Sunday, December 30, 2012

याद आते हैं वो, अब बचपन के दिन !!! क्योंकि फुर्सत के हैं, ये अब रात-दिन...


यादें ---अनकही अपने बचपन की ....इनको मैंने 
१५-१६ साल पहले लिखा था और दो साल पहले 
शुरू-शुरू  में अपने ब्लॉग पर भी .......
आज फिर मेरी यादें ,मुझे अपने बचपन  में खींच 
ले गयी और जो  मेरे अंदर सोया बच्चा था उसे जगा दिया |
बहुत कोशिश की थपथपा कर बहलाने की ,सुलाने की 
पर दिल तो बच्चा है न ??
समर्पित करता हूँ...अपनी यादों को ...अपनी पूज्य नानी जी ,
मामा जी और अपने प्यारे दोस्त इन्दर को जो अब मेरे जीवन 
में मेरे साथ नही ....पर यादों में मरते दम तक रहेंगे !!!!



मेरी नानी जी 









मेरे मामा जी 










मैं और मेरा दोस्त 







फिर एक नई बोतल , फिर वोही  पुरानी शराब
फिर आपको बताऊँ कैसे हुआ मेरा ख़ाना-ख़राब
मेरा बचपन 


मुझ को पाला था ,पोसा था 
बड़ा प्यार दिया था मेरी नानी ने 
मुझ को अपने कन्धों पे घुमाया था 
मेरे मामा ने अपनी जवानी में ...
न माँ ,न मौसी ,न भाई ,न बहना और न नाना 
बस थी मेरी नानी और था एक मामा सयाना 
पड़ती थी मुझ को भी मार बचपन में 
जिसकी उठती है मीठी पीड़ अब भी पचपन में 
पड़ा था मेरा भी बचपन में शरारतों से पाला 
कभी मुझको भी था उन्होंने मुसीबतों में डाला 
याद आती है अब भी मार मामा की 
याद आती है सब को नानी,मुझ को 
याद आती थी तब नाना की ...

कभी थप्पड़ और कभी-कभी लातो की मार 
छुपा रहता था ,कहीं उसमें भी मामा का प्यार 
बेचारा मामा तो चाहता था पड़ना कमज़ोर 
मेरा बचपन ही था कुछ ज़्यादा मूह्ज़ोर
बीच-बचाव में जब छुड़ाने आती थी नानी
तब कुछ ज्यादा ही कर जाता था मैं मनमानी....

चार ,आठ दस आने का वो जमाना था 
सिनेमा देखने का बनता जब कोई बहाना था 
तब लगाता था मस्का मैं अपनी नानी को 
यूँ कर लेता था ,मैं अपनी पूरी मनमानी को 
कभी ऐसा भी हुआ ,जो बात न मेरी नानी ने मानी 
अपनी हाथ-सफ़ाई से ली मैंने उनकी ज़ेब की कुर्बानी ....

पकड़ा गया जो फिर जब, तो हुई पिटाई भी 
फिर कुछ न काम आई मेरी कोई सफाई भी 
फिर भी वो अच्छे दिन थे आज से
खाया-पिया,खेले और पिटे पर ख़ास थे ....

बचपन से ही मेरा शौक बड़ा अज़ीब था 
मैं सिनेमा और सिनेमा संगीत के करीब था
जासूसी नावल,फ़िल्मी मैगज़ीन और कहानी 
किताबों का शौक भी बड़ा है 
मैंने फिल्मफेयर ,जेम्स हेडली चेईज़ और 
मुंशी प्रेम चन्द का गौदान भी पढ़ा है 
शेरो-शायरी का भी मुझे शौक है 
ख़ुशी से सुनता हूँ ,जो सुनाये 
कोई अच्छा सा जोक है....

कहीं पे न अटका ,जो थोड़ा सा भटका 
फिर आ गया मैं अपनी सीधी राहों पे 
अब अच्छे कर्मों के लिए निगाह है 
अपने इष्ट-देव की निगाहों पे ....

अब भी मेरी यादों में मेरे साथ हैं 
मेरा दोस्त,मेरा मामा और मेरी नानी 
अपने बुढ़ापे में मरते दम तक ,नाती-नातिन  
पोती-पोतो को मैं सुनाऊंगा अपनी 
खट्टी-मीठी ,शरारतों भरी ये कहानी.....

आप सब को आने वाले नववर्ष २०१३ 
की शुभकामनायें .....
आप सब बहुत खुश और 
स्वस्थ रहें ......
अशोक सलूजा 






Sunday, December 23, 2012

अच्छा-बुरा जैसा भी है... मेरा ही दिल है !!!


अक्सर पूछते हैं वो दूसरों से 
कि क्यों... मैं उदास रहता हूँ 
क्यों... रहते हैं गुप-चुप से वो 
जब भी कभी, मैं उनके पास रहता हूँ ....
--अकेला

अच्छा-बुरा जैसा भी है... मेरा ही दिल है !!!

 मेरे दिल ने, मुझ को क्या दिया
 भावुक बना... तन्हा छोड़ दिया

 जिस दिल ने किया, बर्बाद मुझे
 लो आज मैंने भी, उसे तोड़ दिया

 न छोड़ा मुझे, कहीं का भी इसने
 लो मैंने.. आज इसको छोड़ दिया

 ये मेरा होकर भी, मेरा न हुआ कभी
 जहाँ चाह इसने,अपना नाता जोड़ लिया

 टूटा-फूटा जब रहा न, किसी काम का
 फिर रुख अपना,मेरी तरफ मोड़ लिया

 अच्छा-बुरा जैसा भी है, मेरा ही दिल है
 आखिर फिर, मैंने इसे अपनी गोद लिया

 न जाऊंगा अब, कभी तुझको छोड़ 'अकेला'
 अब सबसे मैंने, अपना नाता तोड़ लिया..!!!
अशोक'अकेला'

Thursday, December 13, 2012

लो !!! टूट के बिखर गई ...मेरी भी माला ...













मेरा मैला आँचल न देख 
मेरी तुझसे ये दुहाई है ,
मैंने अपनी साफ़गोई के नीचे 
मखमली चादर बिछाई है ||
--अकेला

न जाने यह जीवन में, आया कैसा मोड़ है 
अज़ब है यह सब, अब एक अंधी सी दौड़ है 
टूट के बिखर रहें है मेरी,  माला के दाने 
न ढूंढे मिलता है अब, कहीं भी जोड़ है
न जाने यह जीवन में .....

चाहूँ भी तो अब माला, पिरो नही सकता
इकठा करके इनको अब, जोड़ नही सकता  
न रही आँखों में रौशनी, न हाथों में ज़ोर है 
न जाने यह जीवन में .......

अलग हो के बिखरे पड़े हैं,  दाने-यहाँ-वहां
बदहवास सा हूँ,  सोचने का अब समय कहाँ
मेरे  चारो ओर अब , छाया अँधेरा घनघोर  है
न जाने यह जीवन में .....

भागते फिर रहें है, माला को छोड़ ये दाने 
कहाँ जा रुकेंगें अब, यह जीवन में कौन जाने
बिछड़ों को कहाँ, आसानी से मिलता कहीं भी छोर है 
न जाने यह जीवन में ......
.
जिधर था जिसका मुहं ,वो भागा उसी रास्ते 
कौन रुकेगा ,क्यों रुकेगा और किसके वास्ते 
यहाँ भागने की लगी हुई आपस में होड़ है 
न जाने यह जीवन में .....

मेरी माला के यह दाने मेरे लिए बड़े अनमोल थे 
न पड़ी कीमत हमारी ,हम ही मिले इनको बे-मोल थे
न अब इस पहेली का मिलता मुझे कहीं कोई तोड़ है 
न जाने यह जीवन में आया कैसा मोड़ है ........???


अशोक"अकेला"







Monday, December 03, 2012

तन्हाई का अँधेरा ....

आजकल सुन के अनसुनी कर देता है वो 
अब उससे क्या मैं कहूँ 
उम्र सारी,वो कहता रहा ,मैं सुनता रहा 
अब  इससे ज्यादा क्या सहूँ |
...अकेला

अशोक "अकेला"

Saturday, November 24, 2012

सुना है ! कल रात मर गया वो.......


















न जाने कौन सा ज़हर है इन फिज़ाओं में 
ख़ुद से भी ऐतबार.उठ गया है अब मेरा ........
...अकेला
मरने वाले के साथ , कौन मरता है 
कल दिन में तो , अच्छा-भला था 
दिल में था कितने ...जख्म लिए वो 
ये गिनती भला...आज कौन करता है |

चलो अच्छा हुआ , मर गया वो......

जिन्दगी भर किन्ही ,सोचों में डूबा रहा 
अच्छा हुआ ...आज मर के तर गया वो
जिन्दगी भर , तिल-तिल जलता रहा 
अच्छा हुआ ...आज पूरा जल गया वो 

चलो अच्छा हुआ , मर गया वो.....

चलो अब , खत्म हुई मुलाकातें 
यहाँ पर जितने मुँह ...उतनी बातें
बहुत पहले से ही था , मर गया वो 
जिन्दगी से जो ...था डर गया वो 

चलो अच्छा हुआ , मर गया वो.....

जिन्दगी जी उसने , जैसे जमीं हो बंजर 
पीठ अपनी में ...लेके  घोंपा  हुआ वो खंजर 
जीते-जी हर , अपने से डर गया था वो 
सुना है कि,  कल रात मर गया वो ......

चलो अच्छा हुआ ,मर गया वो ...!!!
अशोक"अकेला"



Friday, November 16, 2012

ठोकरों का मारा....यह दिल बेचारा !!!

आज फिर से दाग़ा गया हूँ 
शब्द-रूपी जलती मशालों से ,
उभर आये दिल के फफ़ोले
जो दबे पड़े थे सालों से ...
---अकेला 
बार-बार भ्रम के जाल में, फंस जाता हूँ 
क्यों मैं  अपने दिल पे, चोट खाता हूँ

उम्र भर दुखाया दिल को, मैंने अपने
पर बाज़ मैं आज भी, नही आता हूँ

हर दर पे जा-जा खाई, ठोकर मैंने 
फिर दौड़ा उसी दर पे, चला आता हूँ 

शायद पलट गई हो अब, तक़दीर मेरी 
यही आज़माने मैं वापस, चला आता हूँ 

हर बार करते हैं वो, बेआबरू मुझको 
हर बार मैं वापस, बेआबरू होने आता हूँ 

कस्म उठाता हूँ ,अब वापस न आऊंगा 
तोड़ देता हूँ कस्म ,वापस चला आता हूँ

जान गये हैं, वो सब भी मुझे अच्छी तरह 
मैं बेसहारा ,कब तक "अकेला" रह पाता हूँ....
अशोक'अकेला'
    

Monday, November 05, 2012

उम्मीदों के चिराग़....!!!


यह  रचना मेरे द्वारा  पिछली दीवाली पर रची गई थी| 
जो मैंने सुबीर जी के रचे दीवाली मुशायरे पर भेजी थी |
पर मेरा भाग्य या दुर्भाग्य  यह रचना दीवाली बीत जाने पर ,
एक और नौजवान शायर के साथ ' बासी दीवाली मनाते है "के
मौके पर सुबीर संवाद सेवा के मंच पर सुबीर जी ने प्रकाशित 
की थी.... 
आज भाग्य से इस रचना को मैं दीवाली से थोडा पहले ही आपके 
समक्ष प्रस्तुत करके ....आपको  दीवाली की शुभकामनाएँ देना 
और अपने लिए आपसे स्नेह प्राप्त कर लेना चाहता हूँ ......
तो प्रस्तुत है ,आप सब के लिए यह मेरी  रचना...अग्रिम  दीवाली मुबारक 
और आशीर्वाद के रूप में !!!



उम्मीदों के चिराग़

दीप खुशियों के जल, उठे हर सू
इक लहर सी है अब, उठे हर सू

हर तरफ हैं, बाजारों में मेले 
फूल खुशियों के, खिले हर सू
दुःख सभी का मिटेगा, सोच के ये 
सब गले आज मिल, रहे हर सू 

आँख से आंसू, मैंने पोंछ दिए 
फूल ही फूल जब, दिखे हर सू

दीप जलते हैं, ज्यों दीवाली  में 
दिल में अब रौशनी, भरे हर सू 

जी लिया है, बहुत अंधेरों में 
रौशनी की नदी, बहे हर सू 

जिंदगी जब हो, झूम के गाती 
चुप "अकेला"  ये क्यों, फिरे हर सू || 
अशोक'अकेला'


( सुबीर जी ने इसे अपने आशीर्वाद से सवांरा )

Wednesday, October 31, 2012

वक्त को संभालो.... !!!


मेहरबाँ  हो कर बुला लो मुझे ,चाहे जिस वक्त 
मैं गया वक्त तो नही ,कि फिर आ न सकूं||  "ग़ालिब
वक्त को संभालो.... !!!

इस जिन्दगी की दी हुई मुफ्त सौगात का 
कोई मूल्य नही पहचानता इस की औकात का

इसे बेदर्दी से लुटाया जाता है 
इसे बस यू ही गंवाया जाता है 
जिन्दगी के किसी मोड़ पर 
जब इसकी जरूरत  पडेगी
न पा सकोगे इसको 
न पाने की कोई तरकीब लडेगी

जो थोडा सा वक्त होगा अब रहने को 
चंद सांसों के लिए या पछताने को 
वक्त रहते इसकी औकात को समझो 
मुफ्त मिली इस सौगात को समझो 
जो क्षण ,महीना साल गुजर जायेगा 
लौट के दौबारा ,जिन्दगी में न आयेगा |

जब ये चाल अच्छी चलता है 
तो सब को अच्छा लगता है 
जब चाल ये अपनी बदलता है 
अच्छे ,बुरे पासे पलटता है 
बुरी से सब को दहलाता है
अच्छी से सब को बहलाता है

तब चलती इसी की मर्जी है  
कोई बांध इसे नही पाता है |
आज वक्त तुम्हारे साथ है 
बस छोटी सी मुलाकात है

फायदा उठालो 
इसको संभालो.... 
ये चला जायेगा 
फिर हाथ नही आयेगा

ये वक्त भी क्या...
अजीब चीज है 
किसी के काम आ के भी
किसी काम नही आता 
सब को छोड पीछे अकेला 
खुद आगे निकल जाता... 

गर ये वक्त संभल जायेगा 
ये जीवन सफल हो जायेगा
अब तो होश में आ लो 
अपने वक्त को संभालो.... 
अशोक"अकेला"



Saturday, October 13, 2012

आप में और मुझ में है फर्क बड़ा...???


आप एक कवि और मैं एक साधारण इंसान ||
ख़ुशामद वो शै है,जो कहने में बुरी 
और सुनने में अच्छी लगती है ||
...अज्ञात 
एक कवि जो अपनी कल्पना के 
सुंदर शब्दों से कविता बनाता है|

एक साधारण इंसान जो अपने गुज़रे 
लम्हों को अपनी यादों से सज़ाता है| 

आप अपने ज़ज्बों  से लिखते हो
में अपने तजुर्बों पे लिखता हूँ|

आप ख्यालों में सपने बुनते हो 
में यादों में उनको चुनता हूँ|

आप ठहाकों में बह जाते हो 
में मुस्करा के रह जाता हूँ|

आपकी  आँखें सपने चमकाती हैं 
मेरी आँखें बस टिमटिमाती हैं |

आप में अभी कोमलता का एहसास है 
मुझ में समय की कड़वाहट का वास है |

आपकी कलम से जिंदगी निकलती है 
मेरे हाथों से जिंदगी फिसलती है|

ये तो जवानी और बुढापे का दौर है 
न इसपे चलता किसी का ज़ोर है|

इसमें न किसी की जफ़ा है ,न वफा है 
ये तो बस सिर्फ जिंदगी का फ़लसफ़ा है.....

अशोक"अकेला"

Monday, October 01, 2012

मैं भी इक.... इंसान हूँ !!!

कहने वाला तो कह के, यहाँ से गुज़र गया ,
 जिसपे गुज़री वो तो, जहाँ से गुज़र गया |
....अकेला के, यहाँ से गुज़र गया जिसपे गुज़से गुज़र गया 
मैं भी इक.... इंसान हूँ !!!

 मैं भी आप की भीड़ का हिस्सा हूँ
 मेरी अलग से कोई पहचान नही

 मुझे भी लाया गया है ,इस दुनियां में
 मैं बिन बुलाया तो मेहमान नही

 मेरे अंदर मेरा ,स्वाभिमान बसता है
 यह मेरा गौरव है ,कोई अभिमान नही

 मेरी भी अपनी इज्ज़त है कीमत है
 कोई लावारिस पड़ा ,मैं सामान नही

मैं प्यार लेना और देना जानता हूँ  
 नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही

लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
 इससे बड़ा कोई और... अरमान नही

 निश्छल स्नेह ,प्यार की कीमत न समझूँ
 इतना नासमझ ,इतना बड़ा मैं नादान नही

 लड़ता हूँ "अकेला" ,अपने हक् के लिए
 क्यों कि,इंसान हूँ , कोई भगवान नही ||

अशोक 'अकेला'

Friday, September 21, 2012

ये सब वक्‍त की बाते है.....


गिला किससे करूँ ,फरियाद भी कोई सुनता नही 
हूँ वक्त का, मुरझाया फूल ,जिसे कोई चुनता नही |
--अकेला 
  
ये  वक्‍त भी क्या-क्या रंग दिखाता है 
सपने दिखला मन को बहलाता है 
क्यों ये आज गीत पुराना 
बार-बार मेरे लबो पर आता है

"आज ऊँगली थाम ले मेरी  
तुझे मैं चलना सिखलाऊँ
कल हाथ पकड़ना मेरा 
जब मैं बुढा हो जाऊं "

क्या देख लिया तुने जग में 
जो ये गीत तुझे न भाता है 
कहाँ छूट गए वो रिश्ते-नाते 
था जिनसे पुराना नाता है 

कहाँ गए वो भाई-बंधू 
अब पास कोई न आता है 
जिसने दिखाए ये सपने सारे 
वो समय अब दूर खड़ा मुस्काता है 

ये सब वक्‍त की बाते है 
चंद सांसों की मुलाकाते हैं 
कुछ दिन अच्छे,कुछ अच्छी रातें हैं 
बाकि तो सब झूठी बातें हैं

अब कुछ भी मेरे पास नहीं 
न कोई मन को भाता है 
आए 'अकेला' जाये 'अकेला' 
बाकि सब यहीं रह जाता है ......  

अशोक'अकेला\

Saturday, September 01, 2012

मन करता है ....!!!

दूसरों की सुन के,खुद से कह के 
खुश हो लिए,
दे के दिल को दिलासा, प्यार से और 
खुद रो लिए ...
...अकेला

मन करता है ....!!!
आँख में आंसू साथ नही 
रोने का मन करता है... 
खोने को कुछ पास नही 
कुछ खोने का मन करता है...

मैं किसी से नाराज़ नही 
पर होने का मन करता है... 
न मुझको कोई मनाएगा 
पर रूठने का मन करता है...

पता है, न ढूंढेगा कोई मुझे
पर खो जाने का मन करता है...  
किस-किस ने किया बर्बाद मुझे 
अब भूल जाने का मन करता है...

न रही अब किसी को ज़रूरत मेरी 
ये अब मान जाने का मन करता है...
जहां से भी मिले प्यार मुझे 
बस ले लेने का मन करता है...

न किया जान-बूझ के कोई गुनाह
फिर भी पश्चाताप का मन करता है... 
बहुत सा रत-जगा है आँखों में 
अब सो जाने का मन करता है...

न कोई करेगा अब याद मुझे 
बस मर जाने को मन करता है...
उम्र भर जला ,मैं थोड़ा-थोड़ा 
अब पूरा जल जाने का मन करता है... 

जिससे भी मिला ,पल भर का सुकून 
'अकेला' उन सब को दुआ देने का मन करता है ......


अशोक'अकेला'




Monday, August 20, 2012

लो फिर याद आ गई ....वो भूली दास्ताँ !!!


यादें ...
भुलाने को तो, भुला सकता था, तुझे मैं मगर,
वो बीते पल सुहाने साथ तेरे, याद न रखता अगर....
---अकेला

जब यादों का ...सैलाब उठता है, तो दिल में बहुत
हलचल मचाता है... उस सैलाब को थामना मुश्किल
हो जाता है ..और बयाँ करना उससे भी ज्यादा
मुश्किल .....

कभी-कभी बयाँ करने के काबिल लफ्ज़ नही मिलते
और यादों का दौड़ता कारवाँ भी रुकने से रुकता नही...
तब याद आती है  ...कोई प्यारी सी गज़ल के वो अल्फाज़ !!!
और वो हस्ती जो उन अल्फाजों को अपनी प्यारी ,दिलकश,
मदमस्त और दर्द के एहसास से बक्षी भरपूर आवाज़ से
बयाँ कर दे .....आपके मनमाफिक !!!

आपकी यादों का सैलाब रुक जाये और
सुनने वालों को सुकून मिल जाये !!!
तो फिर ज़नाब गुलाम अली साहब से बड़कर
कौन हो सकता  है .....

तो आएं...मिल के सुनते हैं हम सब ,,,और अपने लिए
ढूंढते है दिल का सुकून और में शांत करता हूँ
अपने यादों के सैलाब को.......

जब तेरी राह... से होकर गुज़रे
आँख से कितने... ही मंज़र गुज़रे
जब तेरी राह... से होकर गुज़रे ......

तेरी तपती हुई... साँसों की तरह
कितने झोंके मुझे... छू कर गुज़रे
जब तेरी राह, से होकर गुज़रे .....

उम्र यूँ गुजरी है... जैसे सर से
सनसनाता हुआ... पत्थर गुज़रे
जब तेरी राह, से होकर गुज़रे ....

जानते हैं कि... वहाँ कोई नही
फिर भी उस राह... से अक्सर गुज़रे
जब तेरी राह, से होकर गुज़रे ....

अब कोई गम... न कोई याद बशर
वक्त गुज़रे भी... तो क्यों कर गुज़रे
जब तेरी राह, से होकर गुज़रे ......














Friday, August 03, 2012

बचपन अधूरा सही...बेचारा नही....


अपने अतीत को सम्भाल कर रखो 
आप के भविष्य में काम आऐगा....
....अकेला

अशोक'अकेला'


Friday, July 27, 2012

हम तेरे शहर में हैं...अनजाने,बिन तेरे कौन हम को पहचाने...


आइये ....आज एक बार फिर से...मैं  अपनी यादों के झरोखे से आप सब को
अपनी मनपसंद गज़ल सुनवाता हूँ |
ये ज़नाब गुलाम अली साहब की दिलकश आवाज़ में ....मेरे दिल की बात है !!!
ये भी हो सकता है ! कि हम सब में से भी... ये आवाज़ किसी के दिल की  बात कहती हो ......
तो फिर देर किस बात की......कह डालें अपने दिल की बात को.....
ज़नाब गुलाम अली साहब की आवाज़ का सहारा लेकर!!!

हम तेरे शहर में हैं अनजाने
बिन तेरे कौन हम को पहचाने


मेरा चेहरा किताब है ग़म  की
कौन पढता है ग़म के अफ़साने
बिन तेरे कौन .....


जिसने सौ बार दिल को तोड़ा है
हम अभी तक हैं उसके दीवाने
बिन तेरे कौन .....


उनसे कोई भी कुछ नही कहता
लोग आते हैं मुझको समझाने


बिन तेरे कौन हमको पहचाने
हम तेरे शहर में है अनजाने .........









Friday, July 20, 2012

यादेँ....जो भूलती नही !!!

झाँकने दिल का कोना गया था, कि तुम कहाँ हो,
मिला न खाली कोना,जिधर देखूं ,तुम वहाँ हो....
---अकेला

ये रातों के साये मुझ को सोने नही देते 
ये दिन के उजाले मुझ को रोने नही देते 

लाख कोशिश करता हूँ ,उनको भूल जाने की 
वो मगर मुझ को कभी कामयाब होने नही देते 

याद करता हूँ उनकी बेवफाई के किस्से को मैं 
मगर इसका वो अहसास कभी मुझे होने नही देते 

रख के माथे पे हाथ , कुछ सोचता रहता हूँ मैं 
कोई भी किस्सा वो मुझे  याद होने नही देते 

सिलवटें पड़ गई ,माथे पे मेरे ये सोच-सोच कर 
पर इस सोच को वो कभी कम होने नही देते ||

थक हार के जाना चाहता हूँ नींद की आगोश में मैं 
पर वो 'अकेला' किसी की आगोश में सोने नही देते ||

अशोक"अकेला"




Friday, July 13, 2012

देखता हूँ ....अपने दिल के आइने में..!!!

सच! ही कहा है ...किसीने !!!

"अपने ही होतें हैं ,जो दिल पर वार करते हैं ...
वरना गै़रौं को क्या खबर  ...कि दिल किस बात पे दुखता है "



Friday, July 06, 2012

गुज़रे कल का प्यार ...और आज का प्यार ???

कल का प्यार ...आज का व्यापार.....













गुज़रे कल का प्यार.... और 
सौ बार डर के पहले  
इधर-उधर देखा ,
तब घबरा के तुझे इक 
नजर देखा |  
सुना कल रात मर गया वो ?
किसी के प्यार मैं था पड़ गया वो 
जिससे करता था प्यार वो 
कर न सका कभी इज़हार वो
इक दिन प्यार ने,  उसके  
किसी और से शादी करली 
दे के मुबारक अपने
प्यार को, उसने  खुद 
ख़ुदकुशी कर ली |
जीते जी नाम न था 
मर के वो बेनाम न था 
प्यार इबादत है 
प्यार पूजा है 
प्यार कुर्बानी लेता नही 
प्यार कुर्बानी देता है 
बस यही इक प्यार है ?
ये गुज़रे कल का प्यार था 
इसी को प्यार कहते  है 
इक आज का प्यार है 
जिसको व्यापार  कहते हैं|












...आज का प्यार
खूब जी भर ,बेफिक्र 
हो के तुझ को देखा 
थक गये जब ,तब 
इक नजर इधर-उधर देखा  
प्यार के 
व्यापार में 
उधार का 
लेंन-देन
मना हे 
प्यार लो ,प्यार दो 
लिया कर्ज उतार दो 
ये कैसा प्यार है ?
क्यों पिस्टल गोली दरकार है 
प्यार के ज़ज्बे  की ये हार है 
ये सिर्फ देह का व्यापार है 
प्यार पाक होता है 
प्यार निस्वार्थ होता है 
ये प्यार बीमार है  
ये प्यार का व्यापार है 
ये कैसा प्यार है ?...
अशोक'अकेला'

Sunday, July 01, 2012

जीने-मरने में क्या पड़ा है, पर कहने-सुनने...

और मरने में फर्क बड़ा है .....!


एक हल्की-फुल्की संजीदा सी मुलाकात ...
सत्य पर अधारित...एक सपना !
बचपन के दोस्त ...से मुलाक़ात 
जो बड़ी जल्दी ही अपनी मंजिल 
को पा गया ........
मैं और मेरा दोस्त

ये गई बीती रात की बात है 
भले ही सपने की मुलाक़ात है 
मुश्किल से आँख लगी थी मेरी 
उसमें भी मुझे याद आ गई तेरी

झट से पास आ गया तू भी मेरे
बोला "वहाँ  काटे न कटे ,बिन तेरे" 
फिर न लगाई तूने  ये कहने में देरी.....
"कैसे कट रही है यहाँ जिन्दगी तेरी"
मैं बोला "बात-बात में मुझे याद आती है तेरी "
तू  बोला "फिर क्यों लगाता है आने मे देरी "

मैं बोला "अभी मुझे बहुत काम हैं यहाँ ".....
तू  बोला "अरे, चल बहुत आराम है वहाँ.... 
छोड़, अब तेरा क्या रखा हैं यहाँ...
तेरे लिए इक आशियाना बना रखा हैं वहाँ"

वो कह रहा था "अब यहाँ काहे का ज़ीना"
सुन ! मेरे माथे पे आ रहा था  पसीना... 
"दोनों मिल के बैठेगें ,कुछ बात करेंगें 
अपनी जवानी और बचपन को याद करेंगें"

अब मैं सोच रहा था .......!
कैसे मानूं इस की सलाह को... 
कैसे टालूं मैं आई इस बला को...

तभी ...बड़ी ज़ोर से किसी ने दरवाज़े पे घंटी बजाई 
मैं चौंक के उठा !!! बाबु जी "दूध वाला" आवाज़ आई || 
वाह! रे मेरे मालिक अच्छी की तुने... जुदाई 
शुक्रिया ! जो तुने मेरी जान छुड़ाई...हा हा हा ... 

फ़िलहाल ! खुशी-भरा अंत !
न जाने किस के लिए ...???हा हा :-))












Saturday, June 23, 2012

मेरी माँ ...

उदासी,दुःख और तकलीफ़ में सिर्फ़ एक 
इंसान की याद आती है ....???
जिसने आपको जीवन में सबसे ज़्यादा प्यार 
किया हो,और आपने उसको सबसे ज़्यादा 
तंग किया हो ...इस लिए.....   








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