इक चक्कर लगाने का मन है
अपने बीते सुहाने दिनों का
आज फिर उदास है दिल अपना
चलो ज़रा यादों को बुला लेता हूँ .....
कोई सीखे ज़रा इन भूली यादों से
वफ़ा क्या है ,कैसे निभाई जाती है
जब भी फुर्सत हो तुमे, बुला लो इनको
ये बिन कुछ पूछे ,बस दौड़ी चली आती हैं
उदास दिल को बहलाने चली आएँगी
अकेले हो साथ निभाने चली आएँगी
ग़र मिल गया जब भी कभी साथ तुमे
चुपचाप मुड़ के ये वापस चली जायेंगी
कभी शिकवा भी न करेंगी. ये तुमसे
कहाँ रहते हो आजकल इतने गुम से
जब परछाई भी न देगी, साथ तुम्हारा
ये तब भी रहेंगी सहारा, बनके तुम्हारा
न ज़रूरत हो तुमे ,ये पास भी नही फटकती
कोने में चुपचाप पड़ी हैं ,कभी नही खटकती
ये वो हैं जिन्हें तुम छोड़ के, आगे बढ़ आये
तब से पड़ी हैं राहों में, पुकारो ! इनको ये चली आयें .....
---अशोक'अकेला'
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें; ...इसलिए आज शनिवार 13/07/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
कभी कभी यादें इसी तरह बुलाती हैं
ReplyDeleteवो हैं जिन्हें तुम छोड़ के, आगे बढ़ आये
ReplyDeleteतब से पड़ी हैं राहों में, पुकारो ! इनको ये चली आयें .....
........................कभी कभी यादें बुलाती हैं
यादें तो आने के लिये तैयार बैठी रहती हैं, बस बुलाने भर की देर है।
ReplyDeleteBahut sundar abhivyakti.........
ReplyDeleteबस यादें ही तो हैं जो जीवन भर साथ रहती हैं, सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
Wo Bhooli Daasta Lo Fir Yaad Aa Gai.....
ReplyDelete'यादों के लगे हैं मेले...
ReplyDeleteदेखो! हम फिर भी कितने अकेले...'
आपकी हर रचना... दिल के बहुत क़रीब होकर गुज़रती है....
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति!
~सादर!
जब सब छूटने सा लगता है तब याद ही बाकी रहजाती है..
ReplyDeleteयादों की वफ़ाई और उनका जीवन भर साथ .... न कोई शिकवा न गिला बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसच है हम आगे बढ़ते जाते हैं तो यादें पीछे नहीं छूटतीं हमेशा साथ होती हैं ....
ReplyDeleteसाभार.....
यादो की अंतहीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteyadon ka kya hae ye to yun hi chali aati hae
ReplyDeleteयादों की सुन्दर रचना..
ReplyDelete:-)
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14 -07-2013) के चर्चा मंच -1306 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteजब परछाई भी न देगी,साथ तुम्हारा
ReplyDeleteये तब भी रहेंगी सहारा,बनके तुम्हारा...
वाह !!! बहुत सुंदर सृजन ,अशोक जी,,,
RECENT POST ....: नीयत बदल गई.
स्मृतियों से जुड़ी एक सुंदर रचना ......
ReplyDeleteवाह !बेहतरीन चौला पहनाया है यादों को हाड मांस का .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteजब परछाई भी न देगी, साथ तुम्हारा
ReplyDeleteये तब भी रहेंगी सहारा, बनके तुम्हारा -
बहुत खूब अशोक जी , यादें तो अंतिम समय तक साथ निभाती है
latest post केदारनाथ में प्रलय (२)
जब भी फुर्सत हो तुमे, बुला लो इनको
ReplyDeleteये बिन कुछ पूछे ,बस दौड़ी चली आती हैं ..
यादें यादें यादें ... सह कहा है हमेशा साथ देती हैं ... बुलाने पे ही आती हैं ... हमसफ़र रहती हैं ताउम्र ...
आशा है आप ठीक होंगे ... नमस्कार ...
भीगी पलकें
ReplyDeleteसँग यादें तुम्हारी
तन्हा मॅ कहाँ....??
उम्दा रचना ..नमन
बहुत बढ़िया। यादें भी सहारा देती हैं।
ReplyDeleteयादें तब आतीं हैं जब
ReplyDeleteहमें इनकी जरूरत होती है ।
और कितना मन बहलाती हैं
ये यादें ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य यह है कि उसकी स्मृति साथ है। जानवरों का यह सौभाग्य नहीं। वे मनुष्य भी जानवर की तरह ही हैं जो हमेशा वर्तमान में जीते हैं कभी फ्लैशबैक नहीं करते। आपकी सुंदर स्मृतियाँ कविता के रूप में ऐसी ही सजती रहें, यही ईश्वर से कामना है।
ReplyDeleteचिर परिचिता... चिर संगिनी... यादें!!!
ReplyDeleteयादों की वफ़ा जिन्दगी को नसीब न हुई होती तो
ReplyDeleteजिन्दगी के जाने कितने ही सुनहरे पल
हम दुबारा जी न पाते ... न महसूस कर पाते इतने दिल से
बहुत कोमल, बहुत खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना, बहुत सुंदर
ReplyDeleteइक चक्कर लगाने का मन है
ReplyDeleteअपने बीते सुहाने दिनों का
आज फिर उदास है दिल अपना
चलो ज़रा यादों को बुला लेता हूँ .....
....यादें ही तो ज़िंदगी का सहारा हैं...बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...
ये जीवन है ...
ReplyDeleteआभार भाई जी !
यादों का आनंद ही कुछ और है। मैने तो एक ब्लॉग ही बना डाला..आनंद की यादें।
ReplyDeleteमैने भी...
ReplyDeleteWaah,.,. padhkar maja aa gaya
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