Thursday, August 29, 2013

क्या खबर थी.... लबे इज़हार पे ताले होंगे !!!

वो बातें दिल का ग़ुबार होती हैं
जो बातें बयाँ के बाहर होती है
---अशोक "अकेला "

यादों की गठरी खुली और फिर वो ज़माना 
याद आया ..जब ये गुलाम अली साहब की 
दर्द भरी ग़ज़ल को गाने का मन करता था .....
खूब गुनगुनाया करता था ...जैसे चुपके से कोई 
सन्देश दे रहा हो किसी अपने को ...अपने दिल 
की बात ...दिल का दर्द... बयाँ कर रहा हो !!!

ओह ! पर आज तो मैं आप को अपनी पसंद 
सुनाने जा रहा हूँ ..तब से आप का, क्या लेना-देना ....
उस रास्ते पर चल कर मैं तो उसे अपने पीछे छोड़ 
आया ..आज कोई और उस रास्ते पर चल रहा है...
कल कोई और उस रास्ते पर चलेगा,कभी न कभी,
तो हर शख्स के सामने ये रास्ता  आता ही है..........  

तो आइये मेरे साथ मैं आप को सुनवाता हूँ आज 
अपनी पसंद की ग़ज़लों में से एक ग़ज़ल .....
सुरों से सजाया है ...ज़नाब गुलाम अली साहब ने.. 
अहसासों से लिखा ....ज़नाब परवेज़ जालंधरी साहब ने..
तो आप भी महसूस कीजिये इस में दिए गये 
किसी के दर्द भरे सन्देश को ......

..
जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे
हाँ वोही लोग तेरे चाहने वाले होंगे

मय बरसती है फ़िजाओं पे ,नशा तारी है 
मेरे साक़ी ने कहीं ज़ाम उछाले होंगे 

जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे.......

शमा ले आयें हैं हम, जलवागर जाना से 
अब तो आलम में उजाले ही उजाले होंगे 

जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे.....

हम बड़े नाज़ से आये थे तेरी महफ़िल में 
क्या खबर थी लबे इज़हार पे ताले होंगे

जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे.......

जिनके होंटों पे हंसी ,पाँव में छाले होंगे
हाँ वोही लोग तेरे चाहने वाले होंगे.....














उम्मीद करता हूँ , मेरी पसंद ,आप के दिल को 
भी भायी होगी .....
खुश रहें,स्वस्थ रहें!
अशोक सलूजा !


Friday, August 23, 2013

माँ से मुलाकात ......ख़्वाबों में !!!

सोने से पहले, पुकारता हूँ मैं "माँ" 
कितने पवित्र ये, दो शब्द के बोल हैं 
सब दुःख दर्द, ये मेरे हर ले जाएँ 
बोल के परखो, ये इतने अनमोल हैं.... 
अशोक "अकेला"
माँ से मुलाकात ......ख़्वाबों में !!!

 जब कभी मैं, परेशानी में होता हूँ
 मैं माँ की, निगेहबानी में होता हूँ

 सोने से पहले, आँखों को धोता हूँ
 तू आ ख्वाबों में, अब मैं सोता हूँ

 वो सिरहाने मेरे, जागती है रात-भर
 मैं चैन से उसके, आँचल में सोता हूँ

 वो बेचैन हो जाती है, देख के मुझको
 मैं जब कभी डर के, सपनों में रोता हूँ

 ममता से भरा हाथ, फेरती है माथे प
 हंसी उसके लब, मैं मुस्कुरा रहा होता हूँ

 छुपा के सर गोदी में, गुदगुदा के उसको
 झूठी-मुठी रूठी माँ को, मना रहा होता हूँ ....

 काश! मेरी नींद न टूटती उम्र भर ......

अशोक'अकेला'

Saturday, August 03, 2013

उफ़!!! न कर....

मेरी जिन्दगी थी बेआसरा 
तेरे आसरे से पहले .....
--अशोक'अकेला'


उफ़! न कर 
तू अब लब सी ले ...
मिले ग़र ज़हर का प्याला 
आँख मूंद उसे पी ले ...

जिन्दगी में आयेगे 
वो मंज़र भी 
जिसे तू देखना न चाहे 
याद कर बीते 
सुहाने पलों को 
उन पलों में जी ले ...

कट जायेगा दिन 
ढल जाएगी रात 
आयें आँख में आंसू 
कोर होने दे गीले...

कर बिछोना धरती पर 
ओढ़ बादल आसमानी नीले ...
बरसेंगी सुहानी बारिश की बुँदे 
फूल खिलेंगे सरसों के पीले ...

बस उफ़ न कर ,तू अब लब सी ले ........
अशोक'अकेला'


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