Wednesday, November 30, 2011

मैं रास्ते में पड़ा पत्थर हूँ....

"मील का पत्थर"

मैं रास्ते में पड़ा पत्थर हूँ 
निगाहों में आपकी बद्त्तर हूँ 
न देख मुझको,तू नफ़रत से
देखता हूँ, सब को,  इस हसरत से
  
न मार मुझको ठोकर तू   
हो न जाये कहीं चोटल तू  
प्यार से मुझको उठा  तू 
किनारे पे रख,के जा तू 

खुद को ठोकर से बचा तू  
दूसरों के लिये रास्ता बना तू

खुद भी बच,और मुझको बचा तू 
दिल का सुकून भी पायेगा तू 
जो गै़र  की ठोकर से 
मुझ को बचायेगा  तू 

फिर मैं भी "मील का
 पत्थर" बन जाऊंगा 
सब के लिये निशानी 
बन के काम आऊंगा

किसी भटके मुसाफिर को 
मंजिल का पता बताऊंगा ||


अशोक'अकेला'







Wednesday, November 23, 2011

हम को किस के ग़म ने मारा ...ये कहानी फिर सही !!!

किस ने तोड़ा दिल हमारा ,ये कहानी फिर सही ......

यादें .... जब सर्दी का मौसम दरवाज़े पे दस्तक देता है,
सर्द हवाएँ चलने का अंदेशा जगाता है,तब एक बार फिर
कुछ भूली-बिसरी यादें ...ताज़ा होने को बेताब हो जाती है !
दिलो-दीमाग पर अपनी छाप छोड़ने को ...

और फिर, जब लफ्‍ज़ो  का सहारा नही मिलता ,ज़ुबां गुंगी हो जाती है !
तब किसी और की जुबां ओर लफ्जों का सहारा लेना पड़ता है |
....चलिए ये कहानी फिर सही |

आज ज़नाब गुलाम अली साहब को सुनते हैं ...उनकी मीठी
आवाज़ में ..हम सब की शिकायत ...उनके दिलकश और प्यारे
अंदाज़ में ....पेशे खिदमत है ये गज़ल ! मेरी पसंद यकीनन
आप सब की भी ....होगी ???

शायर :मसरूर अनवर साहब:-
दिल की चोटों ने कभी, चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा ,मैंने तुझे याद किया
इसका रोना नही, क्यों तुमने किया दिल बर्बाद
इसका ग़म है, कि बहुत देर में बर्बाद किया |
मैं नाचीज़,ज़नाब गुलाम अली साहब के रूबरू 










Monday, November 14, 2011

घने जंगल में ...सूखे कुँएं की टूटी मुंडेर ...




"कुँएं  की टूटी मुंडेर"


मैं घने जंगल में सूखे कुँएं  की
 टूटी हुई मुंडेर हूँ ...

प्यास बुझाने का वायदा तो..
 मैं करता नही पर रात की
 थकान मिटाने की मैं सवेर हूँ 
 अँधेरे में तो क्या ,दिन के उजाले में
 छन-छन के आती पेड़ों की रौशनी में
 सूखें पत्तों से भरा
 मैं एक घना ढेर हूँ ...

 कभी कोई भुला-भटका
 मुसाफिर आयेगा बैठेगा 
थोड़ी देर मुझ पर ...
प्यास तो नही थकान
 अपनी जरूर मिटायेगा|
 थोड़ी देर में चल देगा उठ कर
 न  देखेगा कभी पीछे मुड़  कर...

 न होगी हसरत फिर कभी इधर आने की
 सिर्फ जल्दी होगी उसे यहाँ से निकल जाने की

 ऐसे ही कटेगा वक्त मेरा
  फिर दिन भी ढ़ल जायेगा
  डर लगता नही अब अँधेरे से
 इंतज़ार में हूँ न जाने मुझे कब
 ये अँधेरा निगल जायेगा...

 मुझ सूखे कुँएं  की टूटी मुंडेर पर 
 न जाने कब कोई हाथ रख के  
  ठोकर खाने से सम्भल जायेगा ||


अशोक'अकेला'



Saturday, November 12, 2011

ऐ महोब्बत तेरे ,अंजाम पे रोना आया ....


जाने क्यों आज, तेरे नाम पे रोना आया .......
"यादें करूँगा ,अपनी ताज़ा
दिल आपका बहलाऊँगा
इसी बहाने अपनी पसंद 
आप को सुनवाऊंगा" ....

यादें हैं  ....यादों का क्या !अब इस उम्र में तो यादें ही आएँगी न ...?
पर बहुत अच्छा लगता है इन यादों के याद आने से ....कुछ समय के 
लिए ही सही...यह यादें ...याद दिला जाती है ....गुज़रे उन हसीन पलों की ..
जब  ऐसी ग़ज़ले कभी हमने भी गुनगुनाई थी ..भले ही अच्छे मूड  में न सही ..
अब अच्छे मूड  में यह गाने कौन गाना पसंद करेगा भला .......
पर यह भी सच है ...की हर उस शक्स को जो इस मंजिल पर चलेगा ...
अपनी मंजिल पाने तक किसी न किसी पढाव पर ऐसे,गीतों,ग़ज़लो  को 
गुनगुनाना  ही पड़ेगा...क्यों ?
तो आप भी सुनिए ....बेग़म  अख्तर की गाई यह ग़ज़ल  ....अच्छी 
लगेगी ....चाहे आपने कभी गुनगुनाई हो  या नही .......









Saturday, November 05, 2011

आइए....मेहरबां ,बैठिए जाने-जां....


शौक से लीजिए जी .....इश्क के इम्तहाँ...


"कभी कभी ऐसे भी गुन-गुना लेना चाहिए 
हो मौसम सुहाना तो मुस्करा लेना चाहिए"

यादें .... आज आप को सुनवाता हूँ....
अपने.... (और मेरे) समय का एक खूबसूरत चुल-बुला गीत 
जो अपनी मद-होश ,मस्त आवाज़ में गाया है!
आशा जी ने| 
और जिसको सिनेमा के पर्दे पर साकार किया है ...
अपने समय की सबसे खूबसूरत ,शोख और चंचल 
अदाकारा मधुबाला जी ने...
इस गीत में मधुबाला जी ने जिस खूबसूरती से अपनी 
मदमस्त आँखों से और अपनी दिलकश मुस्कान से अपने 
चाहने वालों को बैठने और इश्क का इम्तहाँ लेने का 
न्योता दिया है ....वो बस देखने और सुनने से ही तआल्लुक़
रखता है ....तो आप भी देखिए,सुनिए और कुछ देर के लिए 
खो जाइये अपनी गुज़री सुहानी यादों में ..... 

फिल्म: हावड़ा ब्रिज 
वर्ष: १९५८
संगीतकार : औ.पी.नैयर
गीतकार: कमर जलालाबादी 
आवाज़ : आशा जी 
सह:कलाकार : अशोक कुमार ,के एन सिंह आदि 

Tuesday, November 01, 2011

हाथों की लकीरों पे, एतबार न मैं करता था...


बस!वो मेरे माथे की, लकीरों को पढता था ||


यादें ...वो ...जिनके साथ मैं चलता हूँ ....

(अपने बचपन के...!!! दोस्त इन्दर को समर्पित)
मेरा दोस्त , मैं और हमारा बचपन

मैं और मेरा दोस्त 
मैं और मेरा दोस्त 
मैं और मेरा दोस्त 

अशोक और इन्दर
और
इसके बाद वो खो गया...न मिलने के लिए ...

पुराने जख्मों से आज, फिर टीस निकल आई है
 अतीत झाड-पोंछ कर,मुझे फिर तेरी याद आई है |


 याद आ गया ,मिल के रूठना और मनाना वो
 बड़ी निकली रे जालिम ,तेरी यह जुदाई है |


 छोड़ के चल दिया ,साथ मेरा;अंजाने रास्तों पे
 तोड़ के अपने, वादे निकला;तू बड़ा हरजाई है |


 करता रहा उम्मीद, तुझसे मैं;भरपूर वफा की
 क्या कसूर?करी जो तुने;मुझसे ऐसी बेवफाई है |


जब भी उदास होता हूँ ,बस तुझे ही याद करता हूँ 
 याद करके तुझे ,आज फिर मेरी आँख भर आई है |


 मिसाल थी हमारी दोस्ती की, उन सबके वास्ते
 छोड़ मुझे "अकेला" करी दोस्ती की जग-हँसाई है |


अशोक'अकेला'








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