Friday, June 01, 2012

समय का कालचक्र ....!!!


गिला किससे करूँ ,फरियाद भी कोई सुनता नही 
हूँ वक्त का, मुरझाया फूल ,जिसे कोई चुनता नही |
--अकेला  


समय का कालचक्र ....!!! 

मैं वो गुज़रे ज़माने की चीज़ हूँ
जो रख के, कोने में भुला दी जाती है

तब उस गुज़रे ज़माने  की चीज़ को
अपने वक्त सुहाने की याद आती है

 घर पहुँच सारी थकावट उतर जाती थी 
 जब बेटा हँसता था,बेटियां मुस्कराती थी

 लगता था चारों तरफ़ अपना ही सम्राज्य है
कम-से-कम घर में तो अपना ही राज्य है

 बेटियों पे अब, ससुराल की ज़िम्मेदारी  है
 बेटे पे अब आ,गयी घर की ज़िम्मेवारी  है 

 आज जिस कोने में हैं, हम विराजमान
 कल होगा वहाँ आप का, साज़ो-सामान

इसी को कहते हैं भाग्यचक्र
 सब समय का है कालचक्र!!!

अशोक'अकेला'

24 comments:

  1. इसी को कहते हैं भाग्यचक्र
    सब समय का है कालचक्र!!!

    बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,,,,,

    RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,

    ReplyDelete
  2. जीवन सदियों से ऐसे ही परिभाषित है, मान वे रखेंगे जिन्हें ज्ञात रहेगा कि उन्हें भी एक दिन उसी रास्ते से जाना है।

    ReplyDelete
  3. हम सभी इस समय के चक्र मे बंधे हुए है......शाश्वत प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  4. आज जिस कोने में हैं, हम विराजमान
    कल होगा वहाँ आप का, साज़ो-सामान

    इसी को कहते हैं भाग्यचक्र
    सब समय का है कालचक्र!!!
    बिल्‍कुल सही कहा आपने ...आभार ।

    ReplyDelete
  5. इस भाग्यचक्र और कालचक्र के चक्कर में ही जीवन चक्र चलता है . शुभकामनायें आपको .

    ReplyDelete
  6. ये काल च्रक का पहिया ...हर किसी के लिए उसके समय पर ही घूमता हैं ...

    ReplyDelete
  7. सत्य को उद्घाटित कराती रचना ...यही काल चक्र चलता रहता है

    ReplyDelete
  8. खेतों की ओर न मुड़ता हैं।
    समय बादल बन उड़ता हैं।


    शाश्वत सत्य को अभिव्यक्त करती प्रभावी रचना सर...
    सादर

    ReplyDelete
  9. सलूजा सहाब, इतना भी निराशावादी दृष्ठिकोंण मत अपनाइए, ओल्ड इस आलवेज गोल्ड, बाकी सब तो दुनिया का दस्तूर है !

    समृद्धि के पलों में,

    अपने लिए,

    अपनों के लिए,

    खोदकर पहाड़, समतलकर घाटी,

    तैयार कर एक मैदान,

    हैसियत के मुताविक

    कुटी, मकान,फ़्लैट,

    हवेली, बँगला, कोठी, कार

    क्या कुछ नहीं जोड़ता इंसान !

    किन्तु, एक बाढ़-पीड़ित ही जानता है

    कि विपति का आशियाना,

    एक सच्चा साथी

    सिर्फ कोई टीला और एक तम्बू होता है !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. न भाई जी ....ये निराशावादी दृष्टिकोण बिल्कुल नही ....ये आने वाले कल की तजुर्बों के आधार पर सुचना है ....जिसके लिए आपके पास अपनी समझ के अनुसार
      तैयारी के लिए समय भी ...फिर आपने तो खुद ही सब सच कह दिया है ...
      बस येही सच है ....

      किन्तु, एक बाढ़-पीड़ित ही जानता है

      कि विपति का आशियाना,

      एक सच्चा साथी

      सिर्फ कोई टीला और एक तम्बू होता है !!

      आप के स्नेह का ..
      आभार!

      Delete
  10. सहज अभिव्यक्ति समयचक्र की!
    सादर!

    ReplyDelete
  11. कुछ यूँ ही चलता है समय चक्र ..... सुंदर विवेचना

    ReplyDelete
  12. itni nirasha kyo.....sajiwta kabhi budhata nahi aur na hi nasht hota hai

    ReplyDelete
    Replies
    1. ये निराशा नही ....ये सच्चाई का तजुर्बा है ....
      आप हमेशा खुश रहे...और इस तजुर्बे से वास्ता न पड़े ....
      इसके लिए ...
      शुभकामनायें!

      Delete
  13. koi aage koi peechhe ...koi bachne wala nahin hai ....

    sundar rachna ...
    shubhkamnayen

    ReplyDelete
  14. सही है, कालचक्र मनुष्य की भूमिका को परिवर्तित करता रहता है।

    ReplyDelete
  15. इसी को कहते हैं भाग्यचक्र
    सब समय का है कालचक्र ...

    इस भाग्य चक्र और काल चक्र में ही इंसान घूमता रहता है ... और ये घूमना भी एक तरह का कालचक्र ही है जो भाग्य अनुसार ही चक्र लेता है ...

    ReplyDelete
  16. आशा है आपका स्वस्थ ठीक होगा ... मेरी शुभकामनायें ...

    ReplyDelete
  17. समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कभी कुछ नही मिलता न ही कुछ होता,,,,
    इसलिए हम निराश होकर क्यों जिए,,निराशा हमको कमजोर बनाती है,,,,,,

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

    ReplyDelete

मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...