Saturday, June 23, 2012

मेरी माँ ...

उदासी,दुःख और तकलीफ़ में सिर्फ़ एक 
इंसान की याद आती है ....???
जिसने आपको जीवन में सबसे ज़्यादा प्यार 
किया हो,और आपने उसको सबसे ज़्यादा 
तंग किया हो ...इस लिए.....   








Monday, June 18, 2012

इक पुराना पेड़, है अभी तक गाँव में...


पंकज सुबीर जी ,
नमस्कार,आप के द्वारा दी हुई प्रेरणा से, एक प्रयास किया है ,कुछ लिखने का
सिर्फ अपने अहसासों को महसूस करके ,बस यही मैं कर सकता हूँ|
गज़ल या गज़ल की बंदिशों से एक दम नासमझ ..... बस एक प्रयास
भर है ......


इक पुराना पेड़, है अभी तक गाँव में...

सावन के झूले भी पडतें, हैं अभी तक गाँव में
 उस पर जो इक पुराना पेड़, है अभी तक गाँव में

 उन रास्तो की मिटटी जो आती है मेरी तरफ़
 प्यार से गले लगाती , है अभी तक गाँव में

 पेड़ से बंधी घंटी भी बजती है उसी तरह
 यूँ ही स्कूल भी लगता, है अभी तक गाँव में

 याद बचपन की आती, गुज़रे उस माहौल की 
 शरारत रगों में बहती , हैं अभी तक गाँव में 

उस तालाब की मछली की याद है मुझको अभी
 तालाब का किनारा पुकारता , है अभी तक गाँव में 

घर का मेहमान, सारे गाँव का मेहमान है
 बरसों की रीत पुरानी, है अभी तक गाँव में

चबूतरे पर बैठती पंचायत आज भी पंचो की है 
 सुनवाई सब की बराबर होती, है अभी तक गाँव में

 ये मेरा गाँव भारत का ,ये ही मेरा देश है
 प्यार ही प्यार मिलता , हैं अभी तक गाँव में

 मुझको आता देख "अकेला" रास्ते मुस्कराते हैं
 राहें बाहों में लेने को मचलती , हैं अभी तक गाँव में||

----अकेला 

Friday, June 15, 2012

जिन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं ...!!!

वो एक अज़ीम और अदीब शख्सियत थे ,
अपनी मौसिकी की दुनिया के ....
ज़नाब मेहदी हसन साहब !  गज़लों के "शहंशाह-ए-गज़ल"
१३ जून ,बुधवार २०१२ को इंतकाल फरमा गए ...
अपने ८५ सालो की जिंदगानी के सफ़र में ......
उनका जन्म १८ जुलाई ,१९२७ को राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव
में हुआ था...!!!  


मौसिकी का कोई मजहब या देश नही होता ,
ये कुदरत की फिज़ाओं में गूंजती है|
ज़नाब मेहदी हसन साहब के इंतकाल से हर उस...
संगीत चाहने ,सुनने या गाने वाले का अपना-अपना ,
कहीं न कहीं निजी नुक्सान हुआ है |
उनकी रूह को खुदा सुकून और जन्नत बक्शे ,
ये ही हम सब चाहने वालों की तरफ़ से उनके लिए दुआ है !
यू तो उन्होंने अपनी जिन्दगी में जो भी गाया ,सब बेहतरीन गाया ...
ये तो सब संगीत के कद्रदान समझते हैं |
मैं क्या हूँ ,कौन हूँ  ,जो कुछ भी  संगीत की बारीकियों को जानता  नही ,
समझता नही.......
पर ज़नाब मेहदी हसन साहब की छोड़ी हुई संगीत की सौगात में
सब के लिए बहुत कुछ है ...जिसे जो समझ आए ,जो दिल को भाए ,
जिस लायक वो उनको समझता हो ...वो सब कुछ है सब के लिए !
ऐसे फ़नकार मुद्दतों में एक बार ही पैदा होते हैं !!!
मैं भी अपनी पसंद ,आप को सुनवा कर उनको अपनी और उनके चाहने वालों की तरफ़ से 
विन्रम श्रद्धांजलि.........देता हूँ !

जिन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं ,
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा


तू मिला है तो ये अहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र ,महोब्बत के लिए थोड़ी है .......

इससे आगे आप पढ़ना छोड़....कतील शाफई का लिखा कलाम ...
उनकी मखमली आवाज़ में नवाजी पूरी ग़ज़ल सुनें...!!!













Sunday, June 10, 2012

मैंने तो सुना था .....!!!

अगर हाथो को कुछ देने के लिए झुका नही सकते 
तो कुछ लेने को लिए हाथो को फैलाओ तो  मत ||
--अकेला 

अशोक'अकेला'


Thursday, June 07, 2012

बस प्यार से पुकार लो ...!!!

कभी कभी ऐसे भी गुन-गुना लेना चाहिए 
हो मौसम सुहाना तो मुस्करा लेना चाहिए||
---अकेला

अशोक'अकेला'


Friday, June 01, 2012

समय का कालचक्र ....!!!


गिला किससे करूँ ,फरियाद भी कोई सुनता नही 
हूँ वक्त का, मुरझाया फूल ,जिसे कोई चुनता नही |
--अकेला  


समय का कालचक्र ....!!! 

मैं वो गुज़रे ज़माने की चीज़ हूँ
जो रख के, कोने में भुला दी जाती है

तब उस गुज़रे ज़माने  की चीज़ को
अपने वक्त सुहाने की याद आती है

 घर पहुँच सारी थकावट उतर जाती थी 
 जब बेटा हँसता था,बेटियां मुस्कराती थी

 लगता था चारों तरफ़ अपना ही सम्राज्य है
कम-से-कम घर में तो अपना ही राज्य है

 बेटियों पे अब, ससुराल की ज़िम्मेदारी  है
 बेटे पे अब आ,गयी घर की ज़िम्मेवारी  है 

 आज जिस कोने में हैं, हम विराजमान
 कल होगा वहाँ आप का, साज़ो-सामान

इसी को कहते हैं भाग्यचक्र
 सब समय का है कालचक्र!!!

अशोक'अकेला'

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