बस!!! बेरुख़ी मुझको भाती नहीं .....
मायूस हूँ, उदासी अब मेरी जाती नही
बहुत मनाया, बेरुख़ी उनकी भाती नही
लाख चाहा, कभी वो भी मनाये मुझको
आदत है उनकी, वो कभी मनाती नही |
सब समझाते हैं, आ-आ के मुझको ही
क्या उनको कुछ, समझ आती नही
कोशिशें नाकाम रहीं, भूलने की उनको
यादेँ हैं उनकी,कि अब तक जाती नही |
माथे पे बिखरी, जुल्फों की वो घटाएं
क्यों उसके चेहरे पे, अब छाती नही
बड़ी हसरत से, देखता हूँ मैं उनको
वो है कि अब, कभी मुस्कराती नही |
उसके गिले-शिकवे, मैं किससे करूँ
बात है कि अब, लबों तक आती नही
तरकश से तीर,जुबां से निकली बात
लौट कर कभी,वापस आती नही |
रात भर बरसा, मेरी आँखों से पानी
क्यों "अकेला" प्यास उनकी जाती नही.......
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अशोक 'अकेला' |
लाख चाहा, कभी वो भी मनाये मुझको
ReplyDeleteआदत है उनकी, वो कभी मनाती नही |
बड़ी हसरत से, देखता हूँ मैं उनको
वो है कि अब, कभी मुस्कराती नही |
दिल भिगो गई ये लाईने सलूजा साहब !
दिल भिगो गई आपकी ये महोब्बत गोदियाल भाई जी !
Deleteआभार!
बस!!! बेरुख़ी मुझको भाती नहीं .....
ReplyDeleteमायूस हूँ, उदासी अब मेरी जाती नही
सच्ची - मुच्ची !!
सादर
बिल्कुल सच्ची -मुच्ची!!
Deleteखुश रहें!
बस!!! बेरुख़ी मुझको भाती नहीं .....
ReplyDeleteमायूस हूँ, उदासी अब मेरी जाती नही
... मन को छूते शब्द
सदा खुश रहें ,,सदा जी ....
Deleteतरकश से तीर,जुबां से निकली बात,, लौट कर कभी नहीं आती
ReplyDeleteसच को प्रकाशित करती है पंक्ति
और ये अंतिम दो पंक्तियाँ
रात भर बरसा, मेरी आँखों से पानी
क्यों "अकेला" प्यास उनकी जाती नही
हृदय को आन्दोलित कर गई
बहुत-बहुत आभार! यशोदा जी ..
Deleteशुभकामनायें!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकोमल से एहसासों से लबरेज़ खूबसूरत रचना
ReplyDelete@ मदन जी
Delete@संगीता जी
दिल से शुक्रिया आपका !
खुश रहें!
बिलकुल-
ReplyDeleteनजरें ऐसे ना फेरो-
आभार भाई साहब ||
रविकर जी ,
Deleteऐसे न मुझको घेरो !!
आभार जी !
तरकश से तीर,जुबां से निकली बात
ReplyDeleteलौट कर कभी,वापस आती नही |
काश की ये बात दिल में उतर जाये।
आमिर भाई ...दिल तो नाज़ुक है !:-)
Deleteशुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .
ReplyDeleteज़ज्बातों का सैलाब है इस रचना
संक्षिप्त सुन्दर और मौजू प्रस्तुति
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
बुधवार, 9 जनवरी 2013
शर्म इन्हें फिर भी नहीं आती
http://veerubhai1947.blogspot.in/
ये यादों के दरख्त अपनी छाया देते रहतें हैं ता - उम्र ,ये यादें उनकी होतीं हैं होती हैं .और दरख़्त दरख़्त मेरे अन्दर .
वीरू भाई ..किसी ने सही कहा है ?
Deleteहम सायादार पेड़ ज़माने के काम आये
सूखने लगे तो जलाने के काम आये !!!!
स्नेह देते रहे !
मायूस हूँ, उदासी अब मेरी जाती नही
ReplyDeleteबहुत मनाया, बेरुख़ी उनकी भाती नही
लाख चाहा, कभी वो भी मनाये मुझको
आदत है उनकी, वो कभी मनाती नही |
क्या कहने
बहुत सुंदर
आभार महेंद्र जी ! आप जैसे निर्भीक पत्रकार का !!
Deleteआदत है उनकी वो कभी मनाती नहीं, छोटी सी कविता मन के कितने तारों को झंकृत कर देती है हम क्या कभी जान पाएंगे।
ReplyDeleteमाथे पे बिखरी, जुल्फों की वो घटाएं
ReplyDeleteक्यों उसके चेहरे पे, अब छाती नही
बड़ी हसरत से, देखता हूँ मैं उनको
वो है कि अब, कभी मुस्कराती नही ...
बहुत खूब ... वो हैं आदत ससे मजबूर .... पर हमारी उनको कुछ कहने की आदत भी जातई नहीं ...
बहुत ही खूबसूरत नज़्म है ...
बहुत ही भावपूर्ण रचना। सुन्दर प्रस्तुती,धन्यबाद।
ReplyDeleteअंतर्तम तक पहूंचती है आपकी रचना, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
उदासी में भी बहुत दिलचस्प रचना है।
ReplyDeleteबढ़िया .
भावप्रवण पंक्तियाँ
ReplyDelete@ सौरभ जी @दिगम्बर नासवा जी @राजेन्द्र जी @ताऊ जी @डॉ.दराल जी @डॉ.मोनिका जी ,
Deleteये आप सब का प्यार और बड़प्पन है ...इसके लिए आप सब का मैं दिल से आभार करता हूँ !
आपकी इस पोस्ट की चर्चा 10-01-2013 के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत करवाएं
तस्मात् युध्यस्व भारत - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDelete@ दिलबाग जी ..आप का आभार !
Delete@ब्लाग बुलेटिन ...आभार जी ,,
waah sir...behad khubsurat nazam hai ....best wishes
ReplyDeleteशानदार....मगर इसके बिना मजा भी तो नहीं है....
ReplyDeleteदिल को छू गयी आपकी नज़्म! बहुत ही खूबसूरत!
ReplyDelete~सादर!!!
@पल्लवी जी ,@अरुण जी,@अनीता जी ..
Deleteआप सब का दिल से आभार!
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 10 -01 -2013 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
सड़कों पर आन्दोलन सही पर देहरी के भीतर भी झांकें.... आज की हलचल में.... संगीता स्वरूप. .
धन्यवाद्! संगीता जी !
Deleteउफ़ बहुत ही प्यारी नज़्म दिल को छू गयी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लफ्जों में बयान की है अपनी व्यथा।
ReplyDeleteबस!!! बेरुख़ी मुझको भाती नहीं
ReplyDeleteमायूस हूँ,उदासी अब मेरी जाती नही,,,
बहुत उम्दा मन को छूते शब्द,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
@वन्दना जी ,@ रेखा जी ,भाई भदोरिया जी ...
Deleteआप की प्यार भरी आमद का शुक्रिया !
सब समझाते हैं, आ-आ के मुझको ही
ReplyDeleteक्या उनको कुछ, समझ आती नही
कोशिशें नाकाम रहीं, भूलने की उनको
यादेँ हैं उनकी,कि अब तक जाती नही
वाह बहुत खूब
शानदार || शानदार || शानदार ||
ReplyDelete:-)
एहसास यूँ ही महकते रहें आपके..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteउसके गिले-शिकवे, मैं किससे करूँ
ReplyDeleteबात है कि अब, लबों तक आती नही
तरकश से तीर,जुबां से निकली बात
लौट कर कभी,वापस आती नही |--बहुत सुन्दर!
New post : दो शहीद
@अंजू जी .रीना जी ,पाण्डेयजी.ओंकार जी और प्रसाद जी .....
Deleteबहुत-बहुत शुक्रिया जी !
✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
कोशिशें नाकाम रहीं, भूलने की उनको
यादेँ हैं उनकी,कि अब तक जाती नही |
देखिए , सच तो ये है कि आप-हम जैसे एक बार जिसे चाहने लगते हैं , फिर उसे भूलना चाहते भी नहीं
:)
क्यों , सही कहा न ?
परमप्रिय चाचू अशोक सलूजा जी
सादर प्रणाम !
बढ़िया लिखा है ।
लिखते रहें … और ऐसे ही श्रेष्ठ लिखते रहें …
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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राजेन्द्र जी ..आप की मंगलकामनाओ का बहुत शुक्रिया !
Deleteआपको भी मुबारक हो !
यशोदा जी ,आभार आपका !
ReplyDeleteरात भर बरसा, मेरी आँखों से पानी
ReplyDeleteक्यों "अकेला" प्यास उनकी जाती नही.......
बेरुखी बहुत दर्द देती है. बहुत अच्छा दिलको छूती हैं ये पंक्तियाँ.
शुभकामनायें लोहड़ी, पोंगल, मकर संक्रांति और माघ बिहू के पर्व पर.
रचना जी ..आप की स्नेह से भरी शुभकामनाओ का बहुत आभर जी !
Deleteसदा खुश और स्वस्थ रहें!
बाऊ जी, नमस्ते!
ReplyDeleteवो सब समझते हैं, सिर्फ अदाकारी नासमझी की है!
ढ़
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थर्टीन रेज़ोल्युशंस!!!
कोशिशें नाकाम रहीं, भूलने की उनको
ReplyDeleteयादेँ हैं उनकी,कि अब तक जाती नही |
....ये यादें कहाँ पीछा छोड़ते हैं...दिल को छूती बहुत भावमयी रचना...
बहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई
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