Tuesday, June 28, 2011

फ़ना के बाद भी ,मुझ को सता रहा है कोई , निशानें कब्र को मेरी मिटा रहा है कोई...


..."क्या आप मेरी पसंद की 'ग़ज़ल ' सुनना पसंद करेंगें"..?? 

जब दिल बहुत कुछ कहने को करें और आप से थोडा सा भी न
कहा जाये | शब्दों की कमी आप को खलने लगे| उस समय अपनी
पसंद की ग़ज़ल या गीत को अपनी जुबाँ बना कर, कहना, सुनना
और सुनाना  सबसे बेहतर महसूस होता है|
ऐसा लगता है ,जैसे आप के अपने एहसासों को कोई अपनी दर्द
भरी आवाज से आप को वोही सब महसूस करा रहा है ,जिसे आप कहना
चाह कर  भी कह नही पा रहे थे |
...मेरा ,ऐसा मानना है कि ग़ज़ल , देखने से ज्यादा सुनने से संबन्ध रखती है |
उसको सुनने से आप उस के भावोँ को अच्छी तरह महसूस करते हैं |
देखने से ध्यान बंट जाता है ,और शायर का पैगाम आप तक वैसा नही
पहुंचता ,जैसा वो चाहता है | हाँ....शायर या ग़ज़ल  गाने वाले के रूबरू बैठ कर
उसको सुनना अलग बात है...और  वीडियो की रूकावट भी सुनने में ख़लल
पैदा करती है ...
...बस इसी लिये मैं आप को वीडियो न दिखाकर,सिर्फ ग़ज़ल  सुनवा रहा हूँ |
आप से वादा है ,कि आप मायूस नही होंगे ... हल्के से आँखे बंद करके ,सुकून
से लेट कर ,इस ग़ज़ल  को सुनिये ,ये आप के कानों से होकर सीधी आप के
दिल के अन्दर उतर जायेगी ...पेश है ,आप के लिये ...
सुना रहें हैं : परवेज़ महदी...



Thursday, June 23, 2011

उम्मीद...!!! अब, भी बाकी है..??

मैं नही जानता ,गज़ल क्या है,नज्म क्या है ,गीत कैसे
लिखते हैं और कविता कैसे बोली जाती है ...?
जो दिल से निकला वो मैंने लिख दिया ...बस ,और ...?

न मिली बचपन में गोद वो
जिसमें सुख से सो लिये होते,
हँसने  की हसरत तो तब रहती
जो खुल के रो लिये होते ॥
माँ

 ये दुखो से भरी दुनियां ,
 जितनी भी बददुआएं लगाती है
 इक माँ है, जो अपनी दुआओं से
 औलाद को बचाती है || 

 अब सब कहते है, 
बच्चा नही , बुढ़ा हूँ मैं
 रोकते है टोकते है, मुझको 
 अब क्यों बैठा, रूठ के कोने में
 खुल के बोल नही सकता
 खुल के हँस नही सकता
 अब डर भी लगता है, 
 खुल के रोने में | 

 कुछ तो रहें होंगे 
ऐसे कर्म मेरे, 
जो सुख न तेरा मैं 
पा सका,
 काट ली मैंने
 येह जिन्दगी ,
सहारे नाम के तेरे

 तू जहां भी होगी,  मुझे देखती होगी
 मेरे दुःख में दुःख और खुशी में,
 खुशी के आंसू रोती होगी

 इस जिन्दगी में मिले, भले न सही
 उम्मीद अभी,   अब भी बाकी है 
 उम्र का सफर तो कट चुका
 नही जानता ,कब, कहाँ और कैसे
 पर मिलने की आस... 
...अब भी बाकी है |


अशोक'अकेला'


Saturday, June 18, 2011

किस, जगह जाएँ ...किस को दिखलायें ...जख्में दिल अपना ...


मेरी यादों के...  गुलदस्ते से एक सदाबहार महकता  फूल ...
..आज मैं खोज़ के लाया हूँ ,एक three-in- one
flavored ice cream cone , जिसे पा कर आप का मन...खुशी, गम् और
दर्द तीनों का एहसास करेगा |
ये आशा भोंसले जी की आवाज में है ,पर इसका वीडियो पाने में ,मैं
असमर्थ रहा | पर मेरा आप से वादा है कि इसे सुन कर आप को
कोई मायूसी नही होगी | सोने से पहले ,आँखे मूंद कर एक शांत
माहौल में सुनें | ये आप को आप के अतीत की यादों में ले जायेगा ,
और मेरा ...मानना है कि अतीत कि यादें हमेशा सुकूं देती है |
चाहे उन यादों में दर्द का समावेश ही, क्यों न हो|
पर एहसासों को महसूस करने कि जरूरत तो है ही... 
तो सुनिये ...फिर गिला-शिकवा बाद में सही ...

फिल्म : लाइट हाउस-१९५८
फिल्म : ठोकर - १९५३




(अगर आप को ...अच्छा लगे तो मैं इसका आडियो फाइल आप को ई-मेल 
कर सकता हूँ ) अशोक सलूजा 

Monday, June 13, 2011

मेरी यादों के... गुलदस्ते से एक सदाबहार महकता फूल ...


मस्ती भरा है समां...हम तुम हैं दोनों यहाँ ...

आज मैं आपको एक राज़ की बात बताता हूँ ...पर बता दिया 
तो राज़ काहे का ...? पर नही आज मैं बता के ही  रहूँगा कि मैं अनपढ़ 
क्यों रह गया,,?  मेरे पास शब्दों की  कमी क्यों है..? 
अब जो बच्चा... नही; किशोर जब १६ साल कि उम्र में और 
दसवीं क्लास में पढाई के बदले ऐसी-ऐसी तुकबन्दी करेगा 
तो वो दसवीं क्लास से आगे कैसे बड़  सकता है...???

अशोक सलूजा 
सुस्ती भरा हैं समां..ssss
पढ़ने का मूड नही यहाँ..sss
हम तो चले बाहर,
तुम भी आ जाओ, 
जलवे दिखाऊँ वहाँ..sss
सुस्ती भरा है समां ..sss 

इस लिये मेरे साथ तो, ये होना ही था और हुआ |
और शब्दों की कमी भी होनी थी...तो इसमें हैरान या 
परेशान होने की तो कोई बात ही नही रही न... ? 
पर एक बात तो आप सब को माननी ही पड़ेगी कि
मेरे तुकबन्दी के एहसास तो तब भी थे और आज भी 
हैं |
आज मैं आपको १९५८ का वो गीत सुनवाता हूँ जिसकी 
मैंने पैरोडी का सैम्पल उपर दिया है| पैरोडी तो पुरे गाने 
की बनाई थी और सारी क्लास बड़े शौक से सुनाने की
फरमाइश भी करती थी | पर अब ये सब गुज़रे ज़माने 
की बात है...

आज! मुझे पता है ,इस पर व्यंग भी कसे जायेंगें ,टीका-टिप्पणी 
भी होगी ...पर तो क्या ...? झूठ से तो सच्चाई बेहतर है ,कई 
झूठ बोलने से तो बच जाऊंगा |अब बुद्धिजीवियों से खुल कर कुछ 
सीखने को भी मिल जायेगा | जो कहा सच कहा ,सच के 
सिवा कुछ नही |

बात १९५८ ,जून महीने की है ,गर्मियों के छुट्टी में मैं कश्मीर, 
श्रीनगर में था| वहाँ मैने ये फिल्म परवरिश देखी थी |
यानि आज से ठीक ५३ साल पहले ...१६ साल की उम्र में,
और आज मैं ७० वें साल में हूँ | उस उम्र में ऐसा ही होता 
है ,मेरे आभासी रिश्तों के  भाई.बहनों और बच्चों ...थोड़ी मस्ती, 
थोडा प्यार और थोडा रोमांस ...बस फिर जिन्दगी भर दुनियादारी 
और काम ही काम, जो आज तक जारी है ...
तो सुनिये ये सदाबहार मस्ती भरा गीत ...
वर्ष : १९५८ 
फिल्म : परवरिश 
पर्दे पर: राज कपूर ,माला सिन्हा 
गायक/गायका: मन्ना डे और लता जी  
संगीतकार: दत्ता राम 
गीतकार : हसरत जयपुरी

Wednesday, June 08, 2011

आज के समय की पुकार ...जो हर सच्चे,वीर और देशभक्‍त ;देशवासी की है ...


ये हर उस देशवासी की लड़ाई है ,भ्रष्टाचार के खिलाफ़
जो अपने देश को , भ्रष्टाचारियों से मुक्‍त कराना
चाहता है |
मैं भी उन में से एक हूँ ,और मेरे जैसे भी बहुत हैं...
जैसा की मैंने हमेशा माना ,कि मेरे पास शब्दों की
कमी है ,पर मेरी ये भावनाएं हैं और बहुत से एहसास हैं |
जिन्हें मैं इस 'गीत' के द्वारा आप तक पंहुचाना और
महसूस कराना चाहता हूँ |
यही भावनाएं ,एहसास आप,मेरे और हम सब भारतवासियों
के भी होंगें ,इसका मुझे पक्का और अटल विश्वास है |
हम सब भारतवासी अपने भारत से अटूट प्रेम करतें हैं |

तो आइये सुनते हैं ,वो गीत जो हमारी खून भरी रगो में
एक इन्कलाब पैदा कर देगा ...जिसकी हम सब को बहुत
ज़रूरत है ....
Rafi Ji 
वतन की राह ,हमें वतन; के नौजवान शहीद हो ...
वर्ष :1948
फिल्म: शहीद 
पर्दे पर: दलीप कुमार और साथी 
स्वर:  रफ़ी और साथी 
संगीतकार: गुलाम हैदर 
गीतकार: कमर ज़लालाबादी 
सहकलाकार:  कामिनी कौशल 


शुभकामनाएँ आप सब को ...जय भारत !

Saturday, June 04, 2011

बचपन ने सुनी नही ,जवानी ने कहने न दिया ,बुढ़ापा खामोश है ...

क्या आप पढ़ेगें..?? "बुढ़ापे की सौगातें " जवानी तो अभी मदहोश है |

(पंजाबी पोस्ट से हिन्दी पोस्ट)

घुटने चलते नही ,कन्धे हिलते नही 
आँख से दिखाई नही देता 
कानों से सुनाई नही देता 
और नाक से सुंघाई नही देता |
माथे में दर्द है ,शरीर सारा सर्द है |
मुहँ में दांत नही ,पेट में आंत नही |

कुछ अच्छा हाल नही , सिर पे रहे बाल नही |
न रहा कोई आनन्द,न रही कोई बहार हैं 
शरीर से पेट भी आ गया अब बाहर है 
पीठ का दर्द भी करता अब बेहाल है 
बैठ के उठना भी ,अब बना जी का जंजाल है 
अब तो रात को सोना भी लगे इक फांसी है 
तमाम रात उठती जोरों से खांसी है ||
नब्ज की धडकन भी ,अब कुछ देर बाद मिलती है 
स्प्रिंग  की तरह अब गर्दन भी, कुछ-कुछ हिलती है |
अब तो अपने चलने के लिये भी, चाहिए इक लठिया
ये अलग बात है, सारे शरीर के अंगों; में दौड़ता है गठिया |

अब रहा न किसी पे भी कोई जोर है 
अब दिल भी अपना हो गया कमजोर है |
न रहा अब कोई आदर ,न रहा सत्कार भी 
अब लाठी समेत,अपनी चारपाई भी बाहर ही ||

गोली  खाते हैं ,बैठ जाते हैं 
असर ढलता है ,ऐंठ जाते हैं 
अब कभी न की हुई भूलों ,की भी 
माफ़ी मांगते नजर आते  है |
डर के मारे अपनी बीवी से भी 
अब भागते नजर आते हैं |

अब तो हमारी यादाश्त का भी 
हुआ बुरा हाल है
राह चलते को भी, हम मनाते है 
हद्द तो तब हो जाती है ! 
जब अपना घर भूल ,पडौसी के घर 
घुस जाते हैं |
जब कोई पूछता है ,बाबा जी क्या हाल है..? 
पहचाना नही ! कौन है ..? ,होता मेरा ये सवाल है |
किसी को अच्छा सिखाते है ,तो सब हँसते हैं 
इक-दूजे को देख, पूछते है ;बाबा जी कौन सदी में बसते हैं|
हर माँ-बाप की रूह, अपने बच्चों के सुख में बसती है 
जिनको हमने हंसना सिखाया ,वो औलाद आज हम पे हँसती है |

ऐसा लगता है ,अब आ गया बुढ़ापा जी 
जल्द खत्म हो जाएँ गे अब ये  बाबा जी |
ये बुढ़ापा सुना कर ,न तो मैंने आप को डराया है 
और न ही भरमाया है |
पर ये जीवन का कढवा सच है ,कि बुढ़ापे का बस ये 
ही सरमाया है |

सो, एक-एक करके मौत का इकठ्ठा हो गया सारा सामान ,
बस थोड़ी... दूर रेह गया अब शमशान ||
अब एक बार ,सारे बंधू मिल के बोलो ,
जय श्री राम ,जय श्री राम ,जय श्री राम ||
अशोक'अकेला'

अगर आप इस को पंजाबी
आडियो में सुनना पसंद करें...
 तो अपने दायें ,उपर मेरे
 आडियो पर चटका लगाएं |

Thursday, June 02, 2011

राज किरण नाम का अभिनेता याद है आपको ...?


क्या कहा "नही" तो नीचे देखिये ,सुनिए ...फिर बात करतें हैं ,
उसके बारे में ....
जगजीत सिंह 
 <

फिल्म : अर्थ
 वर्ष : १९८२
 संगीतकार और गायक :जगजीत सिंह
 गीतकार: कैफी आजमी 
पर्दे पर : राज किरण,शबाना आजमी

 तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
 क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो
 क्या ग़म है जिसको छुपा रहे हो
 तुम इतना जो .....

 सुना आप ने ... राज किरण को भी देखा और पहचाना होगा शबाना आजमी के साथ ... इसी राज किरण अभिनेता ने पुरानी फिल्म सुभाष घई की क़र्ज़ में ऋषि कपूर के पूर्व-जन्म का किरदार निभाया था | अगर आप ने 'क़र्ज़ ' देखी होगी तो याद आ गया होगा ... इस राज किरण अभिनेता ने अपने अभिनय से इस गीत को जगजीत सिंह की आवाज में पर्दे पर साकार किया और हम सब देखने वालों का अपने सशक्त अभिनय से मनोरंजन किया | क़र्ज़ के अलावा और भी कुछ फिल्मो में काम किया...
...फिर इनके वक्त ने पलटा खाया , अपने निजी कारणों से फ़िल्मी दुनिया से गायब हो गये ... और एक दिन सब ने सुना ...वो इस दुनियां में नही रहे... कुछ इनके खास चाहने वाले फ़िल्मी दोस्तों को ये बात पचा पाने में मुश्किल हो रही थी | जिनमें से एक ऐक्ट्रेस दीप्ति नवल जी ने पिछले दिनों फेस-बुक पर अपनी पोस्ट डाल कर पता लगाने की कोशिश करी ,पर कामयाबी नहीं मिली
 ... आखिर दोस्तों की मेहनत रंग लाई...और १,जून २०११ के टाइम्स आफ इंडिया के, पेज-१३ और    दिल्ली टाइम्स ,पेज नम्बर -१२ पर ये खबर विस्तार-पूर्वक छपी है |आप चाहें तो इसको पढ़ सकते है, उसी दिन इसकी न्यूज़ एन. डी. टी.वी .पर भी सुबह ११ बजे दी गयी थी | इस समय अभिनेता राज किरण .अपनों से दूर... यहाँ तक कि अपनी बीवी और लडके से भी दूर या यूँ कहें इन सब का छोड़ा हुआ,त्यागा हुआ,इनकी बेरुखी से हारा और अपने बुरे वक्त का मारा...Atlanta, U.S.A. के Mental hospital में इलाज करा रहा है |
 कौन जाने, कितने साल...बीत गये इन दुखो में ...क्यों और कैसे .??? इनको ढ़ूढ़ने का सारा श्रय श्री ऋषि कपूर जी को जाता है | वो आगे भी राज किरण के लिये बहुत कुछ करने की सोच रहें है | राज किरण जी ने अपने अभिनय से अपने देखने वालों का जितना भी मनोरंजन किया है ...उसके बदले हम सब, उनकी अच्छी सेहत और अच्छे भविष्य के लिये शुभकामनाएँ तो दे ही सकतें है..न ? तो मेरे साथ आप सब भी दीजिए !
 शुभकामनाएँ ! 
शुक्रिया ! 
आप सब खुश रहें ,स्वस्थ रहें | 
अशोक 'अकेला'

Wednesday, June 01, 2011

एक उम्मीद ! जगाता प्यारा एस एम् एस ...आप सब के लिये ...



हर गुलाब के फूल से नफरत बेवकूफी है

 क्यों कि, किसी एक गुलाब से आप को कांटा चुभा... 

अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश छोड देना

 क्यों कि, कोई एक सपना पूरा नही हुआ...

 अपने इष्ट देव की पूजा छोड देना

 क्यों कि, कोई एक प्रार्थना  सुनी नही गयी...

 सब दोस्तों की निंदा करना

 किसी एक ने विश्वास तोडा...

 प्यार पे भरोसा छोड देना

 किसी ने प्यार में  धोखा दिया...
 याद रखो !
 जिन्दगी फिर मौका देगी
 नए दोस्तों का ,नया प्यार पाने का... 
 और नई अच्छी शुरूआत का
 हमेशा उम्मीद का दामन थामे रखो....
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