Tuesday, May 31, 2011

अपनी माँ को .......जिनको कभी देखा नही ...दोनों हाथ जोड़... सिर झुका कर नमन करता हूँ..

नानी जी 
आप सब को भी प्यार भरा नमस्कार ....
अपनी माँ के लिए और नानी जी के लिए ....
जिन्होंने पाल-पोस कर बड़ा किया |
उनको याद करके जो भी मेरे दिल से निकला ...

  जब से मैने माँ को खोया
तब से ही मै हर पल रोया
किन जुर्मो की मिली सज़ा
तब से न मै चैन से सौया।।

न मिली बचपन में गोद वो
जिसमें कुछ सुख से सो लिये होते
हँसने  की हसरत तो तब रहती
जो खुल के रो लिये होते ॥

मैने माँ को नही,माँ की माँ को देखा है
  वो मेरे लिये सब सहती थी
 उसकी एक आखँ मे मैं,
दुसरी में मेरी माँ जो रहती थी॥

पैदा किया माँ बाप ने
अकेला था,वारिस हो गया,
माँ जग से गयी,बाप ने छौड दिया
और मैं, लावारिस हो गया॥
                                                     अशोक 'अकेला'
माँ को याद करके जब भी रोने का मन करता है ,तो 
परवेज़ मेहदी साहेब की गाई ये  गज़ल सुनता हूँ |

अपने साये से भी अश्को को छुपा कर रोना 
जब भी रोना ,चिरागों को बुझा कर रोना ...

मेरे साथ आप भी सुनिए ...पर आप गज़ल का लुत्फ़ उठाइए |
तब तक अलविदा ...खुश और सेहतमंद रहें |




Monday, May 30, 2011

मेरी यादों के... गुलदस्ते से एक सदाबहार महकता फूल ...सिर्फ आप के लिए ...

अरुण कुमार निगम जी ने कहा ....
कभी मन बेचैन हो जाता है तो इस गीत को आँखें बंद करके बांसुरी पर छेड़ लेता हूँ.आपके पास अनमोल संग्रह है .यदि संभव हो तो मुकेश जी का गीत-हिया जरत रहत दिन-रैन हो रामा(फिल्म-गोदान) सुनवाइयेगा .आभारी रहूँगा.मेरे पास आडियो कलेक्शन में 
था.कैसेट डैमेज हो गया है.आपके टेस्ट पर इत्मिनान से लिखूंगा
अरुण जी ,आप का मनचाह गीत ,देखने,और सुनने के लिये हाज़िर है ....
सुनिए और खुश रहिये | आप की पसंद...हिया जरत रहत दिन रेना ...
वर्ष : 1963. फिल्म: गो-दान
 पर्दे पर: राज कुमार
 स्वर: मुकेश जी
 संगीत:पंडित रवि शंकर जी
 गीतकार: अन्जान
 सहकलाकार : कामिनी कौशल 
अशोक 'अकेला'

Friday, May 27, 2011

...मेरे ब्लॉग के आभासी रिश्तों के नाम ...मेरी तरफ से , इक प्यार भरा पैग़ाम... १.


(एक)
और मैं चाहूँगा कि ये उन सब तक पहुंचे ...जिनके ये नाम है |
कैसे ..? इसमें आप सब मेरी मदद करें ,जैसे भी... आप कर सकतें हैं |
आभार होगा !
...आज अपना ब्लॉग बनाये मुझे तकरीबन 'छ:' महीने होने को आये|
तो सोचा , चलो ; आज अपना इम्तहान लिया जाये कि मैं अब तक 
जिन-जिन आभासी रिश्तों के संपर्क में आया ...उनको पढ़ कर,टेलीफोन
पे बात कर ,इ-मेल कर या फिर थोड़ी चैट कर के, उनको मैंने कितना 
जाना,पहचाना और समझा...??? अब कितना ,जाना ,पहचाना और
समझा ये तो आप ही बतायेंगें ....

पास कर दिया तो ठीक ...नही तो दोबारा फिर इम्तहान की तैयारी|
यही जिन्दगी है ...जिन्दगी कदम-कदम पे इम्तहान लेती है |
पर हाँ एक बात : "ये मेरी पढ़ाई-लिखाई का इम्तहान नही ,ये मेरी 
जिन्दगी से मुझे मिले मेरे तज़ुर्बों का इम्तहान होगा ...

अंत में : जाने-अनजाने किसी के दिल को दुखाने का कारण बन जाऊं 
    तो उन सब से हाथ जोड़ और दिल से माफ़ी का तलबगार हूँ ||

आप सब खुश रहें और स्वस्थ रहें ....

पेपर :  १ ... शुरू ! 

सतीश सक्सेना : इनको मैंने अपना गुरु भाई बनाया है और इन्होने 
अभी तक, अपना धर्म निभाया है ||

पाबला जी: यारों के है यार ,अपनी हा..हा..हा.. हंसी से सब को कर रखा  
बावला जी ||

डॉ. परवीन चोपड़ा: ये सब की सेहत के रखवाली ,पर टिप्पणी से रहें खाली ||

राकेश जी : ये हैं एडवोकेट ...पर प्रवचन गीता पर करते हैं 
और हर टिप्पणी पे धन्यावाद भी करते हैं ||

पी.सी . गोदियाल : सीखो... गोदियाल जी से जीना!
चाल चलो ,कर के चौड़ा सीना ||

डॉ .दिव्या श्रीवास्तव : ये iron lady कहलाती हैं ,पर'दिल' से जैसे
          मोम पिघल सी जाती है ||

डॉ. मोनिका शर्मा : ये दिल नही किसी का दुखाती हैं ,
टिप्पणी अपनी में सब पे प्यार लुटाती हैं ||

संगीता स्वरूप : हर एक की इच्छा अधूरी ,
पा इनकी टिप्पणी हो जाती पुरी | 


आगे ...पेपर ..२ पर !

...मेरे ब्लॉग के आभासी रिश्तों के नाम ...मेरी तरफ से , इक प्यार भरा पैग़ाम... २


 'दो'

निर्मला कपिला : इनके प्यार में ममता बरसे ,सब इनके आशीर्वाद को तरसें ||

हरकीरत "हीर" : तू क्या जाने पीढ़ पराई ,कितनी चोट 'हीर' ने खाई ||

दानिश जी : चेहरा नही दिखाते हैं ,पर्दे में रेह जाते हैं ,
पर शायरी... गजब  कर जाते हैं ||

राजिन्द्र स्वर्णकार : दिल से कोमल येह स्वर्णकार हैं 
सब को पहनाते येह फूलो की टिप्पणी का हार हैं ||

इन्दु गोस्वामी जी : सब को डांटती है... बस प्यार ऐसे ही बांटती  है ||

डॉ.वर्षा जी : इनका स्नेह सब पे बरसा जी ||

कविता रावत : प्रकृति की गोद में ,मासूम कविता !

वीना : तू मेरी भी बेटी है वीना 
मुझ को भी ,इक दिन जाना 
तू अब सीख ले बिन पापा के जीना ||

श्री ब्रज मोहन श्रीवास्तव: इसी बहाने मिल गई ,बिछडो. से अपनी वालदा 
नाम उसने अपना रख लिया... भले ही 'शारदा' |


डॉ.टी.एस. दराल : इनके लेख ललचाते हैं ,कभी-कभी; बहस में उलझाते हैं ||


प्रवीण पाण्डेय: अपनी एक लाइन की टिप्पणी में सब को बांधे ||

अजय कुमार झा: झा जी, आप रहेंगे सब पे; अब भी भारी                 
न माने जो बात, तारीख लगा दो तीस हजारी ||

आगे पेपर ...३ पर 

...मेरे ब्लॉग के आभासी रिश्तों के नाम ...मेरी तरफ से , इक प्यार भरा पैग़ाम...३


'तीन'

नवीन प्रकाश : हर दम नवीन 'नया' सिखाते हैं 
अँधेरे में प्रकाश दिखाते हैं ||

ललित जी : सब की करें मदद जी ,इनके लिए
कोई न दलित जी ||


निशान्त मिश्र : आदर देने में भरपूर है निशान्त 
अपने स्वभाव से भी है ये शांत ||

योगेन्द्र पाल : इनमें भी सिखाने की इच्छा भरपूर है 
तकनीकी रास्ते में ,ये भी चमकता नूर है ||

हिन्दी ब्लॉग टिप्स: बहुत टिप्स 'आशीष जी' ने ब्लोगर्स को सिखलाये
जब पड़ी जरूरत उनकी ,वो दोडे चले आये || 

 ज्ञान दर्पण : वीरों की कहानियाँ सुनाते हैं ,राजस्थान क्या है...?
सब को अपने दर्पण में दिखाते हैं ....||

ज़ाकिर अली 'रजनीश' : आप की ही दुनियां, और आप के ही सपने 
फिर भी खोने लगे ,मोबाइल आप अपने ...

शाह नवाज: आप के प्रेम-रस में डूब के हमने भी आवाज लगाई 
हम भी तेरे साथ खड़े हैं ,हम को देखो, नवाज भाई || 

दीपक सैनी : बड़े मासूम है दीपक सैनी ,भक्षक ही करते मन-मानी

नीरज जी : सुनने सुनांने का बड़ा शौक है, आप को नीरज जी
हम भी पड़े हैं राहों मैं रख के बड़ा धीरज जी || 

सतीश सत्यार्थी:   भविष्य तेरा प्यारा ... तू  है अभी  विद्यार्थी ||


अब तो आप सब समझ ही गये होंगे कि क्यों ......???


अशोक'अकेला': समझ आ गया तेरा... झमेला क्यों रहे तू " अकेला" ||

"मुस्कराएं ,हँसे और ज़ोरों से खिलखिलाएं !!!!

:):):): अशोक'अकेला'
'जो भी प्यार से मिला ,हम उसी के हो लिए ....

Tuesday, May 24, 2011

मेरी यादों के... गुलदस्ते से एक सदाबहार महकता फूल ...सिर्फ आप के लिए ...

अशोक सलूजा 
मेरी पसंद ... आप भी सुनें ...!!!
चाँद फिर निकला ...मगर तुम न ...
 वर्ष : १९५७ 
 फिल्म: पेइंग गेस्ट
 पर्दे पर: नूतन जी 
 स्वर: लता जी
 संगीत: एस.डी. बर्मन साहिब
 गीतकार: मजरूह सुल्तानपुरी जी
 सहकलाकार :देव आनन्द जी


 तो आयें सुनते हैं ...और तब तक सुनते रहें... जब तक आने वाला,.. आप के पास न आजाये,और फिर सकूँ से सो जाएँ ...शब्बा खैर...
 ...

Saturday, May 21, 2011

न हँसो ,हम पे जमाने के हैं,ठुकराए हुए... दर-ब-दर फिरते है ,तकदीर के बहकाए हुए...


 आज... याद करतें हैं,अपने गुज़रे  पुराने दिनों को |
आज मैं, आप को वो गज़ल  सुनवाऊंगा जो मेरी किशोरावस्था की है |
येह गज़ल १९५७ की  है ,जब मैं १५ साल का था |तब येह पिक्चर 
मैंने देखी थी ... नाम...Gateway of India ...पर्दे पर अपने समय की, 
सबसे खूबसूरत अदाकारा ,मधुबाला जी ने इस गज़ल को  पेश किया है |
खूबसूरत आवाज: लता जी की ,खूबसूरत संगीत: मदन मोहन जी का| 
और खूबसूरत शब्दों से सजाया है;राजिंदर कृष्ण जी ने |
हाँ, पिक्चर बनाई थी ओम प्रकाश जी ने |
पिक्चर के बाकी अदाकार थे : भारत भूषण ,प्रदीप कुमार और ओम प्रकाश जी, खुद | इस पिक्चर के सारे गाने बेहतरीन थे और आज भी हैं |
पर मुझे तब भी और अब भी येह गज़ल सबसे ज्यादा पसंद है |
आप भी सुनें, मेरी पसंद! शायद...आप को भी पसंद आये ...हाँ एक बात और 
येह गज़ल पिक्चर के बाकी गीतों में से सब से कम सुनी गई है |
पर मुझे आज भी सबसे ज्यादा यही गज़ल पसंद है | पसंद ...अपनी अपनी ...

गज़ल के बोल हैं : न हँसो ,हम पे जमाने के हैं,ठुकराए हुए 
 दर-ब-दर फिरते है ,तकदीर के बहकाए हुए...
अशोक"अकेला"


Tuesday, May 17, 2011

क्या माँ ऐसी ही होती है ...?


(मेरी नानी जी )
....? to... 27Th  Feb,1989

माँ 
माँ को कभी देखा नही, 
जब होश में आया, अपने को नानी की,  गोद में पाया | 
जिसको देखा नही  ,जाना नही , पहचाना  नही 
सलाम है !  उन अपने एहसासों को, जज्बातों को 
जिन्होंने ये भाव मेरे अंदर जगाया है ओर 
माँ कैसी होती है... मुझे महसूस कराया है |

अपने मुहँ से निकाल निवाला 
अपने बेटे के मुहँ में देती है 
क्या माँ ऐसी ही होती है ...?

सुला सूखे बिस्तर पे बेटे को 
खुद गीले पे सोती है ...
क्या माँ ऐसी ही होती है...?

ओढ  के दुःख औलाद के, सर अपने 
उस के सर की बलेंयाँ लेती है |
क्या माँ ऐसी ही होती है ...?

भरे गी पेट पहले  औलाद  का 
चाहे खुद भूखे पेट सोती है 
क्या माँ  ऐसी ही होती है ...?

ये जख्म हैं  मेरे, इन्हें मेरे पास ही रहने  दो 
मिलता है मुझे, इनसे सकूं ,मुझे खुद ही इनको सहने दो 
दिल भी हो गया कमजोर ,न रहा अब ये किसी 
हाल का ,उम्र सारी कट गयी हो गया मैं भी 
अब सत्तर साल का...

माँ...इन दो शब्दों में कितना दम... है 
एहसास है  मेरे बहुत ,बस शब्द
बहुत ही कम है ... 
अशोक"अकेला"










































Thursday, May 12, 2011

एक एस एम् एस ...बेटी की तरफ से ...आप सब को ...!!!

Deepika
Charlie Chaplin's 3 Heart touching statements:-



 (1) - Nothing is permanent in this world, not even our Troubles...!


 (2) - I like walking in the rain, becoz nobody can see my tears..!!


 n 3rd...n MOST IMPORTANT The most wasted day in life, is the day,in which,


 we have not laughed.....tkcr 


"Good Morning"


Saturday, May 07, 2011

या दिल की सुनो .... दुनियां वालो ...

या मुझ को अभी चुप रेहने दो .....


जब बीती यादें ,याद आती हैं ...तो हेमंत जी का गाया येह गीत 
मेरी जुबां बन जाता है ... 


"छाई है हर तरफ़ खामोशी,
सकूं का आलम है  सब
न रही कहीं कोई आरजू
    न कही कोई बेचेनी है अब"।   
अशोक "अकेला "

Thursday, May 05, 2011

पापा !!! आप मेरा हाथ पकड़ लो ...!!!

मौली (मेरी पोती )


एक छोटी बच्ची अपने पापा के साथ कहीं जा रही थी
 रास्ते में  एक पुल आया जिस पर पानी बड़ी 

तेजी से बह  रहा था पापा ने कहा
"डरो मत ,मेरा हाथ पकड़ लो" बेटी बोली "नही पापा आप मेरा

 हाथ पकड़ लो" !पापा मुस्करा के बोले
 "बेटी दोनों में  क्या फर्क है" ? बच्ची बोली
 "पापा अगर मैं 

आप का हाथ पकडू, तो रास्ते में  अचानक कुछ हो जाये ,
तो शायद मेरे हाथ से आप का हाथ छुट 

जाये" | अगर आप मेरा हाथ पकड़ेंगे  तो मैं जानती हूँ 
."चाहे कुछ भी हो जाये आप मेरा हाथ कभी

 नही छोडेगें" | :आज भी बच्चे हाथ छोड देते हैं ,माँ-बाप नही ! 
अपने माँ-बाप को अपना प्यार दो !

अशोक सलूजा 



Tuesday, May 03, 2011

अब आप इन लाइन्स को ...कहाँ फिट करेंगें ...???

"मेरे अपने हाथों खींचा चित्र "

अपनी "प्रशंसा" को तो सब चाहते हैं,
कुछ! अपनी ही ..".प्रशंसा" को चाहते हैं ...???

एक हमारे परम "सज्जन" मित्र है | जो रोंज सुबह हमारे साथ होते हैं |
सुबह की सैर के वक्‍त ! रोंज मिलना जुलना ,बाकी दोस्तों के साथ बैठ 
के गप-शप करना ,तरह-तरह की बाते बतियाना आदि,इत्यादि ,वगेरह-वगेरह ...
उनकी एक बड़ीया  आदत है ,उनसे जो भी बात करता है ,वो उसकी बात बड़े 
गौर से और मन लगा के एकाग्रचित हो कर सुनते हैं | जाहिर है ,सुनांने वाले 
को भी बहुत मज़ा आता है कि उसकी बात इतने ध्यान से सुनी जा रही है ...
बात लंबी होती जाती है ,अपना पूरा विस्तार लेती जाती है और समय भी ...
बात खत्म हुई ! सुनाने वाले कि आँखों में टिप्पणी के लिए प्रश्न-चिन्ह उभरता 
है ...???अब "सज्जन" मित्र की बारी है टिप्पणी के लिए ,और उनके मुहँ से 
यकायक निकलता है "मैं आप की बात... नही समझा...???

अब सुनाने वाले का मुहँ देखने के काबिल होता है ,आँखे फटी ,मुहँ खुला ,चेहरे पे 
झल्लाहट .माथे पे शिकन बाकि का अंदाजा आप लगाएं ?
अच्छा ! ये रोंज की बात है ,कोई न कोई अपनी सुनाता है ,और वो सज्जन सुनते हैं ...
और आखिर में " मैं आप की बात... नही समझा " ...???

...फिर एक दिन हम दोनों अकेले ही एक-दूसरे के हत्थे चड़ गये ...मैंने मन में सोचा कि 
आज "मैं इन को लपक लूँ " मैंने झट से उनपे अपना सवाल दाग दिया "सज्जन भाई ये
 आप का क्या फंडा है ,कि सब सुनने के बाद आप बोल देते हो कि "मैं आप कि बात... नही समझा " 
सुनाने वाले को कितना बुरा लगता होगा कभी सोचा है आपने ? मेरी बात सुन सज्जन 
भाई मुस्करा दिए ,और हंस के बोले "सलूजा जी ,कभी मेरे से पूछा है किसी ने,कि क्या बात 
समझ मैं नही आई ..? 

आज आप ने पूछा है तो बता देता हूँ !!! "कि अव्वल  तो मेरे को किसी की बात समझ में 
आती ही नही ,और अगर आ भी जाये तो मैं किसी की बात मानता ही नही " जब किसी की 
बात माननी ही नही ती इससे ये ही अच्छा है कि" मैं आप की बात...नही समझा " ये ही 
बोल कर छुटकारा पा लूँ ..क्यों ? अब ...बारी मेरे मुहँ खुला रेहने की थी ...
और फिर एकाएक हम दोनों एक दूसरे के हाथ पे हाथ मारकर जोर से ठहाका लगा कर 
हंस पड़े ...और इस तरह हमारी नेचुरल लाफिंग थैरेपी हो गई ...
अब आखिर में आप के लिए हल करने के लिए एक सवाल :-
आप सब पड़े-लिखे, एक अनपड़ के लेख में गलतियाँ निकालें और मेरी की हुई गलतियों से 
मुझे कुछ समझाएं ,सिखाएं और अपनी पीठ थपथपाएं...!!!
आभार होगा !

(गुस्सा बिल्कुल न करें हो सके तो मेरी नादानी पर थोडा हँसे थोडा मुस्कराएं )
बच्चा बुङा  एक समान :-) :-) :-)     
(इरादा सिर्फ आप के चेहरे पर मुस्कराहट लाने का ...)
अशोक"अकेला"

Sunday, May 01, 2011

क्या आप मेरी चिठ्ठी... मुझे पढ़ देंगे ???


"चित्र गूगल द्वारा आभार सहित "



















एक गांव में ,मेरे जैसे एक अनपढ़ ,गंवार ने ,अपने गांव में रेहने वाले एक पढ़े-लिखे 
नौजवान को ,पत्र लिखवाने के लिए अपने घर पर बुलवाया | उसने येह पत्र अपने बेटे को भेजना था |
जो किसी दूसरे शेहर में नौकरी करता था |
काफी इंतज़ार के बाद, उसे नौजवान आता दिखा | जिसको देख उसको आँखों में एक उम्मीद की चमक आ गयी |जवान नजदीक आया ,बजुर्ग को दुआ सलाम की ,और काम पूछा ? " बेटा एक चिठ्ठी लिखवानी थी " अपने बेटे को भेजने के लिए, जरा लिख दे !!!

जवान थोडा ठिठका,झिझका और बोला " ताऊ चिठ्ठी तो में जरूर लिख देता" पर आज ऐसा है ? कि मेरे घुटने में दर्द है !!! 
ताऊ भोचक्का हो उसकी तरफ देख कर बोला " पर बेटा ! चिठ्ठी तो हाथों से लिखी जावे न ???

जवान बोला ,ताऊ आप बिल्कुल ठीक बोलो ! पर बात यो से, कि चिठ्ठी का जवाब भी 
तो मेरे को ही पढ़ने आना पड़े गा न...? इतना केह वो जवान चलता बना और मैं उसके घुटने के 
दर्द के ठीक होने का इंतज़ार कर रहा हूँ .....|

 सो भाई पढ़ना लिखना बहुत जरूरी है ...
अब मैं ज्यादा पढ़  तो नही सका ,पर जितना आता है 
उस हिसाब से अपनी चिठ्ठी आप 
ही लिखने कि कोशिश कर रहा हूँ ....
  
(सुनी-सुनाई एक मजाक के आधार पर )
अशोक "अकेला"

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