Sunday, February 23, 2014

अब मर्ज़ी नही हमारी ... है अब.. वक्त की बारी !!!

अब मर्ज़ी नही हमारी ...
      है अब.. वक्त की बारी !!!
सुना करते थे, जीवन में
 इक दौर ऐसा, भी आता है
 अकेले, पड़े रहोगे कोने में
 झाँकने न कोई आता है...

अब इंतज़ार रहता है हरदम
 घर में किसी के आने का ,
 भूले-भटके ही सही...
 किसी के द्वारा हाल पूछे जाने का..

 जब दिल में दर्द होता है
 तो इक टीस सी उठती है
 चीख तो निकलती नही
 बस सांस सी घुटती है...

 आज सोच मेरी आँखों में
 आ जाती है नमी,
 किसी को अब महसूस
 होती नही मेरी कमी...

 माँ कहतें हैं जिसे काश!
 कि वो मेरी भी होती, 
 मैं भी गिरता आज बन
 किसी आँख का मोती...

 न रहे अब वो यार
 न किसी से यारी है
 कुछ को खा गया वक्त
 कुछ को खाने की तैयारी है...

 दिल के दर्द को.... जाने कौन 
 जिसने सहा.... बाकि सब मौन!!!

अशोक'अकेला'





22 comments:

  1. बेहद मर्मस्पर्शी......
    अपना ख़याल रखें.

    सादर
    अनु

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  2. बहुत ही उदासी लिए ... मन के गहरे विषाद को लिखा है ...
    आशा है आपका स्वस्थ ठीक होगा ... जीवन में कई दौर आते हैं और चले भी जाते हैं ... मन खुद ही अपने आप को सम्भाल लेता है ...

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  3. बढ़िया प्रस्तुति- -
    आभार आदरणीय-

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  4. सच ही अब मर्ज़ी हमारी नहीं ... बस चलने की तैयारी है .... बेहद भावपूर्ण रचना .. भाई जी नमस्कार

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  5. भैया .... क्या कहें .... दिल भर आया ...
    जिस दौर में अपनों की ज़रुरत सबसे ज्य़ादा
    होती है उसी दौर में क्यों सब अकेले रह जाते हैं .. :(

    कृपया आप अपना ध्यान रक्खें !
    खुश रहिये..स्वस्थ रहिये ...

    ~सादर

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  6. जीवन सन्ध्या में अकेलापन... एक मर्मस्पर्शी रचना!!

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    Replies
    1. मेरे एहसासों में शामिल होने के लिए दिल से आभार .,.

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  7. अकेलापन का दुःख सबको क़भी न कबी झेलना पड़ता है ...दिल को छू गया !
    New post चुनाव चक्रम !
    New post शब्द और ईश्वर !!!

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  8. अकेलेपन का दर्द और जिंदगी कि हकीकत को बयां करती बेहद मर्मस्पर्शी रचना.....

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  9. आपके स्नेह का आभारी हूँ ,.

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  10. शास्त्री जी आपके स्नेह का आभार .

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  11. आप सब का मेरे अहसासों को जुबाँ देने के लिए दिल से आभार .
    खुश रहें ..सलामत रहें ,स्वस्थ रहें ...

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  12. मर्मस्पर्शी सुंदर रचना।।

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  13. बेहद मर्मस्पर्शी रचना....अकेलेपन की व्यथा अपने-आप में कसक भरी होती है.... वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है... वक्त से दिन और रात, वक्त से कल और आज...वक्त की हर शय गुलाम, वक्त का हर शय पे राज

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  14. न रहे अब वो यार
    न किसी से यारी है
    कुछ को खा गया वक्त
    कुछ को खाने की तैयारी है

    जीवन अनुभव का विचारणीय तथ्य कविता का आश्रय पाकर और अधिक प्रभावी हो गया है।

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  15. बेहद मर्मस्पर्शी.... सुंदर रचना।।

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  16. अकेले पैन का संत्रास अब हर उम्र की सौगात है उम्रदराज़ लोगों का तो क्या कहिये।

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  17. दिल के दर्द को.... जाने कौन
    जिसने सहा.... बाकि सब मौन!!!

    कोमल भावों में पगी मर्मस्पर्शी रचना....

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  18. यथार्थ :

    समय करे नर क्या करे ,समय समय की बात

    किसी समय के दिन बड़े किसी समय की रात।

    सुन्दर कही है अशोकजी ने बात

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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