Friday, July 27, 2012

हम तेरे शहर में हैं...अनजाने,बिन तेरे कौन हम को पहचाने...


आइये ....आज एक बार फिर से...मैं  अपनी यादों के झरोखे से आप सब को
अपनी मनपसंद गज़ल सुनवाता हूँ |
ये ज़नाब गुलाम अली साहब की दिलकश आवाज़ में ....मेरे दिल की बात है !!!
ये भी हो सकता है ! कि हम सब में से भी... ये आवाज़ किसी के दिल की  बात कहती हो ......
तो फिर देर किस बात की......कह डालें अपने दिल की बात को.....
ज़नाब गुलाम अली साहब की आवाज़ का सहारा लेकर!!!

हम तेरे शहर में हैं अनजाने
बिन तेरे कौन हम को पहचाने


मेरा चेहरा किताब है ग़म  की
कौन पढता है ग़म के अफ़साने
बिन तेरे कौन .....


जिसने सौ बार दिल को तोड़ा है
हम अभी तक हैं उसके दीवाने
बिन तेरे कौन .....


उनसे कोई भी कुछ नही कहता
लोग आते हैं मुझको समझाने


बिन तेरे कौन हमको पहचाने
हम तेरे शहर में है अनजाने .........









Friday, July 20, 2012

यादेँ....जो भूलती नही !!!

झाँकने दिल का कोना गया था, कि तुम कहाँ हो,
मिला न खाली कोना,जिधर देखूं ,तुम वहाँ हो....
---अकेला

ये रातों के साये मुझ को सोने नही देते 
ये दिन के उजाले मुझ को रोने नही देते 

लाख कोशिश करता हूँ ,उनको भूल जाने की 
वो मगर मुझ को कभी कामयाब होने नही देते 

याद करता हूँ उनकी बेवफाई के किस्से को मैं 
मगर इसका वो अहसास कभी मुझे होने नही देते 

रख के माथे पे हाथ , कुछ सोचता रहता हूँ मैं 
कोई भी किस्सा वो मुझे  याद होने नही देते 

सिलवटें पड़ गई ,माथे पे मेरे ये सोच-सोच कर 
पर इस सोच को वो कभी कम होने नही देते ||

थक हार के जाना चाहता हूँ नींद की आगोश में मैं 
पर वो 'अकेला' किसी की आगोश में सोने नही देते ||

अशोक"अकेला"




Friday, July 13, 2012

देखता हूँ ....अपने दिल के आइने में..!!!

सच! ही कहा है ...किसीने !!!

"अपने ही होतें हैं ,जो दिल पर वार करते हैं ...
वरना गै़रौं को क्या खबर  ...कि दिल किस बात पे दुखता है "



Friday, July 06, 2012

गुज़रे कल का प्यार ...और आज का प्यार ???

कल का प्यार ...आज का व्यापार.....













गुज़रे कल का प्यार.... और 
सौ बार डर के पहले  
इधर-उधर देखा ,
तब घबरा के तुझे इक 
नजर देखा |  
सुना कल रात मर गया वो ?
किसी के प्यार मैं था पड़ गया वो 
जिससे करता था प्यार वो 
कर न सका कभी इज़हार वो
इक दिन प्यार ने,  उसके  
किसी और से शादी करली 
दे के मुबारक अपने
प्यार को, उसने  खुद 
ख़ुदकुशी कर ली |
जीते जी नाम न था 
मर के वो बेनाम न था 
प्यार इबादत है 
प्यार पूजा है 
प्यार कुर्बानी लेता नही 
प्यार कुर्बानी देता है 
बस यही इक प्यार है ?
ये गुज़रे कल का प्यार था 
इसी को प्यार कहते  है 
इक आज का प्यार है 
जिसको व्यापार  कहते हैं|












...आज का प्यार
खूब जी भर ,बेफिक्र 
हो के तुझ को देखा 
थक गये जब ,तब 
इक नजर इधर-उधर देखा  
प्यार के 
व्यापार में 
उधार का 
लेंन-देन
मना हे 
प्यार लो ,प्यार दो 
लिया कर्ज उतार दो 
ये कैसा प्यार है ?
क्यों पिस्टल गोली दरकार है 
प्यार के ज़ज्बे  की ये हार है 
ये सिर्फ देह का व्यापार है 
प्यार पाक होता है 
प्यार निस्वार्थ होता है 
ये प्यार बीमार है  
ये प्यार का व्यापार है 
ये कैसा प्यार है ?...
अशोक'अकेला'

Sunday, July 01, 2012

जीने-मरने में क्या पड़ा है, पर कहने-सुनने...

और मरने में फर्क बड़ा है .....!


एक हल्की-फुल्की संजीदा सी मुलाकात ...
सत्य पर अधारित...एक सपना !
बचपन के दोस्त ...से मुलाक़ात 
जो बड़ी जल्दी ही अपनी मंजिल 
को पा गया ........
मैं और मेरा दोस्त

ये गई बीती रात की बात है 
भले ही सपने की मुलाक़ात है 
मुश्किल से आँख लगी थी मेरी 
उसमें भी मुझे याद आ गई तेरी

झट से पास आ गया तू भी मेरे
बोला "वहाँ  काटे न कटे ,बिन तेरे" 
फिर न लगाई तूने  ये कहने में देरी.....
"कैसे कट रही है यहाँ जिन्दगी तेरी"
मैं बोला "बात-बात में मुझे याद आती है तेरी "
तू  बोला "फिर क्यों लगाता है आने मे देरी "

मैं बोला "अभी मुझे बहुत काम हैं यहाँ ".....
तू  बोला "अरे, चल बहुत आराम है वहाँ.... 
छोड़, अब तेरा क्या रखा हैं यहाँ...
तेरे लिए इक आशियाना बना रखा हैं वहाँ"

वो कह रहा था "अब यहाँ काहे का ज़ीना"
सुन ! मेरे माथे पे आ रहा था  पसीना... 
"दोनों मिल के बैठेगें ,कुछ बात करेंगें 
अपनी जवानी और बचपन को याद करेंगें"

अब मैं सोच रहा था .......!
कैसे मानूं इस की सलाह को... 
कैसे टालूं मैं आई इस बला को...

तभी ...बड़ी ज़ोर से किसी ने दरवाज़े पे घंटी बजाई 
मैं चौंक के उठा !!! बाबु जी "दूध वाला" आवाज़ आई || 
वाह! रे मेरे मालिक अच्छी की तुने... जुदाई 
शुक्रिया ! जो तुने मेरी जान छुड़ाई...हा हा हा ... 

फ़िलहाल ! खुशी-भरा अंत !
न जाने किस के लिए ...???हा हा :-))












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