यादेँ .... बहुत दिनों से ये, गज़ल आप को सुनवाना
चाहता था ,और आज ये मौका मिल गया|
इस गज़ल को बहुत गायकों ने बहुत बार अपनी-अपनी
आवाज में गाया है ...पर इसके मूल गायक है ...ये साहब !
इस रोमांटिक गज़ल को गाया है ,पाकिस्तानी गायक
जो एस.बी. जॉन के नाम से जाने पहचाने जाते है |
इन्होने अपना शानदार गायकी का आगाज़ पाकिस्तान
रेडियो .कराची से शुरू किया था |
सबसे पहले ये गज़ल ,सन् १९५९ में 'सवेरा' पाकिस्तानी फिल्म में
एस.बी.जॉन ने अपनी आवाज़ उस फिल्म के हीरो को दी |
अपने समय में ये गज़ल बहुत मकबूल हुई |आज भी है ...
हमारे लिए |
कभी मैंने भी इस गज़ल को बहुत सुना और गुनगुनाया भी ...
अपने उन ....?दिनीं में |
एस.बी.जॉन ने ये गज़ल, अपनी आवाज में
सन् १९७७ में एक प्रोग्राम् के दौरान स्टेज पर
हारमोनियम के साथ गाई | इस गज़ल के अश'आर
लिखे है ...ज़नाब फैयाज हाशमी साहब ने |
आज पेश कर रहा हूँ ,आप के सुनने और आप
का दिल बहलाने के लिए ....
उम्मीद है ...मेरी पसंद ...आपकी पसंद पर भी
खरी उतरेगी हमेशा कि तरह !!!
तू जो नही है ,तो कुछ भी नही है
ये माना कि महफ़िल जवां है हंसी है
तू जो नही है .......
निगांहों में तू है ,ये दिल झूमता है
न जाने महोब्बत कि राहों में क्या है
जो तू हमसफ़र है ,तो कुछ गम नही है
ये माना के महफिल ......
वो आए न आए ,जमी है निगाहे
सितारों ने देखी हैं ,छुप-छुप के राहें
ये दिल बदगुमां है ,नज़र को यकीं है
ये माना के महफिल ......
तू जो नही है ,तो कुछ भी नही है
ये माना के महफिल जवां है हंसी है
तू जो नही है .....