.....इंतज़ार के बाद फिर यादें ........
ये सिलसिला बस यू ही चलता रहता है ....!!!
और आज अपनी यादों को साँझा कर रहा हूँ ..
आप सब के साथ शायर "ज़नाब नासिर काज़मी
और गुलूकारों के बादशाह ज़नाब गुलाम अली साहब "की
मीठी ,मदमस्त और रूहानी आवाज़ का सहारा लेकर ....
तो आप भी सुनिए ....उनकी रूहानी आवाज़ में ये सुहानी
यादें ....जी कभी न कभी हम सब के दिलों में भी यादों के
रूप में उभरती है .जिन्हें याद करने को दिल करता है ,याद
आने पर दिल में एक मीठी से कसक ,हुक ,बेचैनी और एक
मस्ती भरा सुकून सा मिलता है .....???
चलिए ,सुनते हैं एक सुकून भरी मीठी आवाज में एक गज़ल|
और डूब जाइए अपनी मीठी यादों में .........
फिर सावन ऋतु की पवन चली ,तुम याद आए
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी ,तुम याद आए||
फिर कागा बोला ,घर के सुनें आँगन में
फिर अमृत-रस की बूंद पड़ी ,तुम याद आए ||
फिर गूंजे बोली ,घास के भरे समंदर में
ऋतु आई पीले फूलों की ,तुम याद आए ||
दिन भर तो मैं दुनियां के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली ,तुम याद आए ||
फिर सावन ऋतु की पवन चली ,तुम याद आए
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी ,तुम याद आए||
ज़नाब गुलाम अली साहब
ये सिलसिला बस यू ही चलता रहता है ....!!!
और आज अपनी यादों को साँझा कर रहा हूँ ..
आप सब के साथ शायर "ज़नाब नासिर काज़मी
और गुलूकारों के बादशाह ज़नाब गुलाम अली साहब "की
मीठी ,मदमस्त और रूहानी आवाज़ का सहारा लेकर ....
तो आप भी सुनिए ....उनकी रूहानी आवाज़ में ये सुहानी
यादें ....जी कभी न कभी हम सब के दिलों में भी यादों के
रूप में उभरती है .जिन्हें याद करने को दिल करता है ,याद
आने पर दिल में एक मीठी से कसक ,हुक ,बेचैनी और एक
मस्ती भरा सुकून सा मिलता है .....???
चलिए ,सुनते हैं एक सुकून भरी मीठी आवाज में एक गज़ल|
और डूब जाइए अपनी मीठी यादों में .........
फिर सावन ऋतु की पवन चली ,तुम याद आए
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी ,तुम याद आए||
फिर कागा बोला ,घर के सुनें आँगन में
फिर अमृत-रस की बूंद पड़ी ,तुम याद आए ||
फिर गूंजे बोली ,घास के भरे समंदर में
ऋतु आई पीले फूलों की ,तुम याद आए ||
दिन भर तो मैं दुनियां के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली ,तुम याद आए ||
फिर सावन ऋतु की पवन चली ,तुम याद आए
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी ,तुम याद आए||
ज़नाब गुलाम अली साहब
शायर: नासिर काज़मी
bahut achha laga
ReplyDeletebahut khoobsurat ghazal....vaah..
ReplyDeleteयाद आने की यादें ही आती रहीं,
ReplyDeleteअपने में मगन गुनगुनाती रहीं,
तुम नहीं थीं, तुम्हें पूर्ण अनुभव किया,
कैसे कह दूँ कि यादें सताती रहीं।
वाह अशोक जी ।
ReplyDeleteसुबह सुबह ग़ुलाम अली की सुरीली आवाज़ सुनकर मज़ा आ गया ।
दिन भर तो मैं दुनियां के धंधों में खोया रहा
ReplyDeleteजब दीवारों से धूप ढली ,तुम याद आए '
सुबह सुबह गुलाम अली साहब की मखमली आवाज़ मे इस गजल को सुनकर मन खुश हो गया.
शानदार पसंद है आपकी.कुछ सूफियाना कलाम सुनाइये....ऐसा कि वो पास होने का अहसास देने लगे और छू ले.'उसे' पाने का एक मात्र जरिया यही है मेरा.आँखें मूँद कर सुनती रहूँ बस.
और..आप स्वस्थ रहे.लम्बी उम्र हो आपकी भाई अभी बीस पच्चीस साल आपकी पसंद सुन्नी है मुझे वीरा!
आनंद आ गया सर, सुनकर...
ReplyDeleteसादर आभार...
गुलाम अली की आवाज में वो जादू है कि हर लब्ज जीवित हो उठता है, जब गाते हैं पवन चली....तो सचमुच ही हवा के चलने का एहसास होने लगता है, वाह !!! गजब का गीत सुनाया है आज...
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति सलूजा साहब !
ReplyDeletevery nice poem;;;
ReplyDeletelike it,,,
Bahut Badhiya Gazal Sunwai, Abhar....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteयादें यादें यादें ... शायद ये मौत के साथ ही खत्म होती हैं ... और जब तक जिंदगी होती है ... कोई इन्हें छोडना भी तो नहीं चाहता ...
ReplyDeleteसुबह सुबह ... गुलाम अली और लाजवाब गज़ल ... माहोल बना दिया आपने ...
फिर सावन ऋतु की पवन चली ,तुम याद आए
ReplyDeleteफिर पत्तों की पाज़ेब बजी ,तुम याद आए||
.इस उपवन में महक उठी ,तुम याद आये .बेहतरीन रचना और बंदिश .
फिर कागा बोला ,घर के सुनें आँगन में
ReplyDeleteफिर अमृत-रस की बूंद पड़ी ,तुम याद आए ||
फिर गूंजे बोली ,घास के भरे समंदर में
ऋतु आई पीले फूलों की ,तुम याद आए ||
दिन भर तो मैं दुनियां के धंधों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली ,तुम याद आए ||
फिर सावन ऋतु की पवन चली ,तुम याद आए
फिर पत्तों की पाज़ेब बजी ,तुम याद आए||
कोमल पदावली कोमल भाव का मीठा गीत .आभार आपकी ब्लोगिया दस्तक के लिए अशोक भाई .आपके स्नेह्रूप प्रोत्साहन के लिए .
Very Nice post our team like it thanks for sharing
ReplyDeleteमज़ा आ गया
ReplyDeletebeautiful