Thursday, March 29, 2012

यादेँ....यादेँ..... बस यादेँ ही यादेँ !!!

यादेँ ......!!!
एक अकेला सा शब्द 
एक बेचारा सा शब्द 
अपने में दुनिया समेटे 
दुखों-सुखों  का संसार समेटे 
अकेलेपन का सहारा सा शब्द ,

एक गुज़रा ,भूला सा वक्त 
एक तन्हा सा शब्द 
दिमाग के किसी कोने में 
एक यतीम सा छोड़ा हुआ
एक 'अकेला'बेसहारा सा शब्द ||



न रहा है ,न रहेगा 
कुछ भी पास तेरे 

भूली-बिसरी यादेँ ही 
रह जाएँगी पास तेरे 

तू किस बात पे भरमाया है 
बस ये यादेँ ही तेरा सरमाया है ||
अशोक..अकेला..



Monday, March 19, 2012

Friday, March 16, 2012

अटका कहीं जो आप का... दिल भी मेरी तरह !!!


यादेँ ...... वर्तमान से निकल कर ,अतीत की  यात्रा और भविष्य की
भविष्य-वाणी .......


रोया करेंगे आप भी पहरों  इसी तरह,
अटका कहीं जो आप का दिल भी मेरी तरह ||
आज सुनवाता हूँ मैं आपको अपनी मन-पसंद
एक निहायत खूबसूरत गज़ल !
जिसमें किस्सा है ,बेचैनी का,बेकसी का और
मज़बूरी का ....न चाही ,इन्तकामी का.....


इस गज़ल को खूबसूरत लफ्जों से सजाया शायर
ज़नाब मोमिन खान "मोमिन" ने और अपनी
दर्द भरी आवाज़ में ,पेश किया आप के लिए
ज़नाब उस्ताद गुलाम अली साहब ने ........!!!


आइए तो सुनते हैं और खो जाते कुछ देर के वास्ते
अपनी जवानी के गुज़रे हसीन लम्हों में (मेहरबानी
करके ,इस लाइन को जवां अपने दिल पे मत ले )

न ताब हिज्र में हैं न आराम वस्ल में 
कम्बखत दिल को चैन नही है किसी तरह

अटका कहीं जो आप का दिल भी मेरी तरह
रोया करेंगे आप भी पहरों..... 

मर चुक कहीं के तू  गमें-हिज्राँ से छूट जाये 
कहते तो हैं भले की वो लेकिन बुरी तरह

अटका कहीं जो आप का दिल भी मेरी तरह
रोया करेंगे आप भी पहरों..... 

न जाये वहाँ बनी है  न बिन जाये चैन है 
क्या कीजिये हमें तो है मुश्किल सभी तरह

अटका कहीं जो आप का दिल भी मेरी तरह
रोया करेंगे आप भी पहरों..... 

ज़नाब गुलाम अली साहब 














Saturday, March 10, 2012

जीवन की दौड़ .....मृत्यु की और ....


जीना भी एक बहुत बड़ा....... जुर्म है आखिर...... 
शायद ! इसी लिए हर शख्स को सज़ाए-मौत मिलती है ||
----अज्ञात   

एकाएक!!! 
वो 
एक दिन 
किसी के 
हाथों पर 
आ गया|| 

कस्मकाया 
कांपा
और 
धरती पर 
आ गया||

हिला, डुला
फिर रेंगा 
उठ खड़ा 
हुआ ,

चला ,डगमगाया 
लडखडाया ,
चलते-चलते 
भागने लगा||

तेज...तेज... 
...और तेज,
...फिर 
लडखडाया ,
डगमगाया ,
हांफने लगा|| 

रुक गया ,
गिर गया
लेट गया 
फिर किन्ही 
दो हाथों ने 
उठा लिया||

संभाल 
न सके,
कई हाथों 
ने उठा कर
चार कन्धों 
पर लिटा दिया||
...फिर 

ले चले 
अनजानी राहों पे... 
छोड़ दिया 
अँधेरी गुफ़ा में, 
रख दिया 

जलती ज्वाला पर||
एकाएक!!!
गायब हो
गया ...
कहाँ..?
जहाँ से 

एकाएक!!! 
आया था .........!
चित्र गूगल साभार 
अशोक'अकेला'

Saturday, March 03, 2012

तदबीरों से ....तकदीरें बदलती हैं !!!

खुले जख्म ,कभी-कभी ऐसे भी सिलते हैं 
दूर से देखो , जमीं-आसमां भी मिलते हैं ||
----अकेला 

चित्र गूगल साभार 
नींद से भरी ये अखियाँ, सुख से सो लेती, 
जागे जब ये अखियाँ तो, दुःख में रो देती |

ग़र  रोने से बदल जाती, सब की तकदीरें,
तो तदबीरें अपनी, तकदीर पर ही रो देती।

बैठे -बिठाये, ग़र मिल जाती जो मंजिल, 
राहें अपने सीने पे लगे, मेलों को खो देती|

भर जाते जो सीने पे, लगे जख्म रोने से, 
तो आँखे अपने आंसुओं से, उन को धो देती   |

न जलते ग़र परवाने... अपनी शमां पर, 
तो शमां आज किसी, एक की हो लेती|

बाँट सकती जो, दुःख-दर्द अपनी औलाद के, 
एक 'माँ' सीने पे... ले के उनको सो लेती |

न होता जो गम, ग़र इस दुनियां में कोई, 
आज दुनियां सारी, हसीं ख्वाबों में खो लेती |

आज भी अच्छे इंसानों से... भरी है दुनियां, 
वरना'अकेला' बुरों से दुनियां, ये गर्क हो लेती ||
अशोक'अकेला'




Thursday, March 01, 2012

तू जो नही है ....तो कुछ भी नही है !!!

ये माना के महफ़िल जवां है हसीं है||

यादेँ .... बहुत दिनों से ये, गज़ल आप को सुनवाना 
चाहता था ,और आज ये मौका मिल गया|
इस गज़ल को बहुत गायकों ने बहुत बार अपनी-अपनी 
आवाज में गाया है ...पर इसके मूल गायक है ...ये साहब !

इस रोमांटिक गज़ल को गाया  है ,पाकिस्तानी गायक 
जो एस.बी. जॉन  के नाम से जाने पहचाने जाते है |
इन्होने अपना शानदार गायकी का आगाज़ पाकिस्तान 
रेडियो .कराची से शुरू किया था |
सबसे पहले ये गज़ल ,सन् १९५९ में 'सवेरा' पाकिस्तानी फिल्म में 
एस.बी.जॉन ने अपनी आवाज़ उस फिल्म के हीरो को दी |
अपने समय में ये गज़ल बहुत मकबूल हुई |आज भी है ...
हमारे लिए |
कभी मैंने भी इस गज़ल को बहुत सुना और गुनगुनाया भी ...
अपने उन ....?दिनीं में | 

एस.बी.जॉन ने ये गज़ल,  अपनी आवाज में 
सन् १९७७ में एक प्रोग्राम् के दौरान स्टेज पर 
हारमोनियम के साथ गाई | इस गज़ल के अश'आर 
लिखे है ...ज़नाब फैयाज हाशमी साहब ने |
आज पेश कर रहा हूँ ,आप के सुनने और आप 
का दिल बहलाने के लिए ....
उम्मीद है ...मेरी पसंद ...आपकी पसंद पर भी 
खरी उतरेगी हमेशा कि तरह !!!

तू जो नही है ,तो कुछ भी नही है 
ये माना कि महफ़िल जवां है हंसी है 
तू जो नही है .......

निगांहों में तू है ,ये दिल झूमता है 
न जाने महोब्बत कि राहों में क्या है 
जो तू हमसफ़र है ,तो कुछ गम नही है 
ये माना के महफिल ......

वो आए न आए ,जमी है निगाहे 
सितारों ने देखी हैं ,छुप-छुप के राहें 
ये दिल बदगुमां है ,नज़र को यकीं है 
ये माना के महफिल ......

तू जो नही है ,तो कुछ भी नही है 
ये माना के महफिल जवां है हंसी है 
तू जो नही है ..... 

एस.बी.जॉन 












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