आज मैं आप को सुनवाता हूँ ...अपनी पसंद का एक "बाबा बुलेह शाह का
पजाबी सूफ़ियाना कलाम" ....आबिदा परवीन की सूफ़ियाना आवाज़ में ...
गुलज़ार साहब कहते है "आबिदा को सुनो तो ध्यान लग जाता है , इबादत शुरू हो जाती है
कोई उनको सामने बैठ कर सुनें, तो आँखे अपने आप बंद हो जाती हैं,
आंखे खोलो तो, वो बाहर नज़र आती है ,
आँखे मूंदो तो वो दिल के अंदर नज़र आती हैं "
मुख़्तसर सी बात है ....
रब,परमात्मा, भगवान या खुदा
अगर इसको पाना है तो ,पाक,पवित्र और मासूम दिलों में झाँकों और
उसे पाओ न कि किसी मंदिर या मस्जिद में |
अगर खुदा सिर्फ सुबहो-सवेरे नहाने ,जंगल में घूमने ,से मिलता तो
सबसे पहला ह्क़ पानी में हर दम रहने वाले जीव-जन्तुओ का होता ,
जंगल-जंगल घूमने वाले जानवरों का होता |
पुजारियों को मिलता उनका भगवान ,जो रोज सुबह मंदिर का घंटा बजाते है ,
और आरती उतारते है ,किसी मौलवी को मिलता उनका खुदा, जो हर रोज मस्जिद में
आज़ान और न जाने कितनी दफा नमाज अत्ता करता है ....पर .नही ..?
बाबा बुलेह शाह ने फ़रमाया है कि ......
बेशक मंदिर-मस्जिद तोड़ो,पर प्यार भरा दिल कभी न तोड़ो
इस दिल में ,दिलबर रहता ....खुदा,परमात्मा दिलों में बसता है ,
इस लिए कुछ भी तोड़ो,पर प्यार भरा दिल कभी न तोड़ो .....
उसी में सिर्फ रब बसता है .......
कहते है ,संगीत की कोई भाषा नही होती ,कोई सरहद नही होती ,ये हर बंधन से आज़ाद
होता है| भले ही ये पंजाबी ज़ुबान में है ,पर ये आप के दिलों तक जरूर
पहुंचेगी,क्योंकि ये दिल से निकली ,दिल की आवाज़ है.....
आप भी सुनिए ....बाबा बुलेह शाह का ये सूफी कलाम
आबिदा परवीन की सूफ़ियाना आवाज़ में ::साडे वेड़े आया कर यार सुबहो-शाम
दोस्त सुबहो-शाम ....
achha laga geet
ReplyDeleteरब,परमात्मा, भगवान या खुदा
ReplyDeleteअगर इसको पाना है तो ,पाक,पवित्र और मासूम दिलों में झाँकों और
उसे पाओ न कि किसी मंदिर या मस्जिद में |
Kaash !
वाह …………आनन्द आ गया।
ReplyDeleteआबिदा परवीन की सूफ़ियाना आवाज़ में बाबा बुलेह शाह का ये सूफी कलाम सुनकर मज़ा आ गया बड़े भाई । आभार।
ReplyDeleteलाजवाब!
ReplyDelete'....अगर इसको पाना है तो ,पाक,पवित्र और मासूम दिलों में झाँकों और उसे पाओ न कि किसी मंदिर या मस्जिद में |'
ReplyDeleteसच है...
संगीत भाषा से परे प्रभावित करता है... और प्रभु के निकट ले जाता है!
आपकी यादों से परिचित होना हमेशा बहुत कुछ दे जाता है!
आभार!
सूफी संगीत में कुछ तो बात है।
ReplyDeleteआनन्द आ गया....बेहतरीन सूफी गीत ....
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।
ReplyDeleteअब तक चार पांच बार सुन चुकी हूँ इस कलाम को लगातार.एक एक शब्द जैसे 'उसके' करीब ले जाता है.आँखें मूंदों तो भीतर महसूस होता है...........खोलो तो लगता है ....छू लेगा.
ReplyDeleteबुल्लेशाह का कलाम उस पर आबिदा परवीन की आवाज़ ... 'वो' अंदर बाहर आखिर क्यों महसूस न हो ?
पाक दिलों मे खुदा रहता है कौन जाने?हाँ ऐसे दिलों को हर कोई यूँ रौंद जाता है जैसे ध्म्मोही(दुमोही विषहीन सांप)को बच्चे भी उठाकर फैंक देते हैं.
बहुत खूब लिखा है वीरा! जैसे हो वैसा ही लिख देते हो आपके अपने दिल की पाकीज़गी तो यहाँ दिख रही है.इस लेख मे .....इस कलाम मे.
'वो' आपकी गली मे क्या आएगा जो हर वक्त आपके दिल मे रहता है.यह तो हम जैसे लोगों के लिए जो अरदास करते हैं 'उससे' साड्डी गली आया कर यार सुबहो शाम
बहुत सुन्दर पृष्ठ भूमि के साथ उतारा आपने इस बंदिश को .आभार .
ReplyDeleteबुल्ला की जाने मैं कौन?
ReplyDeleteआज तो पूरी इबारत ही लिख दी है फलसफा लिख दिया है कबीर का .आभार .हमारा तो कॉफ़ी सामान भी आपने गूगालिया ज़ब्ती से छुडवा दिया .
ReplyDeleteकमाल है आपकी और मेरी पसंद बहुत हद तक मिलती है...आबिदा का मैं भी फैन हूँ...और सादे वेड़े आया कर...का दीवाना...
ReplyDeleteनीरज
badiya
ReplyDeletekuch yaade taaza ho gaii........aabhar
रूहानी सा माहोल बन गया पोस्ट पढते पढते ... मन के अंदर ही है सब कुछ ... रब तो यार में होता है कोई माने तो सही ... आबिदा जी की आवाज उस मुकाम तक ले जाती है ...
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