मैं देखता हूँ ,अपने अतीत में
तूने डेरा अपना जमा रखा है
दिल के हर टूटे हुए टुकड़े में
तूने चेहरा अपना छुपा रखा है
---अशोक "अकेला "
सुकून मिलता है ....अतीत में !!!
ज्यों काफ़िर मुहँ से लगी छूटती नही
ये यादों की लड़ी कभी भी टूटती नही
कुछ अरसे के लिए हो जाता हूँ ,बेखबर
फिर भी ये कभी मुझसे यूँ रूठती नही
करने लगता हूँ याद बीती हुई यादें तभी
जब कभी मुझे कोई ख़ुशी सूझती नही
इन में समाई हैं मेरे सुख-दुःख की हवाएं
जिन्हें आज की ज़हरीली हवा लूटती नही
बिखर जाती है मेरी सोच अनेक यादों में
वहाँ कोई भी आँख, शक से घूरती नही
पलट के देखने दो मुझे यादों की तरफ
चारों तरफ अब मेरी निगाह घूमती नही
लौट के सुकून मिल जाता है 'अकेला' अतीत में
वर्तमान में तो अब सुकून की हवा झूमती नही....
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कैनेडा ,टोरंटो से ....