Saturday, November 24, 2012

सुना है ! कल रात मर गया वो.......


















न जाने कौन सा ज़हर है इन फिज़ाओं में 
ख़ुद से भी ऐतबार.उठ गया है अब मेरा ........
...अकेला
मरने वाले के साथ , कौन मरता है 
कल दिन में तो , अच्छा-भला था 
दिल में था कितने ...जख्म लिए वो 
ये गिनती भला...आज कौन करता है |

चलो अच्छा हुआ , मर गया वो......

जिन्दगी भर किन्ही ,सोचों में डूबा रहा 
अच्छा हुआ ...आज मर के तर गया वो
जिन्दगी भर , तिल-तिल जलता रहा 
अच्छा हुआ ...आज पूरा जल गया वो 

चलो अच्छा हुआ , मर गया वो.....

चलो अब , खत्म हुई मुलाकातें 
यहाँ पर जितने मुँह ...उतनी बातें
बहुत पहले से ही था , मर गया वो 
जिन्दगी से जो ...था डर गया वो 

चलो अच्छा हुआ , मर गया वो.....

जिन्दगी जी उसने , जैसे जमीं हो बंजर 
पीठ अपनी में ...लेके  घोंपा  हुआ वो खंजर 
जीते-जी हर , अपने से डर गया था वो 
सुना है कि,  कल रात मर गया वो ......

चलो अच्छा हुआ ,मर गया वो ...!!!
अशोक"अकेला"



Friday, November 16, 2012

ठोकरों का मारा....यह दिल बेचारा !!!

आज फिर से दाग़ा गया हूँ 
शब्द-रूपी जलती मशालों से ,
उभर आये दिल के फफ़ोले
जो दबे पड़े थे सालों से ...
---अकेला 
बार-बार भ्रम के जाल में, फंस जाता हूँ 
क्यों मैं  अपने दिल पे, चोट खाता हूँ

उम्र भर दुखाया दिल को, मैंने अपने
पर बाज़ मैं आज भी, नही आता हूँ

हर दर पे जा-जा खाई, ठोकर मैंने 
फिर दौड़ा उसी दर पे, चला आता हूँ 

शायद पलट गई हो अब, तक़दीर मेरी 
यही आज़माने मैं वापस, चला आता हूँ 

हर बार करते हैं वो, बेआबरू मुझको 
हर बार मैं वापस, बेआबरू होने आता हूँ 

कस्म उठाता हूँ ,अब वापस न आऊंगा 
तोड़ देता हूँ कस्म ,वापस चला आता हूँ

जान गये हैं, वो सब भी मुझे अच्छी तरह 
मैं बेसहारा ,कब तक "अकेला" रह पाता हूँ....
अशोक'अकेला'
    

Monday, November 05, 2012

उम्मीदों के चिराग़....!!!


यह  रचना मेरे द्वारा  पिछली दीवाली पर रची गई थी| 
जो मैंने सुबीर जी के रचे दीवाली मुशायरे पर भेजी थी |
पर मेरा भाग्य या दुर्भाग्य  यह रचना दीवाली बीत जाने पर ,
एक और नौजवान शायर के साथ ' बासी दीवाली मनाते है "के
मौके पर सुबीर संवाद सेवा के मंच पर सुबीर जी ने प्रकाशित 
की थी.... 
आज भाग्य से इस रचना को मैं दीवाली से थोडा पहले ही आपके 
समक्ष प्रस्तुत करके ....आपको  दीवाली की शुभकामनाएँ देना 
और अपने लिए आपसे स्नेह प्राप्त कर लेना चाहता हूँ ......
तो प्रस्तुत है ,आप सब के लिए यह मेरी  रचना...अग्रिम  दीवाली मुबारक 
और आशीर्वाद के रूप में !!!



उम्मीदों के चिराग़

दीप खुशियों के जल, उठे हर सू
इक लहर सी है अब, उठे हर सू

हर तरफ हैं, बाजारों में मेले 
फूल खुशियों के, खिले हर सू
दुःख सभी का मिटेगा, सोच के ये 
सब गले आज मिल, रहे हर सू 

आँख से आंसू, मैंने पोंछ दिए 
फूल ही फूल जब, दिखे हर सू

दीप जलते हैं, ज्यों दीवाली  में 
दिल में अब रौशनी, भरे हर सू 

जी लिया है, बहुत अंधेरों में 
रौशनी की नदी, बहे हर सू 

जिंदगी जब हो, झूम के गाती 
चुप "अकेला"  ये क्यों, फिरे हर सू || 
अशोक'अकेला'


( सुबीर जी ने इसे अपने आशीर्वाद से सवांरा )
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