Wednesday, July 27, 2011

नज़र मुझसे, मिलाती हो ...तो तुम,शरमा सी जाती हो ...

इसी को, प्यार कहते हैं ...इसी को प्यार कहते हैं !

"मेरी यादों ने, आज फिर मुझ पे, अपना रंग जमाया है ,
मेरे अतीत ने, मुझको वापस, अपनी गोद में बुलाया है" |  अशोक 'अकेला'
 ... चलें! आज में फिर  आप को "सावन के महीने" में, प्यार से 
भरपूर एक अपनी मनपसंद 'ग़ज़ल'  आप की नज़र करता हूँ |
पूरी उम्मीद रखता हूँ ,कि आप भी इसका भरपूर लुत्‍फ़ उठायेंगें |
प्यार की  कोई परिभाषा नही होती  ,प्यार किसी भी रूप में मिले ,वो 
आनंद देता है ,बस उसी आनंद को प्यार कहते हैं ...

फिर वो चाहे माँ,बहन ,बेटी, बीवी प्रियसी या दोस्त का हो ....
बस लेने-देने की भावना सच्ची ,पवित्र और विश्वास पे आधारित 
होनी चाहिए ...

यहाँ सुनिए राजस्थान के हुसैन बंधू अपनी मीठी और जादू भरी 
आवाज़ में प्यार का कैसा समां बांध रहे हैं ....

बस! सिर्फ इसी को प्यार कहते हैं ...












Wednesday, July 20, 2011

आज सजन मोहे अंग लगा लो ....

जन्म सफ़ल  हो जाये|

ये सन्देश है ...वहीदा रहमान का गुरु दत्त जी के लिए ...
काश! ये सच होता ...तो गुरु दत्त जी आज हमारे बीच भी 
हो सकते थे ...पर मजबूरियां कभी समझोता नही करने देतीं ..
.
वर्ष: १९५७ 
फिल्म: प्यासा 
गायिका : गीता दत्त 
संगीत : सचिन देव बर्मन 
शब्द :  बंगाली Baul...
कलाकार: गुरु दत्त,वहीदा रहमान आदि...

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी ,
वरना यूँ तो कोई बेवफ़ा नही होता ...

Sunday, July 17, 2011

रफ़ी साहिब की पुकार ... सावन के महीने में ...?


ये पिछली पोस्ट का दूसरा हिस्सा ...
खुशनुमां माहौल में ...
मुझे दुःख है ...इसका वीडियो इसके गीत
जैसा अच्छा नही ....मज़बूरी है ...

पर्दे पर देव आनंद साहिब की जुबानी,अपनी मस्त
अठखेलियों के साथ ,एक शराबी के अभिनय  में!
ये पूरा गीत एक शराबी के खुशनुमां मूड में ...

इस गीत को शब्द दिए :राजेन्द्र कृष्ण जी ने
संगीत से सजाया : मदन मोहन जी ने
स्वर दिया : रफ़ी साहिब ने
फिल्म : शराबी
वर्ष : १९६४
तो आयें मिल के सुनते हैं ...हम सब !



Wednesday, July 13, 2011

सावन के महीने में...इक आग सी सीने में ...

फिर से लौट आया .ये सावन का महीना 
भूली-बिसरी यादों में,पडेगा फिर  अब जीना 
कैसा है ,ये सावन का महीना ,
ये आये ,मन को भिगोये,
  जाये, तन को भिगोये पसीना||

"सावन का महीना "
गूगल साभार

फिर से आ गई याद, वो सावन की फुआर  सुहानी 
वो शरारते बचपन की, वो मद-मस्त अपनी जवानी|

सदा कोशिश करता रहा,  जिनको भूल जाने की 
आज पडेगी कहानी वो,याद कर के फिर दोहरानी| 

क्या अजब है मेरी ये जिंदगी भी ए दोस्तों 
कभी याद ,कभी भुलाने में बिताई जिंदगानी|
  
क्यों याद आती हैं ,सावन के महीने में , सब यादें पुरानी 
 इक  ठंडक सी दिल में, पड़ता है जब सावन-महीने का पानी| 

सोचता हूँ , खो जाऊँ खट्टी-मीठी यादों में आज
कैसे बिताई ,कैसे गुजारी मैंने अपनी जवानी || 

चलिए! आप को सुनाता हूँ :
रफ़ी साहिब की थोड़ी सी पुकार 
सावन के महीने में ...

अशोक'अकेला'


Saturday, July 09, 2011

जिन्हें नाज़ है हिंद पर.....उनको लाओ ...


ये गल्लियाँ ये कूंचे ...ज़रा उनको दिखाओ |
अशोक'अकेला'
...१९५७ की ये पुकार ...साहिर साहेब के शब्दों को रफ़ी साहेब ने
अपनी दर्द से भीगी आवाज मैं सचिन देव बर्मन के संगीत मैं तब के
भारत के नेताओं से ये अपील की थी ...
जो आज २०११ मैं भी वोही अपील उन सब की रूहे जन्नत से फिर दोहरा
रही हैं ...
शायद कल से भी ज्यादा आज इसकी जरूरत सब को महसूस हो रही है ...कल
तक  तो शायद एक-आध  ऐसा  एरिया  ही हुआ करता था ,जिसका नाम लेने से ही
लोग-बाग घबराते थे ..क्यों कि वो  नाम ...बदनाम नाम की और इशारा करता था |
पर आज ... हर पाश कौलनी ,हर छोटी -बड़ी  गली,मौहल्ला ,बाजार ,पार्क ,होटल ,
हर सड़क ,हर चौराहे ,मौल .... कोई गिनती नही ...कोई जगह नही बची....

न किसी माँ ,बहन,बेटी की इज्जत महफूज है और न किसी इंसान की जिंदगी ...
पर सवाल ये भी है ...? कि ये अपील हम सुना किस को रहें हैं ,वो नेता तो गए !
जो शायद सुन भी लेते थे ...और आज तो सब से ज्यादा खतरा ही आजकल के ...

सफ़ेद पोश ,नेताओं और अपने आस-पास मंडरा रहे अपनों से ही है .....?

चलिए छोडिये ...ये बड़ी बहस का मुद्दा है ...ये कहानी फिर सही ...पर
क्या ये झूठ है ? खुद सुनिये,सोचिये और फैसला कीजिये ...



Wednesday, July 06, 2011

क्या ये एक नाम ,जो है "राम" ...



"जय श्री राम"
 कोई कहे "राम" 
 कोई कहे "जय श्री राम"
 किसी ने कहा "हे राम"
 राहें हैं सब की अलग,
 पर मन्जिल एक है| 

 पुकारते हैं सब भगवान को
 पर जुबाने अनेक हैं |
 क्या ये एक नाम 
जो है "राम" 
पर कहने के
 तरीके अनेक है
 क्या नही इनके
 इरादे नेक हैं
 कहने को हम,
 भारतवासी सब एक हैं |

अलग-अलग जुबां में
 पुकारने वाले
 क्यों हमने इनमे
 भेद कर डाले|

 इसी देश में
 ...हे 'राम' कहने वाले
 बन गये 'राष्ट्रपिता'
हमारे  महात्मा गाँधी ...|

 फिर क्यों
 "जय श्री राम"
 कहने वाला
 कहलाया 'आंतकवादी' |

अशोक'अकेला'

Saturday, July 02, 2011

आंसू भरी है ...ये जीवन के राहें कोई उनसे कह दे, हमें भूल जाएँ !


मेरी यादों के गुलदस्ते से.... एक सदाबहार महकता फूल ...
इन यादों को याद करके ...अपनी भूली यादों का अतीत याद 
आता है ...
आज एक बार फिर आप को 'परवरिश' फिल्म से ही एक 
मुकेश जी की गाई,और फ़िल्मी परदे पर राज कपूर जी 
द्वारा अभिनय से अभिनीत कर सुनवाई गई 'ग़ज़ल ' से 
रूबरू करवाता हूँ |
जिसमें राज कपूर साहिब ,अपने ग़मग़ीन अंदाज में ,दर्द 
में डूबी इस 'ग़ज़ल ' में अपनी महबूबा से ,अपने को 
भूल जाने की नाकाम फ़रियाद कर रहें हैं |
तो सुनियें उनकी दर्द में डूबी फरियाद : 

वर्ष : १९५८ 
फिल्म : परवरिश 
पर्दे पर: राज कपूर 
सह-कलाकार : माला सिन्हा 
गायक: मुकेश जी 
संगीतकार: दत्ता राम 
गीतकार : हसरत जयपुरी

मुकेश जी :
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