अशोक सलूजा |
यादें.....मेरी यादों के गुलदस्ते से एक फूल आज फिर लाया हूँ आप के लिए :-
आज एक अपने मन-पसंद 'भजन' के रूप में .....
जो मुझे अपने बचपन से ही बहुत पसंद है ,बहुत सुना है,गुनगुनाया है
और आज तक ये सुनने का क्रम ज़ारी है ...आप भी सुनें ....
वैसे भी आज इस को सुनने का मौका है ...
जनलोकपाल बिल की पहली लड़ाई पर जनता की पहली भारी जीत पर ...
भारत की जनता को बहुत-बहुत बधाई और अगली लड़ाई की जीत
के लिये शुभकामनायें !!!
मन मोहन प्यारे जी को भी धन्यवाद !!!
ये 'भजन' हम सब के लिये है ,और हम सब को जीवन की अच्छाई
बुराई के बारे में चेतावनी देता है और सब को सचेत करता है !!!
हमे अच्छे काम के लिये प्रेरित और अपनी ओकात में रहने की
सलाह ...ये रफी साहब का गाया हुआ भजन है .....
"मत भूल अरे इंसान ,तेरी नेकी -बदी नही उस से छुपी.!!!
सब देख रहा भगवान ,मत भूल अरे इंसान ........
फिल्म: मस्ताना
वर्ष: १९५४
गायक: रफ़ी साहब
संगीतकार: मदन मोहन
गीतकार: राजिंदर कृष्ण
कलाकार : मोती लाल ,निगार सुल्ताना ,गोप आदि...
बड़ा ही सुन्दर।
ReplyDeleteसार्थक पोस्ट....सार्थक भजन ....
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
ReplyDeleteशुक्रिया भाई साहब !बेहद खूब सूरत एहसास ,ज़ज्बात की पोस्ट ,मनभावन चित्त शामक भजन .आभार आपका .
ReplyDeleteसोमवार, २९ अगस्त २०११
क्या यही है संसद की सर्वोच्चता ?
http://veerubhai1947.blogspot.com/
ये कालजयी भजन है...धन्यवाद आपका इसे फिर से प्रस्तुत करने के लिए...
ReplyDeleteनीरज
आप चुन-चुन कर अनमोल भजन और गीत लाते हैं।
ReplyDeleteअभिवादन।
बेहतरीन भजन.
ReplyDeletebeautiful Bhajan
ReplyDeleteमंगलवार, ३० अगस्त २०११
ReplyDeleteनाट्य रूपांतरण किया है किरण बेदी ने .;
किरण बेदी जी ने जो कुछ कहा है वह महज़ नाट्य -रूपांतरण हैं उस जनभावना का जो भारतीय राजनीति के प्रति जन मन में मौजूद है .दृश्य की प्रस्तुति उनकी है .संवाद श्री ॐ पुरी जी के हैं ।
किरण ने घूंघट की ओढनी की ओट से जो कुछ कहा है वह सर्वथा भारतीय नारी की मर्यादा के अनुरूप है ,उपालम्भ शैली में है ।
पुरी सम्पूर्ण पुरुष है ,अपनी प्रकृति स्वभाव के अनुरूप कहा है जो कुछ कहा है .कहा किरण जी ने भी वही है .बस पुरुष और नारी के स्वभाव का सहज अंतर है यह ।
अनुपम खैर जैसी अजीमतर शख्शियत ने पुरी के वक्तव्य पर मोहर लगाते हुए कहा है -आम भारतीय घर में यही सब बोला जाता है इनसंसदीय - तोतों के बारे में जो विशेषाधिकार हनन की बात कर रहें हैं ।
बुलाये संसद और राज्य सभा की विशेषाधिकार समिति टीम अन्ना को ,ॐ जी को ,दस लाख लोग आजायेंगे उनके पीछे पीछे .इनकेसाथ अपने तोता पंडित वीरुभाई और वागीश जी भी होंगें .बेहतर हो डिब्बे का दूध पीने वाले जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ न करें .आदर दे जन मन को ,जन -आक्रोश को इसी में भली है .
DO YOU KNOW :Infants need daily exercise
एक ब्रितानी अध्ययन ने इंगित किया है नौनिहालों के लिए भी कसरत करना ज़रूरी है भले वह अभी "मैयां मैयां ठुमक ठुमक चलना न सीख पायें हों .कोईछूट नहीं दी जा सकती इन नौनिहालों को ,शिशुओं को कसरत से .
माँ बाप को यह सुनिश्चित करना चाहिए उनका १-५ साला नन्द लाल और राधायें कम से कम दिन भर में तीन घंटा ज़रूर सक्रिय रहें .
दो साल से नीचे की उम्र के शिशुओं को कदापि टेलिविज़न (बुद्धू बक्से )या फिर कंप्यूटर के सामने न बिठाएं .
प्रस्तुतकर्ता veerubhai पर ९:३८ अपराह्न 1 टिप्पणियाँ
वीरे ! बचपन में इस भजन को कभी कभी रेडियो पर सुनती थी.फिर......टेप रिकोरदार का जमाना आया तो केसेट तैयर कर ली.अक्सर सुनने लगी.और यह भजन मेरी आत्मा में यूँ बसा कि ....लगता 'उसका' वीडियो कमरा हर समय मेरे पीछे चल रहा है.अपने किये को सबसे छुपा लुंगी.खुद से झूठ बोल धोखे में रख लुंगी किन्तु जब 'उसके' पास जाऊंगी और उसने रिकोर्डेड फिल्म चालु कर दी तो न कैसे कह पाऊँगी.और उस समय जो मुझे बहुत प्यार करते हैं,विश्वास करते हैं वो भी मेरे पास ही खड़े होंगे तब मेरी क्या हालत होगी?
ReplyDeleteजब उससे कुछ नही छुपा तो ऐसा करूं ही क्यूँ कि 'उससे' नजर न मिला सकूं.
मेरे लिए भजन सुनने से ज्यादा गुनने का सामां रहा है. यह हमारे जीवन को बदल देने की क्षमता रखते हैं गर....हम चाहे तो.
कृष्ण भजन सुनती हूँ तब उसे अपने बेहद करीब महसूस करती हूँ.अब तो....आप सब मेरे कृष्ण बन चुके हैं वीरे !
आपका यह भजन .मेरे लिए???लो सिर माथे लगा लिया.
बेहद खूबसूरत भजन
ReplyDeleteसुन्दर!
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