Wednesday, October 09, 2013

अपने-अपने ज़माने का .....ये बचपन !!!

अपने ज़माने का .....वो बचपन !!!








आज भी भूले-भुलाये न भूले  
वो बचपन
माँ का दुलारा था 
वो बचपन 
आँखों का तारा था
वो बचपन
नानी की गोदी में  गुज़ारा 
वो बचपन
शरारतों से भरपूर था 
वो बचपन
कितना मासूम था 
वो बचपन
कितना निर्दोष था 
वो बचपन
अपनों का प्यारा था 
वो बचपन 
बूढों का सहारा था 
वो बचपन 
कितना सुहाना था 
वो बचपन 
सब से न्यारा था 
वो बचपन ......
काश! कि लौटा लाऊं 
वो बचपन 
अपनी यादों का सहारा  
वो बचपन
मासूम सी मुस्कानों का 
वो बचपन
रोने से पहले की शक्ले बनाना का  
वो बचपन 
किस्से-कहानियाँ सुनाता 
वो बचपन   
सब कुछ भुला के याद आये
वो बचपन 
मेरे ज़माने का था अपना 
वो बचपन 
इस लिए इतना सुनहरा था
वो बचपन..... 
आज का ....आपका ये बचपन !!!













कैसा न्यारा है आज का
ये बचपन 
कहाँ से प्यारा है आज का 
ये बचपन 
कितनी सी देर का बेचारा है आज का 
ये बचपन
सिर्फ दो साल का है आज का 
ये बचपन 
इन्टरनेट का मारा आज का
ये बचपन 
रियाल्टी-शो का सहारा आज का
ये बचपन 
मोबाइल पर गेम का प्यारा आज का
ये बचपन 
फेसबुक पर चैट का मारा आज का 
ये बचपन 
अंधे सपनों को ढोता आज का
ये बचपन  
माँ-बाप की ईगो का सहारा आज का 


ये बचपन........


अशोक'अकेला'

23 comments:

  1. " वो बचपन
    कितना मासूम था "
    ***
    सच बचपन तो उस ज़माने का ही सुन्दर था...!

    बेहद सुन्दर प्रस्तुति!
    सादर!

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  2. कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन ...! सुन्दर प्रस्तुति ...!

    RECENT POST : अपनी राम कहानी में.

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  3. बचपन तब का और था, अब का बचपन और |
    दादी की गोदी मिली, नानी हाथों कौर |

    नानी हाथों कौर, दौर वह मस्ती वाला |
    लेकिन बचपन आज, निकाले स्वयं दिवाला |

    आया की है गोद, भोग पैकट में छप्पन |
    कंप्यूटर के गेम, कैद में बीते बचपन ||
    ....
    एक दोहे में एक लघु
    दौरे दिल का दर्द इत, उत दौरे पर पूत |
    सुतके दौरे बेधड़क, *पिउ बे-धड़कन *सूत ||
    *पिता
    *सो गया
    .

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  4. बेहद सुन्दर प्रस्तुति!. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (10-10-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 142"शक्ति हो तुम
    पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

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    Replies
    1. राजेन्द्र जी.....आपके स्नेह के लिए बहुत-बहुत आभार !

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  5. बिल्‍कुल सही कहा आपने .... सशक्‍त प्रस्‍तुति

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  6. बहुत सुन्दर सशक्त रचना.........
    सादर
    अनु

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  7. दोनों पीड़ियों के अंतराल को बाखूबी बचपन के माध्यम से प्रस्तुत किया है आपके अशोक जी ... पर हर किसी को अपना बचपन प्यारा लगता है ...

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  8. सबको अपना बचपन भाता,
    मन में सुख निर्मलता लाता।

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  9. एक सही कहा आपने ...ये ही सब कुछ हो रहा है आज के वक्त में

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  10. उत्कृष्ट प्रस्तुति |

    मेरी नई रचना :- मेरी चाहत

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  11. मार्मिक भावाभिवय्क्ति.....

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  12. कल और आज के बचपन का सटीक चित्रण...मार्मिक भावाभिवय्क्ति..

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (10-10-2013) "दोस्ती" (चर्चा मंचःअंक-1394) में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    Replies
    1. शास्त्री जी ......आपके स्नेह के लिए बहुत-बहुत आभार !

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  14. बहुत ही सारवान विचार.

    रामराम.

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  15. रविकर जी ...आपके स्नेह के लिए बहुत-बहुत आभार !

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  16. काश सपने में ही बापस आ जाए .. एक बार !

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  17. बहुत सुन्दर .बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  18. आज तो बचपन जैसी बात ही नहीं रही ..... या ये कहें रहने नहीं दी जाती .... माता पिता की अपेक्षाओं पर मिट रहा है बचपन ....

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  19. सच में आज के बचपन और कल के बचपन में बहुत बड़ा अंतर आ गया है ,बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई आपको

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  20. पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
    कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
    ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (13) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  21. waah ji waah.....bachpan ke din bhula na dena.....



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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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