क्या आप मेरी इस बात से सहमत हैं .....अपना किया
बुरा कर्म आप सब से छुपा सकते हैं ...झूठ बोल कर ,वर्गालाकर
धोखा दे कर, खुद को चालाक समझ कर दुसरे को बेवकूफ समझ कर
वगेरा...वगेरा ...
पर क्या अपने आप से, अपने दिल से या अपने में बसी अपनी आत्मा से
भी छुपा सकते हैं???....नही न ..
तो फिर क्यों अपनी बुराई न देख, दूसरों की बुराई पर नज़र जाती है...
शायद वो उनकी अपनी नज़र में उनकी अच्छाई हो...