Wednesday, August 31, 2011

फिर अपना, वो बचपन याद आया....


यादें...!!!
जुलाई महीने की २९ से १ अगस्त २०११ तक 
सिर्फ ४ दिन ....
हम पांच बचपन के दोस्तों में से तीन दोस्त 
बहुत बरसों बाद इकट्ठा हो कर ऋषिकेश की 
यात्रा पर निकले ..??? पांच में से तीन क्यों ?
क्यों कि हम में से दो हम तीन को छोड़ कर 
सांसारिक यात्रा से विदा लेकर अनंत यात्रा को 
चले गये.......
बस रह गयीं उनकी यादें ....
यादें....उन्ही यादों के सहारे अपनी बचपन की यादों...
जवानी के वादों,  को जिया| उन्हें जिन्दा किया और
फिर  अपने को देखा अपने वर्तमान को देखा और 
अपनी-अपनी हकीकत की दुनियां में आ गये ......
इसी बीच जो याद किया ,जिन यादों में जिये,जो एहसास 
हुये,जिनको हम सबने मिलकर महसूस किया ,बस वो ही 
आप से बाटनें को दिल चाह रहा है....
बावजूद इसके इन चार दिनों की कीमत ,वहाँ की गर्मी ,तीखी 
धुप और भरी उमस की वजह से मुझे २० दिन बिस्तर पर रहना 
पड़ा ....इस कीमत पर भी वो चार दिन मेरे जिंदगी के यादगार दिन बन गए ...
हमने अपने भूतकाल को जिन्दा किया ,भूतकाल में जिये ,हँसे ,गुदगुदाए 
आपस में मजाक किये ,कभी हंसी,ठहाके और कभी शर्म| पर अपने किये 
पे शर्मिंदगी कभी  नही....? सब कुछ मासूम था .....!
हो सकता है ये लेख ... आप के लिए कुछ मायने न रखता हो ...
आप इसे पढे या बिना पढे आगे बड जाये ...मुझे कोई हैरानी ,परेशानी ,
गिला-शिकवा कुछ भी आप से नही होगा ...क्यों कि ये सिर्फ मेरी यादें हैं ,
मेरे लियें हैं और मेरे लिए अनमोल हैं ..और यहाँ इन्हें हमेशा याद रखने ,
यादों को जिन्दा रखने और इन्हें बार-बार पढ़ कर अपना समय बिताने के 
लिए है ......!!!
पर आप से वादा ! अगली पोस्ट में आप के लिए अपनी पसंद की गज़ल 
जो आप को भी जरूर पसंद आएगी ...सिर्फ और सिर्फ आप सब के लिए 
पेश करूँगा ...तब तक के लिए विदा ......
खुश और स्वस्थ रहें !
तब ...(बायें से 1&4 no, वाले हम में नही ,5  वें पर में हूँ 
और अब .....
"फिर अपना, वो बचपन याद आया "

फिर  बचपन सुहाना वो याद आया 
जिसमें इक सपना था अपना वो याद आया 

बचपन के मिल बैठे जब तीन दोस्त 
नटखट बीता वो बचपन  याद आया 

वो लड़ना,  झगडना वो रूठना-मनाना
गुस्से में गाली, फिर गले लगाना याद आया 

वो घोड़ा-कबड्डी ,वो पिल्लै-गोली 
मिल के खेली जो होली ,वो याद आया 

वो गर्मी के मौसम में गोले की चुस्की 
वो तपती दोपहरी में खेलना याद आया |

दे हाथ-पे-हाथ वो ताली बजाना 
फिर वक्त पुराना, अपना वो याद आया

तब मैं और मेरे बाल 

वो इश्क के बातें,  ,वो चांदनी रातें
वो हुस्न  बेगाना, याद  आया 

वो लंबी सांसें ,वो ठंडी आहे 
वो इश्क पुराना याद आया |

अब मैं बिन बाल बेहाल 

देख चेहरे पे झुर्रियां,  बालों में सफेदी  
वो बीती जवानी का जलवा याद आया |

फिर बचपन सुहाना, वो  याद आया
"अकेला" इक सपना था अपना वो याद आया|| 

अशोक'अकेला'





























































































Sunday, August 28, 2011

"मत भूल अरे इंसान ,तेरी नेकी -बदी नही उस से छुपी.!!!

अशोक सलूजा 
सब देख रहा भगवान ,मत भूल अरे इंसान ........

यादें.....मेरी यादों के गुलदस्ते से एक फूल आज फिर लाया हूँ आप के लिए :-
आज एक अपने  मन-पसंद 'भजन' के रूप में .....
जो मुझे अपने बचपन से ही बहुत  पसंद है ,बहुत सुना है,गुनगुनाया है
और आज तक ये सुनने का क्रम ज़ारी है ...आप भी सुनें ....
वैसे भी आज इस को सुनने का मौका है ...
जनलोकपाल बिल की पहली लड़ाई पर जनता की पहली भारी जीत पर ...
 भारत की जनता को बहुत-बहुत बधाई और अगली लड़ाई की जीत
के लिये शुभकामनायें !!!
मन मोहन प्यारे जी को भी  धन्यवाद !!!
ये 'भजन' हम सब के लिये है ,और हम सब को जीवन की अच्छाई
बुराई  के बारे में चेतावनी देता है और सब को सचेत करता है !!!

हमे अच्छे काम के लिये प्रेरित और अपनी ओकात में रहने की
सलाह ...ये रफी साहब का गाया हुआ भजन है .....
"मत भूल अरे इंसान ,तेरी नेकी -बदी नही उस से छुपी.!!!
सब देख रहा भगवान ,मत भूल अरे इंसान ........
फिल्म: मस्ताना
वर्ष:      १९५४
गायक: रफ़ी साहब
संगीतकार: मदन मोहन
गीतकार: राजिंदर कृष्ण
कलाकार : मोती लाल ,निगार सुल्ताना ,गोप आदि...

Wednesday, August 24, 2011

भ्रष्टाचारियों को हटाओ, भ्रष्टाचार को मिटाओ ....

"वक्‍त की आवाज़"

भ्रष्टाचारियों को हटाओ 
भ्रष्टाचार को मिटाओ |

अन्ना ,अन्ना ,अन्ना 
मैं भी अन्ना ,
तू भी अन्ना ,
वो भी अन्ना ,
हम सब अन्ना !
अन्ना,अन्ना,अन्ना ...

भारत की आवाज़
सुन ले प्यारे ,
अब होश में आओ 
मन मोहन हमारे 
नही तो इतिहास 
अपने को दोहराएगा 
फिर कोई वभीषण 
लंका को जलाएगा
 
वक्‍त की आवाज़ 
सुनो,उठो जागो 
मन मोहन प्यारे 
मौका है कुछ 
नाम कमाओ 
अपनी ओर देश 
की लाज बचाओ 
अब तो कुछ 
कर के दिखाओ 
अपने पद की 
गरिमा को बड़ाओ 

सलमान,सिब्बल ,प्रणव 
चिदंबरम को भी अब 
बाहर का रास्ता दिखाओ 
यही इंसान है कमज़र्फ
किया हमारा बेडा गर्क 
कहाँ है वो  लालू 
और मनीष तिवारी
जिन की मति
गई है मारी 
ज़रा उनको बुलाओ 
जनता के सामने लाओ 
कहाँ छुप गयें हैं 
हम को बताओ 

सोनियां जी को बीमारी है 
राहुल के कंधो पर 
उनकी तीमारदारी है 
बस मन मोहन जी 
अब आप की बारी है
 
अन्ना की बात सुनो 
जनता की आवाज़  सुनों 
अब भी कुछ नाम कमा लो 
इतिहास में नाम लिखा लो 
ऐसा मौका फिर 
हाथ  न आयेगा
वक्‍त रेत की तरह 
हाथ से फ़िसल जायेगा
 
अन्ना चाहे बलि चढ़ जायेगा 
अन्ना का बलिदान 
व्यर्थ न जायेगा 
पर कल का इतिहास 
तुम्हें कभी माफ़ 
न कर पायेगा ...??? 


अशोक'अकेला'

Friday, August 19, 2011

वो जो नक्श थे तेरी याद के ,मुझे ख्वाब कैसे दिखा गये

अशोक सलूजा 
...... कभी वक्त राह में रुक गया ,कभी फूल लौट के आ गये.

वो जो गीत तुमने सुना नही ,मेरी उम्र भर का रियाज़ था ,
 मेरे दर्द की थी वो दास्ताँ ,जिसे तुम हंसी में उड़ा गये ...

जब दिल में कहने को बहुत  कुछ हो ,पर कलम और दिमाग
साथ न दे तो सबसे अच्छा रास्ता किसी अच्छी अपनी मनपसंद
गज़ल को गुनगुनाना होता है ....जिसमें शब्द दूसरे के होते हैं पर
आवाज़ आप के दिल की ........???

इस लिए, आज मेरा भी दिल यही  चाह रहा है कि मैं आप को अपनी मनपसंद
 एक गज़ल  अपने बहुत ही मनपसंद गज़ल गायक ,या यूँ कहें कि गज़ल  बादशाह
 की गाई हुई सुनवाऊं....तो फिर देर किस बात की ....

.उम्मीद है ,आप को भी अच्छी लगेगी और आप इसका
भरपूर लुत्फ़ उठाएंगे ...पर एक अर्ज़ है आप इसे कम से कम दो बार जरूर सुनें ....
बेशक अपने कीमती समय से समय निकाल कर ...जब भी आप चाहें .....आराम से
आँखे मूंद कर कोई जल्दी नही ..... समय मिले तो ठीक वरना जाने दें ...फिर सही ...

मैं आप को ये नही कह रहा  की आप ने इनको कभी सुना नही होगा ,ऐसा कोई गज़ल  पसंद
होगा ही नही जिसने इनको न सुना हो ..ये किसी परिचय  के मोहताज नही ,पर इनकी गज़ल
सुनना ही अपने आप में एक ईबादत है, जिसके ये सच्चे हकदार हैं ...... ये हैं गज़ल
बादशाह ज़नाब गुलाम अली साहब ....तो आयें सुनते हैं .....

मैं नाचीज जनाब गुलाम अली साहब के साथ




Monday, August 15, 2011

जवानियाँ ये मस्त-मस्त बिन पीये,जलाती चल रही हैं ,राह में दीये......

शम्मी जी 
पिछले काफ़ी दिनों से तबीयत ठीक नही चल रही ....

पर आज अपने युग के विद्रोही कलाकार का दुखद निधन 
का टी.वी.पर समाचार सुन कर रहा नही गया |
और जिन्दगी की खूबसूरत गुज़री यादों ने घेर लिया...
और वो पुराने अपने ज़वानी, में रखते कदम के वक्‍त की यादें 
ताज़ा हो गई.... 
यादें ....शम्मी कपूर की ....
यादें ... अपने जवां होने की ...
यादें ... उस अपनी पीढ़ी की... 
यादें ... उस जंगली ,जानवर, बदतमीज,ब्लफ़-मास्टर,पगला कहीं का के प्रोफेस्सर की ...
यादें ... उस जैसे मद-मस्त,मस्त-मौला,लापरवाह विद्रोही ब्रह्मचारी की ...
कोई शक ...बिना शक हमने तो आज तक तुम सा नही देखा ....
मेरी और मेरी पीढ़ी की और से एक भाव-भीनी विन्रम 
श्रद्धांजलि....
फिल्म: तुम सा नही देखा|
वर्ष : १९५७ 
गायक : रफ़ी साहिब 
गीतकार; मजरूह सुल्तानपुरी
पर्दे पर: शम्मी कपूर और अन्य
साथी अभिनेत्री: अमीता 
मेरी पसंद..
मैं(१९५७ में)

.

अशोक सलूजा 
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