Wednesday, October 31, 2012

वक्त को संभालो.... !!!


मेहरबाँ  हो कर बुला लो मुझे ,चाहे जिस वक्त 
मैं गया वक्त तो नही ,कि फिर आ न सकूं||  "ग़ालिब
वक्त को संभालो.... !!!

इस जिन्दगी की दी हुई मुफ्त सौगात का 
कोई मूल्य नही पहचानता इस की औकात का

इसे बेदर्दी से लुटाया जाता है 
इसे बस यू ही गंवाया जाता है 
जिन्दगी के किसी मोड़ पर 
जब इसकी जरूरत  पडेगी
न पा सकोगे इसको 
न पाने की कोई तरकीब लडेगी

जो थोडा सा वक्त होगा अब रहने को 
चंद सांसों के लिए या पछताने को 
वक्त रहते इसकी औकात को समझो 
मुफ्त मिली इस सौगात को समझो 
जो क्षण ,महीना साल गुजर जायेगा 
लौट के दौबारा ,जिन्दगी में न आयेगा |

जब ये चाल अच्छी चलता है 
तो सब को अच्छा लगता है 
जब चाल ये अपनी बदलता है 
अच्छे ,बुरे पासे पलटता है 
बुरी से सब को दहलाता है
अच्छी से सब को बहलाता है

तब चलती इसी की मर्जी है  
कोई बांध इसे नही पाता है |
आज वक्त तुम्हारे साथ है 
बस छोटी सी मुलाकात है

फायदा उठालो 
इसको संभालो.... 
ये चला जायेगा 
फिर हाथ नही आयेगा

ये वक्त भी क्या...
अजीब चीज है 
किसी के काम आ के भी
किसी काम नही आता 
सब को छोड पीछे अकेला 
खुद आगे निकल जाता... 

गर ये वक्त संभल जायेगा 
ये जीवन सफल हो जायेगा
अब तो होश में आ लो 
अपने वक्त को संभालो.... 
अशोक"अकेला"



Saturday, October 13, 2012

आप में और मुझ में है फर्क बड़ा...???


आप एक कवि और मैं एक साधारण इंसान ||
ख़ुशामद वो शै है,जो कहने में बुरी 
और सुनने में अच्छी लगती है ||
...अज्ञात 
एक कवि जो अपनी कल्पना के 
सुंदर शब्दों से कविता बनाता है|

एक साधारण इंसान जो अपने गुज़रे 
लम्हों को अपनी यादों से सज़ाता है| 

आप अपने ज़ज्बों  से लिखते हो
में अपने तजुर्बों पे लिखता हूँ|

आप ख्यालों में सपने बुनते हो 
में यादों में उनको चुनता हूँ|

आप ठहाकों में बह जाते हो 
में मुस्करा के रह जाता हूँ|

आपकी  आँखें सपने चमकाती हैं 
मेरी आँखें बस टिमटिमाती हैं |

आप में अभी कोमलता का एहसास है 
मुझ में समय की कड़वाहट का वास है |

आपकी कलम से जिंदगी निकलती है 
मेरे हाथों से जिंदगी फिसलती है|

ये तो जवानी और बुढापे का दौर है 
न इसपे चलता किसी का ज़ोर है|

इसमें न किसी की जफ़ा है ,न वफा है 
ये तो बस सिर्फ जिंदगी का फ़लसफ़ा है.....

अशोक"अकेला"

Monday, October 01, 2012

मैं भी इक.... इंसान हूँ !!!

कहने वाला तो कह के, यहाँ से गुज़र गया ,
 जिसपे गुज़री वो तो, जहाँ से गुज़र गया |
....अकेला के, यहाँ से गुज़र गया जिसपे गुज़से गुज़र गया 
मैं भी इक.... इंसान हूँ !!!

 मैं भी आप की भीड़ का हिस्सा हूँ
 मेरी अलग से कोई पहचान नही

 मुझे भी लाया गया है ,इस दुनियां में
 मैं बिन बुलाया तो मेहमान नही

 मेरे अंदर मेरा ,स्वाभिमान बसता है
 यह मेरा गौरव है ,कोई अभिमान नही

 मेरी भी अपनी इज्ज़त है कीमत है
 कोई लावारिस पड़ा ,मैं सामान नही

मैं प्यार लेना और देना जानता हूँ  
 नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही

लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
 इससे बड़ा कोई और... अरमान नही

 निश्छल स्नेह ,प्यार की कीमत न समझूँ
 इतना नासमझ ,इतना बड़ा मैं नादान नही

 लड़ता हूँ "अकेला" ,अपने हक् के लिए
 क्यों कि,इंसान हूँ , कोई भगवान नही ||

अशोक 'अकेला'
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