एक अकेला मैं रहता हूँ, संचित अनुभव, यह कहता हूँ, जीवन की भागा-दौड़ी में, जिस दिन तुम भी थक जाओगे, राह मिलेगी न कोई तब, मेरी ओर चले आओगे, नहीं रहूँगा, किन्तु वहाँ तब, अपना कर्म, स्वयं पाओगे।
आजकल सुन के अनसुनी कर देता है वो अब उससे क्या मैं कहूँ उम्र सारी,वो कहता रहा ,मैं सुनता रहा अब इससे ज्यादा क्या सहूँ | दिल को छू गई आपकी ये प्रस्तुति विशेषकर ये पंक्तियाँ ---आपकी इस रचना को कल के चर्चा मंच में स्थान मिला है
सुपर नज्म लिखी है आपने। अब मै यहाँ एक या दो लाइने लिखकर क्या कहूँ की मुझे ये पसंद आई है , बल्कि सच तो ये है की मुझे तो इस नज्म की हर हर लाइन ही पसंद आई है। काफी समय बाद लिखा ,लेकिन काफी अच्छा और बेहतर लिखा। आपकी लेखनी इसी तरह जारी रहे ,और हम जैसे नवजवान इससे हमेशां कुछ ना कुछ सीखते रहें ,यही दुआ है आमिर की।
दिल को अपेंडिक्स की तरह व्यर्थ अ -कार्यशील,नाकारा ,मौके -लालों की वजह से न दुखने दो .बढ़िया रचना, रचना में ज़िन्दगी ,ज़िन्दगी में बे -रुखी ,बे -रुखी में दर्द ,तो क्या हुआ .ज़िन्दगी तो जी मैं ने .
परिवर्तन जीवन में हज़ार आते हैं...कुछ खुशियाँ .... कुछ ज़ख्म दे जाते हैं....जब भी उबरना हुआ मुश्किल उन यादों से ...वे बनके आहें बेसाख्ता निकल आते हैं .......सुन्दर ...मर्मस्पर्शी
एक अकेला मैं रहता हूँ,
ReplyDeleteसंचित अनुभव, यह कहता हूँ,
जीवन की भागा-दौड़ी में,
जिस दिन तुम भी थक जाओगे,
राह मिलेगी न कोई तब,
मेरी ओर चले आओगे,
नहीं रहूँगा, किन्तु वहाँ तब,
अपना कर्म, स्वयं पाओगे।
नहीं रहूँगा, किन्तु वहाँ तब,
Deleteअपना कर्म, स्वयं पाओगे।....
काश! न हो यह तब
जो समझ जाये कोई अब.....
आभार प्रवीण जी !
दुनिया का दस्तूर बखूबी बयां किया सर जी ! वो एक पुराना शेर याद आ रहा है ;
ReplyDeleteजब था हम में दम, न दबे आसमा से हम,
जब दम निकल गया तो जमी ने दबा दिया।
भाई जी ,
Deleteपुराने दस्तूर पर आप का पुराना शे'र ही
फिट बैठता है !
आभार !
बहुत बढ़िया आदरणीय ||
ReplyDeleteआभार ||
खुश रहिये ,प्रिय कवि
Deleteरविकर जी ...
आजकल सुन के अनसुनी कर देता है वो
ReplyDeleteअब उससे क्या मैं कहूँ
उम्र सारी,वो कहता रहा ,मैं सुनता रहा
अब इससे ज्यादा क्या सहूँ |
दिल को छू गई आपकी ये प्रस्तुति विशेषकर ये पंक्तियाँ ---आपकी इस रचना को कल के चर्चा मंच में स्थान मिला है
आप के स्नेह के लिए आभार ....
Deleteसुपर नज्म लिखी है आपने। अब मै यहाँ एक या दो लाइने लिखकर क्या कहूँ की मुझे ये पसंद आई है , बल्कि सच तो ये है की मुझे तो इस नज्म की हर हर लाइन ही पसंद आई है। काफी समय बाद लिखा ,लेकिन काफी अच्छा और बेहतर लिखा। आपकी लेखनी इसी तरह जारी रहे ,और हम जैसे नवजवान इससे हमेशां कुछ ना कुछ सीखते रहें ,यही दुआ है आमिर की।
ReplyDeleteमोहब्बत नामा
मास्टर्स टेक टिप्स
इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
आमिर ! आप तो सब को प्यार और इज्ज़त बांटते है ...बड़ा सबाब का काम है !
Deleteकरते रहिये ,ख़ुशी हासिल होगी....दुआ है मेरी !
आदरणीय सर पूरी की पूरी नज़्म ह्रदय में बस गई, यह सत्य है जो आपने शब्दों में बयां किया है, आपके जज्बे को मेरा सलाम.
ReplyDeleteखुश और स्वस्थ रहो !
Deleteगहन उत्कृष्ट भाव ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ....
शुभकामनायें ।
मन को छूते भावों के साथ ही इस अनुपम प्रस्तुति के लिये आभार आपका
ReplyDeleteसादर
@अनुपमा जी ,
Delete@सदा जी ,
बहुत-बहुत आभार आप दोनों का
स्वस्थ रहें !
शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है अशोक जी.
ReplyDeleteमत पूछ क्या क्या सहे हैं सितम
दिल के घाव फिर हरे हो जायेंगे.
बहुत शुक्रिया डॉ,साहब जी !
Deleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल 4/12/12को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteदिल को अपेंडिक्स की तरह व्यर्थ अ -कार्यशील,नाकारा ,मौके -लालों की वजह से न दुखने दो .बढ़िया रचना, रचना में ज़िन्दगी ,ज़िन्दगी में बे -रुखी ,बे -रुखी में दर्द ,तो क्या हुआ .ज़िन्दगी तो जी मैं ने .
ReplyDeleteबहुत खूबशूरत उम्दा नज्म के लिए,,,अशोक जी बधाई,,
ReplyDeleterecent post: बात न करो,
वक़्त के साथ हालात बदलते हैं और हालात के साथ इंसान बदलते हैं ... गहन वेदना झलक रही है ...
ReplyDeleteबहुत ही बढ़ियाँ गजल है..
ReplyDeleteबिलकुल हकीकत .....
वक्त इन्सान को बदल देता है और
ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है..
आप सब का बहुत-बहुत शुक्रिया !
ReplyDeleteखुश और स्वस्थ रहें!
शुभकामनायें!
वक्त ने किया क्या हसीं सितम,हम रहे ना हम
ReplyDeleteतुम रहे ना तुम---दिल को शब्दों में कह दिया.
दिल की जानदार प्रस्तुति ......सादर
ReplyDeleteभावनाओं को बहुत ही गहराई और सहजता से अभिव्यक्ति दी आपने, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
सहज परिवर्तन है यह स्थितियों का .सबके साथ यही होता है .मगन मैं फिर भी खुद के साथ रहता हूँ .
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आप सब का ...
ReplyDeleteआप सब को राम-राम !
खुश रहें और स्वस्थ रहें !
ऐसे ही समय में रविन्द्र बहुत याद आते हैं एकला चलो रे...
ReplyDeletehttp://www.parikalpnaa.com/2012/12/2_11.html
ReplyDeleteपरिवर्तन जीवन में हज़ार आते हैं...कुछ खुशियाँ .... कुछ ज़ख्म दे जाते हैं....जब भी उबरना हुआ मुश्किल उन यादों से ...वे बनके आहें बेसाख्ता निकल आते हैं .......सुन्दर ...मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteआज का कटु सत्य...बहुत सशक्त प्रस्तुति...
ReplyDeleteसमय का खेल निराला है।
ReplyDeleteटीस का बेबाक चित्रण।
.बहुत सुन्दर और सशक्त प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत नज़्म. हरेक लफ्ज़ हकीकत बयाँ करता है.
ReplyDeleteआभार अशोक जी इस नज़्म को पेश करने के लिये.