आइये ....आज एक बार फिर से...मैं अपनी यादों के झरोखे से आप सब को
अपनी मनपसंद गज़ल सुनवाता हूँ |
ये ज़नाब गुलाम अली साहब की दिलकश आवाज़ में ....मेरे दिल की बात है !!!
ये भी हो सकता है ! कि हम सब में से भी... ये आवाज़ किसी के दिल की बात कहती हो ......
तो फिर देर किस बात की......कह डालें अपने दिल की बात को.....
ज़नाब गुलाम अली साहब की आवाज़ का सहारा लेकर!!!
हम तेरे शहर में हैं अनजाने
बिन तेरे कौन हम को पहचाने
मेरा चेहरा किताब है ग़म की
कौन पढता है ग़म के अफ़साने
बिन तेरे कौन .....
जिसने सौ बार दिल को तोड़ा है
हम अभी तक हैं उसके दीवाने
बिन तेरे कौन .....
उनसे कोई भी कुछ नही कहता
लोग आते हैं मुझको समझाने
बिन तेरे कौन हमको पहचाने
हम तेरे शहर में है अनजाने .........