क्या माँ को याद करने की कोई उम्र होती है ...?ये मुझे नही पता...मैं
आप से पूछ रहा हूँ ? मैंने तो अपनी माँ को कभी देखा ही नही,
न सजीव ,न किसी फोटो में ,फोटो थी नही और जब वो मुझ से रूठ
के भगवान के पास गई ,मुझे होश नही ,मैं तक़रीबन तब एक साल
और कुछ महीने का रहा हूँगा ऐसा मुझे बताया गया |
मुझको मेरी नानी जी ने पाला-पोसा ,बड़ा किया ,पढाया ,लिखाया
ज्यादा नही पढ़ सका ,ये मेरी कमजोरी थी...न कि किसी और की..
चाहे कमजोरी की वजह कुछ भी रही हो ....बिन माँ के बच्चे में कुछ
अनचाही कमियां तो आ ही जाती हैं न ?
तो नानी ने ...इतना प्यार दिया कि माँ की कभी याद ही नही आने दी ....
क्योकि मैं "अकेला" था ,अकेला हूँ ...!!!
जब तक वो मेरे साथ इस जहां में रही ..मैं इन यादों से दूर ही रहा ...
अब ये भी उनका कसूर हो गया क्या ...? बचपन खेलते -कूदते गुज़र गया ,
जवानी रोज़ी-रोटी,बच्चों के पालन-पोषण और कुछ अठखेलियाँ और मस्ती
में .......!!!
खैर ! बचपन बीता,जवानी बीती और कब बुढ़ापे ने दस्तक दे दी ...पता
ही नही चला ,जब पता चला तो वो अपना कब्जा जमा चूका था |बुढापा जो,
ज्यादातर, तन्हाई में और अकेलेपन में गुज़रता है या गुजरेगा ....!!
तो अब फुर्सत-ही-फुर्सत है मुझे भी और मुझ से दूसरों को भी |
तो अब बुढापा ...तो ऐसे ही कटेगा न ...कुछ अच्छी ,खट्टी-मीठी यादों को
याद करने से जिनको याद करने कि कभी जरूरत ही नही महसूस हुई ....
अक्सर सुनने में आता था ,,तकलीफ में हमेशा माँ ही याद आती है और मुझे
माँ से पहले नानी याद आती है ........
अब एक तो ये बड़ी वजह है ..मुझे अपनी माँ की बहुत याद आती है इस
उम्र में और दूसरी वजह है मेरी नानी जिसने मुझे माँ की याद ही नही आने दी ,
अपनी नानी को याद करने की ...सो इसी बहाने दोनों को अपनी यादों में समेटने
की कोशिश करता रहता हूँ |
तीन बच्चे .दो बेटियां एक बेटा -तीनों अपनी-अपनी गृहस्थी ,सँवारने मैं व्यस्त |
तीनो के बच्चे भी पढ़-लिख रहे हैं -और अपने-अपने सर्कल में समय बिताने को
बेताब | बेटे के अभी छोटे हैं ,वो अभी दादा-दादी से खेलने के लिए या दादा-दादी
उनसे खेलने के लिए अपने समय का सदुपयोग करते हैं ..:-))))))
बुढ़ापे में अच्छी-बुरी यादेँ ही सहारा होती है, समय बिताने के लिए और मेरा
मानना है की दूसरों की निजी जिंदगी में दखलंदाजी करने की बजाय ,अपनी यादों को
याद कर के खुद को खुश या तंग कर लेना ज्यादा बेहतर है ....सब के लिए ?
अब मैं कोई लेखक तो हूँ नही ,कि कोई कहानी बना के लिख दूँ ,
शायरी कर दूँ, गज़ल, नज्म या कोई कविता की चंद लाइनों में अपनी
बात पुरज़ोर तरीके से लिख सकूं ....इस लिए जैसे-तैसे अपनी कम -समझ
अनुसार जो जैसे महसूस करता हूँ ,वो ही अहसास वैसे ही साधारण भाषा
में लिखने कि कोशिश करता रहता हूँ |
हर इंसान का अतीत उसकी यादों में बसा होता है ....ये ही उम्र होती है ,जब
इंसान अपने वर्तमान से निकल कर अपने अतीत में जाना चाहता है और अपनी
गुज़री अच्छी-बुरी यादों को संजो कर उनमें खो जाना चाहता है | पहले तो उसके
पास समय ही नही होता इन सब बातों के लिए और अब समय ही समय है ..
बाकि सब बातों के सिवाय ..? तो ये यादेँ ही अब बुढ़ापे का सच्चा सरमाया है ....
अच्छा-बुरा सब उसका ..सिर्फ उसका ......अब आप उसे जो चाहे नाम दे लें ,
मेरा समय ऐसे ही कटता है और मुझे ,अच्छा भी लगता है |
कहीं न कहीं ,मेरी हर लिखी ,लाइनों में जिसे आप गज़ल,नज्म.या कविता कहें या
जो भी आप समझे ,मुझे तो समझ है नही ,माँ का जिक्र आता है .आता रहेगा और ऐसा
मैं चाहता हूँ ...मुझे सुकून मिलता है|
ये अहसास मेरे अपने हैं ...और बहुत है ...निजि हैं ,इसमें आप को तकलीफ क्यों दूँ |
कहते हैं ..खुशी दूसरों के साथ बाँटना अपनी खुशियों को दुगना करना होता है ,
ये हमारा फर्ज भी बनता है ,पर अपने दुःख दूसरों के साथ बाँटना अपने दुखों को
कम करना होता है ,पर दूसरे तो ख्वामखा परेशान होते है ,ये तो हमारा हक कभी
नही बनता ...दूसरे की परेशानी का सबब बनने का .....ये मेरी सोच है |
मैं चाहूँगा कि मैं अपनी सोच के साथ ही रहूँ ,,,और आप से क्षमा मांग ,यहीं
अपनी बात को विराम दे दूँ ......दुःख सुख सब की जिंदगी में है ..हो सके तो
सुख बाँट लो वरना दुःख अपने तक ही सीमित रखो .........!!
मेरे पास आप को सिखाने को कुछ नही ,और आप से सीखने को बहुत कुछ .
जो में अपनी पूरी कोशिश कर रहा हूँ ,करता रहूँगा .....आभार !
आप सब बहुत खुश और स्वस्थ जीवन जियें ||
शुभकामनाएँ !
अशोक 'अकेला'