"अकेला" का अकेलापन..!!!
"मुझ को छोड़ दो "अकेला" मैं 'अकेला' रहना चाहता हूँ "
जब जब यह वाक्य याद आता है
तब-तब अब मन बहुत घबराता है
शायद ये सब वक्त-वक्त की बात है
अब जो अकेलापन बहुत सताता है
राह तकता हूँ अब सुनी आँखों से
जब चल के पास कोई न आता है
सायं सायं जब करता है रात का अँधेरा
तो अकेलापन आँख से आंसू छलकाता है
चाहने वाला कभी , हर वो शख्स क्यों
गुज़रे वक्त के, साथ-साथ बदल जाता है
खुदी की चाहत से जब माँगा था अकेलापन
तो फिर अब ऐ दिल तू क्यों पछताता है
अब "अकेला" उन यादों को याद करके
बस अपने अकेलेपन को ही सहलाता है ....
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अशोक सलूजा 'अकेला' |
अकेलेपन को साथी बना लेने से अकेलापन नहीं रहता है।
ReplyDeleteप्रवीण जी ,आप का कहना बिलकुल ठीक है,पर यह आप के लिए ठीक नही होगा :-)
Deleteआभार!
सलूजा साहब इस पर आपके लिए एक शेर अर्ज करना चाहूँगा ;
ReplyDeleteअपने को एक सामर्थ्यहीन ठेला न समझो,
सिर्फ अतीत के ख्यालों का रेला न समझो,
जिन्दगी के इस मेले में हम तुम्हारे साथ है,
सलूजा साहब, खुद को यूं अकेला न समझो !
नहीं मालूम कि आप मद्यप हैं या नहीं, किन्तु थोड़ा मसखरी का मूड हो रहा है, उम्मीद करता हूँ कि आप इसका बुरा नहीं मानेगे !
Deleteएक भोर की आड़ में लेते हैं, एक संध्या की आड़ में,
अपुन दो में ही मस्त हो जाते है, दुनिया गई भाड़ में। :)
भाई जी आप की जिन्दादिली का कायल हूँ मैं ......
Deleteआप के स्नेह का आभार !
भाई जी ,बुरा कैसा मानना .और वो भी आपका .......
Deleteआप की येही शोखियाँ तो मेरा अकेलापन दूर करती हैं ...
खुश और स्वस्थ रहें !
हम तो परचेत जी वाली बात ही दोहराना चाहेंगे. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
चाहने वाला कभी , हर वो शख्स क्यों
ReplyDeleteगुज़रे वक्त के, साथ-साथ बदल जाता है
सच है ..... पर अकेलेपन से भी जूझना सीखना होता ही सबको किसी न किसी मोड़ पर
मोनिका जी, मैंने तो अपना तजुर्बा लिखा है .....
Deleteअकेलेपन से जूझने का समय तो आपके पास है ....जो मैंने गवां दिया !!!
शुभकामनायें!
राह तकता हूँ अब सुनी आँखों से
ReplyDeleteजब चल के पास कोई न आता है
बहुत सुंदर रचना,
सच कहूं तो ऐसी रचनाएं कभी कभी ही पढने को मिलती हैं
बस अपने तजुर्बे की रचना बन गई .....:-)
Deleteआभार!
बाह , बहुत सुन्दर .अकेलेपन में ही आदमी को सच्चाई की पहचान होती है।
ReplyDeleteसायं सायं जब करता है रात का अँधेरा
ReplyDeleteतो अकेलापन आँख से आंसू छलकाता है ..
अकेलेपन को झेलना आसान नहीं ... आपकी गज़लों से दर्द छलकता है ...
टीस सी गुज़र जाती है ...
सायं सायं जब करता है रात का अँधेरा
ReplyDeleteतो अकेलापन आँख से आंसू छलकाता है
चाहने वाला कभी , हर वो शख्स क्यों
गुज़रे वक्त के, साथ-साथ बदल जाता है
यह आपकी, हमारी सबकी कहानी है" अकेला" जी,-बहुत सटीक अनुभूति
Latest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
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ReplyDeleteअकेलापन,को क्या समझेगे लोग,,
ReplyDeleteक्योकि ,हमें आज दिखते दुकेले है..
RECENT POST... नवगीत,
ठंडी हवाएं ,दिलकश फिजायें ,तन्हाई ,और तेरी याद ,
ReplyDeleteबड़ा ही दिलकश होता है मेरी तन्हाई का मंज़र।।।।।।।
कविता बहुत सुंदर है ....
ReplyDeleteसंगीत को साथी बना लीजिये अकेलापन दूर भाग जाएगा .....!!
अनुपमा जी ..बस ऐसे ही दूर भगाता हूँ अपने अकेलेपन को ..यह तो मेरी यादों का सफ़र है |
Deleteआभार!
शायद इसे ही वक्त का खेल कहते है मगर ज़िंदगी अकेले में भी अकेलेपन के साथ रहना सिखा ही देती है।
ReplyDeleteपल्लवी जी . आपने सही समझा है ...जिन्दगी को |
Deleteआभार !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 14-02 -2013 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
आज की नयी पुरानी हलचल में ..... मर जाना , पर इश्क़ ज़रूर करना ...
संगीता स्वरूप
.
संगीता जी ...आपके स्नेह का आभार !
Deleteजो चीज़ पास नहीं होती ... मन उसी के पीछे भागता है ..... :(
ReplyDeleteअनुपमा जी से सहमत हूँ .... अकेलेपन में अक्सर ...'संगीत' बहुत अपनेपन से साथ निभाता है ..... :)
~सादर!!!
तुम मेरे पास हो ,जब कोई दूसरा नहीं होता .
ReplyDeleteतुम मेरे पास होते हो ,जब कोई दूसरा नहीं होता .
ReplyDeleteमुबारक प्रेम दिवस ,अतीत के झरोखों से झांकता ,ताकता प्रेम .
कुछ उदासी और कुछ टीस भरी लेकिन पुरअसर एवं सशक्त अभिव्यक्ति है ! मूड का यह फेज़ भी बीत जाएगा ! किताबें सबसे अच्छी साथी की भूमिका निभाती हैं ! उन्हें अपने पास रखें !
ReplyDeleteसाधना जी , यह मूड का फेज़ नही ..बुढ़ापे के अकेलेपन का है ...इसे अपने-अपने समय पर अकेले ही बिताना पड़ेगा जैसे मैं अपनी यादों और तजुरबो के संग बीता रहा हूँ !
Deleteआभार !
अकेलेपन को अपने पर हावी मत होने दीजिये , ये आपकी कलम और उससे निकली हुई रचनाएँ ही तो आपकी साथी हैं और फिर जो किताबों में जीता है वो कभी अकेला नहीं होता उसको बहुत सरे साथी मिल जाते हैं।
ReplyDeleteरेखा जी ..आप सही कह रही हैं ..मैं भी यही कर रहा हूँ ..अपनी यादों को रचना में ढाल कर ..
Deleteआभार!
राह तकता हूँ अब सुनी आँखों से
ReplyDeleteजब चल के पास कोई न आता है
बेहद भावमय करते शब्द
सादर
बहुत-बहुत शुक्रिया सदा जी .....
Deleteसार्थक अभिव्यक्ति ............
ReplyDeleteभीड़ में भी तो कभी-कभी हम अकेले होते हैं
साभार
हाँ जी ,यह मूड की बात है ...
Deleteआभार!
बहुत सुन्दर कविता रच दी आपने मन के भाव ही हैं जिन्हें बस शब्दों में ढाल दिया ...मेरी रचना तन्हाई का जैसे ये जवाब हो ..अकेलापन किसी को अच्छा नहीं लगता सर मुझे तो बिलकुल भी नहीं ...मेरी कविता दोबारा पढेंगे तो समझ जायेंगे आप
ReplyDelete---
सादर
---पारुल
पारुल जी ..यह बुढ़ापे का अकेलापन है जिसे अपने वक्त पर सब को इसका सामना करना है ..आप को मेरा लिखा तजुर्बा अच्छा लगा शुक्रिया !पर अभी आप की उम्र
Deleteमें अकेलापन बिलकुल अच्छा नही ...खुश रहिये और मस्त रहिये ....
जिन्दगी का आनद लें !
शुभकामनायें!
सर प्लीज आप मुझे सिर्फ पारुल कहिये मुझे अच्छा लगेगा ..और मेरी नई रचनाएँ आपकी टिपण्णी का इंतजार कर रही हैं लिंक यहाँ दे रही हूं
Delete--सादर
http://parulpankhuri.blogspot.in/2013/02/blog-post_19.html
http://parulpankhuri.blogspot.in/2013/02/blog-post_4266.html
अकेलापन हमराही है ...इससे गिला कैसा ...बहुत अच्छी कविता
ReplyDeleteकविता जी,कोई गिला,शिकवा नही ,अपना तजुर्बा बाँट रहा हूँ शायद किसी के समय रहते काम आ जाये ..:-) मुझे तो इसने लिखना सिखा दिया और समय का सदुपयोग भी !
Deleteआभार !
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Deleteआभार दिलबाग जी ...
ReplyDeleteइक समय का सुखद अनुभव किसी दूसरे समय में कैसे दुःस्वप्न में बदल जाता है यह रूह कंपा देने वाला अनुभव होता है। फिर भी आप उतने अकेले भी नहीं हैं। आप इतनी रुचि से सुंदर कविताएँ लिखते हैं लोगों की लेखनी को अपने सुंदर शब्दों से निखारते हैं। मुझे इस कविता पर किसी किताब में पढ़ा हुआ एक रोचक वर्णन याद आ गया।
ReplyDeleteनरक का दरबार सजा हुआ था, धरती से आए नये नारकीय अपनी सजा सुनने को बेकरार थे। यमराज की एंट्री हुई। उन्होंने देखा सभी कैदी मौन हैं दुखी होकर सजा का फैसला कर रहे हैं बस कुछ लोग ही अलग खड़े होकर डूबकर वार्तालाप कर रहे हैं। यमराज ने चित्रगुप्त से पूछा, ये लोग कौन हैं इतने नारकीय माहौल में भी कैसे ये इनसे निर्लिप्त हो सकते हैं।
चित्रगुप्त ने कहा कि ये लोग लेखक अथवा कवि किस्म के प्राणी हैं जहाँ भी जमा होते हैं दिलचस्प महफिल जमा लेते हैं इन्हें स्वर्ग में रखो या नरक में इन्हें फर्क नहीं पड़ता।
ये किस्सा वर्जीनिया वुल्फ ने गढ़ा था, मुझे लगता है कि आपका अकेलापन अकेला होने के बाद भी विशिष्ट है। अद्भुत है।
सौरभ भाई ! इतने मान-सम्मान का हक़दार नही हूँ मैं ..पर फिर भी मनुष्य हूँ ,और मनुष्य की फितरत के हिसाब से मुझे भी इस सम्मान से ख़ुशी हुई है, वैसे मैं अपने जीवन से बहुत खुश हूँ ,जो मिला ,जितना मिला ,बहुत मिला ...यह मेरे तजुर्बें हैं ,जो मैं लिख रहाहूँ,शायद किसी के काम आ जाये ...और कभी किसी की ख़ुशी में,मैं भी साझीदार हो जाऊं|
ReplyDeleteबस,मनुष्य से एक अच्छा इंसान बनने की कोशिश में एक कदम और आगे बढ़ जाऊं|
खुश रहें |
शुभकामनायें!
बहुत सटीक अनुभूति खुश रहिये हमेशा
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार संजय जी ....
DeleteUff, ye akelapan!!
ReplyDeleteसमीर भाई जी ...आप आ गये तो अकेलापन कैसा |
Deleteआभार!
निराशा ठीक नहीं भाई जी ...
ReplyDeleteसादर
भाई जी .आपके आने से निराशा ..आशा में बदल गई |
Deleteस्नेह के लिए आभार |
आपके साथ हूँ !
Deleteदिल को छू जाने वाली पंक्तियां
ReplyDelete