अरे! यह तो दिल की श्रंखला शुरू हो
गई...पहले दिल टूट गया 'गीत'
फिर 'ग़ज़ल' रोएंगें हज़ार बार
और अब 'इस दिल को तो आखिर टूटना ही था'
पढ़ने के लिए!!! सच! यह
सिर्फ इत्फ़ाक है ....
"अपने उन चाहने वालों...की"नज़र"
जिनको सिर्फ और सिर्फ मैंने चाह"..!!!
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"ग़ालिब साहिब " |
माँ के आँचल में छुप के
मैं उसको गुदगुदा रहा था ,
वो सुना रही थी लोरी मुझे
मैं हंसी-हंसी में उसको रुला रहा था||
वो प्यार से मेरा माथा सहला रही थी
अब मुझ को भी नींद आ रही थी
माँ ने गोद से हटा ,पलंग पे लिटाया ||
मैं थोडा सा घूमा
उसने मेरे माथे को चूमा
मैं न अब अपनी होश में था
शायद गया मैं, नीदं की आगोश में था||
मैं नीदं में चलते डगमगाया
थोडा घबराया
चोंक के उठा
चारो और अँधेरा था
लगा ऐसे अभी दूर सवेरा था||
कुछ अजीब सा एहसास हुआ
मैंने अपने माथे को छुआ
वहाँ पसीना था ,ये दिसम्बर का महीना था||
मेरे हाथ भी बड़े-बड़े थे
मेरे माथे पे जो पड़े थे
मैं न रहा अब छोटा बच्चा था
मैं हो गया अब जवां बच्चा था ||
बरसों पहले गई,कल रात
माँ आ गई थी
मेरा माथा चूम ,मुझे
प्यार से सहला गई थी
भले ही ये एक रात का सपना था||
इंतज़ार करूँगा हमेशा फिर इसके आने का
क्यों कि,मेरा सब कुछ इसमें अपना था ||
अशोक"अकेला"
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