अब मर्ज़ी नही हमारी ...
सुना करते थे, जीवन में
इक दौर ऐसा, भी आता है
अकेले, पड़े रहोगे कोने में
झाँकने न कोई आता है...
अब इंतज़ार रहता है हरदम
घर में किसी के आने का ,
भूले-भटके ही सही...
किसी के द्वारा हाल
पूछे जाने का..
जब दिल में दर्द होता है
तो इक टीस सी उठती है
चीख तो निकलती नही
बस सांस सी घुटती है...
आज सोच मेरी आँखों में
आ जाती है नमी,
किसी को अब महसूस
होती नही मेरी कमी...
माँ कहतें हैं जिसे काश!
कि वो मेरी भी होती,
मैं भी गिरता आज बन
किसी आँख का मोती...
न रहे अब वो यार
न किसी से यारी है
कुछ को खा गया वक्त
कुछ को खाने की तैयारी है...
दिल के दर्द को.... जाने कौन
जिसने सहा.... बाकि सब मौन!!!
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अशोक'अकेला' |
बेहद मर्मस्पर्शी......
ReplyDeleteअपना ख़याल रखें.
सादर
अनु
बहुत ही उदासी लिए ... मन के गहरे विषाद को लिखा है ...
ReplyDeleteआशा है आपका स्वस्थ ठीक होगा ... जीवन में कई दौर आते हैं और चले भी जाते हैं ... मन खुद ही अपने आप को सम्भाल लेता है ...
बढ़िया प्रस्तुति- -
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
सच ही अब मर्ज़ी हमारी नहीं ... बस चलने की तैयारी है .... बेहद भावपूर्ण रचना .. भाई जी नमस्कार
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी ख्याल.....
ReplyDeleteभैया .... क्या कहें .... दिल भर आया ...
ReplyDeleteजिस दौर में अपनों की ज़रुरत सबसे ज्य़ादा
होती है उसी दौर में क्यों सब अकेले रह जाते हैं .. :(
कृपया आप अपना ध्यान रक्खें !
खुश रहिये..स्वस्थ रहिये ...
~सादर
जीवन सन्ध्या में अकेलापन... एक मर्मस्पर्शी रचना!!
ReplyDeleteमेरे एहसासों में शामिल होने के लिए दिल से आभार .,.
Deleteअकेलापन का दुःख सबको क़भी न कबी झेलना पड़ता है ...दिल को छू गया !
ReplyDeleteNew post चुनाव चक्रम !
New post शब्द और ईश्वर !!!
अकेलेपन का दर्द और जिंदगी कि हकीकत को बयां करती बेहद मर्मस्पर्शी रचना.....
ReplyDeleteआपके स्नेह का आभारी हूँ ,.
ReplyDeleteशास्त्री जी आपके स्नेह का आभार .
ReplyDeleteआप सब का मेरे अहसासों को जुबाँ देने के लिए दिल से आभार .
ReplyDeleteखुश रहें ..सलामत रहें ,स्वस्थ रहें ...
सहना मन को, और अपने को।
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी सुंदर रचना।।
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी रचना....अकेलेपन की व्यथा अपने-आप में कसक भरी होती है.... वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है... वक्त से दिन और रात, वक्त से कल और आज...वक्त की हर शय गुलाम, वक्त का हर शय पे राज
ReplyDeleteन रहे अब वो यार
ReplyDeleteन किसी से यारी है
कुछ को खा गया वक्त
कुछ को खाने की तैयारी है
जीवन अनुभव का विचारणीय तथ्य कविता का आश्रय पाकर और अधिक प्रभावी हो गया है।
बेहद मर्मस्पर्शी.... सुंदर रचना।।
ReplyDeleteअकेले पैन का संत्रास अब हर उम्र की सौगात है उम्रदराज़ लोगों का तो क्या कहिये।
ReplyDeleteदिल के दर्द को.... जाने कौन
ReplyDeleteजिसने सहा.... बाकि सब मौन!!!
कोमल भावों में पगी मर्मस्पर्शी रचना....
यथार्थ :
ReplyDeleteसमय करे नर क्या करे ,समय समय की बात
किसी समय के दिन बड़े किसी समय की रात।
सुन्दर कही है अशोकजी ने बात
संगीत माधुरी !
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