एस ...अपने पापा को...


रिश्ते और रास्ते एक सिक्के के दो पहलू होते हैं 
कभी रिश्ते निभाते-निभाते रास्ते बदल जाते हैं 
कभी रास्ते पे चलते-चलते रिश्ते बन जाते हैं ||

रिश्ते एक मासूम पंछी की तरह  होते हैं 
सख्ती से पकड़ोगे तो मर जायेंगे 
ढीले से पकड़ोगे तो उड़ जायेंगे 
प्यार से पकड़ोगे हमेशा  साथ रहेंगे ||


Saturday, March 05, 2011

दोस्त वो होते हैं जो ...

कुछ दिन पेहले मेरी बड़ी लड़की ने एक sms मुझे
किया था ...वो आप सब से share करना चाह रहा था ,
आज कर रहा हूँ पर क्यों ?...

दोस्त वो होतें हें ...
जब आप की आखरी साँसे चल रहीं हो
तब आ के भीगीं आँखों से कहें ..
चल यार ,आज यमराज की क्लास से
bunk मारते  हैं ...
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