Monday, December 03, 2012

तन्हाई का अँधेरा ....

आजकल सुन के अनसुनी कर देता है वो 
अब उससे क्या मैं कहूँ 
उम्र सारी,वो कहता रहा ,मैं सुनता रहा 
अब  इससे ज्यादा क्या सहूँ |
...अकेला

अशोक "अकेला"

35 comments:

  1. एक अकेला मैं रहता हूँ,
    संचित अनुभव, यह कहता हूँ,
    जीवन की भागा-दौड़ी में,
    जिस दिन तुम भी थक जाओगे,
    राह मिलेगी न कोई तब,
    मेरी ओर चले आओगे,
    नहीं रहूँगा, किन्तु वहाँ तब,
    अपना कर्म, स्वयं पाओगे।

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    1. नहीं रहूँगा, किन्तु वहाँ तब,
      अपना कर्म, स्वयं पाओगे।....

      काश! न हो यह तब
      जो समझ जाये कोई अब.....

      आभार प्रवीण जी !

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  2. दुनिया का दस्तूर बखूबी बयां किया सर जी ! वो एक पुराना शेर याद आ रहा है ;
    जब था हम में दम, न दबे आसमा से हम,
    जब दम निकल गया तो जमी ने दबा दिया।

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    1. भाई जी ,
      पुराने दस्तूर पर आप का पुराना शे'र ही
      फिट बैठता है !
      आभार !

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  3. बहुत बढ़िया आदरणीय ||
    आभार ||

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    Replies
    1. खुश रहिये ,प्रिय कवि
      रविकर जी ...

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  4. आजकल सुन के अनसुनी कर देता है वो
    अब उससे क्या मैं कहूँ
    उम्र सारी,वो कहता रहा ,मैं सुनता रहा
    अब इससे ज्यादा क्या सहूँ |
    दिल को छू गई आपकी ये प्रस्तुति विशेषकर ये पंक्तियाँ ---आपकी इस रचना को कल के चर्चा मंच में स्थान मिला है

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    1. आप के स्नेह के लिए आभार ....

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  5. सुपर नज्म लिखी है आपने। अब मै यहाँ एक या दो लाइने लिखकर क्या कहूँ की मुझे ये पसंद आई है , बल्कि सच तो ये है की मुझे तो इस नज्म की हर हर लाइन ही पसंद आई है। काफी समय बाद लिखा ,लेकिन काफी अच्छा और बेहतर लिखा। आपकी लेखनी इसी तरह जारी रहे ,और हम जैसे नवजवान इससे हमेशां कुछ ना कुछ सीखते रहें ,यही दुआ है आमिर की।

    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स
    इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड

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    1. आमिर ! आप तो सब को प्यार और इज्ज़त बांटते है ...बड़ा सबाब का काम है !
      करते रहिये ,ख़ुशी हासिल होगी....दुआ है मेरी !

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  6. आदरणीय सर पूरी की पूरी नज़्म ह्रदय में बस गई, यह सत्य है जो आपने शब्दों में बयां किया है, आपके जज्बे को मेरा सलाम.

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  7. गहन उत्कृष्ट भाव ...
    बहुत सुंदर रचना ....
    शुभकामनायें ।

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  8. मन को छूते भावों के साथ ही इस अनुपम प्रस्‍तुति के लिये आभार आपका

    सादर

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    Replies
    1. @अनुपमा जी ,
      @सदा जी ,

      बहुत-बहुत आभार आप दोनों का
      स्वस्थ रहें !
      शुभकामनायें!

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  9. बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है अशोक जी.

    मत पूछ क्या क्या सहे हैं सितम
    दिल के घाव फिर हरे हो जायेंगे.

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    Replies
    1. बहुत शुक्रिया डॉ,साहब जी !

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  10. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 4/12/12को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है

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  11. दिल को अपेंडिक्स की तरह व्यर्थ अ -कार्यशील,नाकारा ,मौके -लालों की वजह से न दुखने दो .बढ़िया रचना, रचना में ज़िन्दगी ,ज़िन्दगी में बे -रुखी ,बे -रुखी में दर्द ,तो क्या हुआ .ज़िन्दगी तो जी मैं ने .

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  12. बहुत खूबशूरत उम्दा नज्म के लिए,,,अशोक जी बधाई,,

    recent post: बात न करो,

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  13. वक़्त के साथ हालात बदलते हैं और हालात के साथ इंसान बदलते हैं ... गहन वेदना झलक रही है ...

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  14. बहुत ही बढ़ियाँ गजल है..
    बिलकुल हकीकत .....
    वक्त इन्सान को बदल देता है और
    ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है..

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  15. आप सब का बहुत-बहुत शुक्रिया !
    खुश और स्वस्थ रहें!
    शुभकामनायें!

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  16. वक्त ने किया क्या हसीं सितम,हम रहे ना हम
    तुम रहे ना तुम---दिल को शब्दों में कह दिया.

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  17. दिल की जानदार प्रस्तुति ......सादर

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  18. भावनाओं को बहुत ही गहराई और सहजता से अभिव्यक्ति दी आपने, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  19. सहज परिवर्तन है यह स्थितियों का .सबके साथ यही होता है .मगन मैं फिर भी खुद के साथ रहता हूँ .

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  20. बहुत-बहुत आभार आप सब का ...
    आप सब को राम-राम !
    खुश रहें और स्वस्थ रहें !

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  21. ऐसे ही समय में रविन्द्र बहुत याद आते हैं एकला चलो रे...

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  22. परिवर्तन जीवन में हज़ार आते हैं...कुछ खुशियाँ .... कुछ ज़ख्म दे जाते हैं....जब भी उबरना हुआ मुश्किल उन यादों से ...वे बनके आहें बेसाख्ता निकल आते हैं .......सुन्दर ...मर्मस्पर्शी

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  23. आज का कटु सत्य...बहुत सशक्त प्रस्तुति...

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  24. समय का खेल निराला है।
    टीस का बेबाक चित्रण।

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  25. .बहुत सुन्दर और सशक्त प्रस्तुति...

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  26. बहुत खूबसूरत नज़्म. हरेक लफ्ज़ हकीकत बयाँ करता है.

    आभार अशोक जी इस नज़्म को पेश करने के लिये.

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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