लगा के बेटियों को, गले से है हँसाया जाता
न इसके के बदले, कभी भी है रुलाया जाता
बेटो में देखता बाप, अपने है बचपन की छाया
मिलता बुढ़ापे में सुकून, पा कर है इनका साया.....
मेरी वो आरज़ू......जो हो सकी न पूरी ???
काश! मैं भी माँ के आँचल की, छाया में सोता
खूब जी भर खिलखिलाता, फिर कभी खुल के रोता
पर ऐसा हो न सका ...
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काश! मेरी भी कोई छोटी बड़ी, एक बहन होती
फेर सर पे ममता का हाथ मेरे, वो खूब रोती
पर ऐसा हो न सका ...
काश! मेरा भी कोई, जो भाई तो होता
रख के सर जिसके कंधे पर, मैं खूब रोता
पर ऐसा हो न सका ...
काश! वो दोस्त मेरा, जो आज भी होता
लगा सीने से मुझे, मेरे जख्म धोता
पर ऐसा हो न सका .....
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--अशोक 'अकेला'
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Tuesday, February 23, 2016
मेरी वो आरज़ू......जो हो सकी न पूरी ????
Thursday, February 04, 2016
कितना अब और इंतज़ार करूँ मैं...???
हद हो गई इंतज़ार की ....इधर तो कोई
झाँक के भी राज़ी नही लगता ...किसी को
क्या कहें ..यहाँ अपना भी ये ही हाल है ..इधर आते
आते आज छे महीने होने को आ रहे हैं ???पता नही
क्यों ...पर यहाँ जैसा अपनापन कहीं नही ..यहाँ आ कर
ऐसा लगता है जैसे भूला भटका शाम को अपने घर आ
जाये ....और भूला न कहलाये ....
फेस बुक तो है...जब तक आबाद
ब्लॉग तो रहेगा ..हमेशा ज़िन्दाबाद||
कितना अब और इंतज़ार करूँ मैं...??? पूछता तो हूँ हमेशा ...फिर बार बार करूँ ....
आरज़ू है मेरी तेरा , मैं
दीदार करूँ
तू न मिले मुझसे, मैं
इसरार करूँ
तू निबाहे न वादा , मैं
ऐतबार करूँ
तू आये गी अभी, मैं
इंतज़ार करूँ
तू चाहे न करे प्यार, मैं
बार-बार करूँ
तू उठवाये मुझसे कसमें , मैं
इकरार करूँ
अब तो आजा तुझसे, मैं
प्यार करूँ
माने न तू मुझको अपना , मैं
जाँ निसार करूँ
आखिर इक अदना सा इंसान , मैं
कितनी मनुहार करूँ ..???
अशोक 'अकेला '
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