"मील का पत्थर"
मैं रास्ते में पड़ा पत्थर हूँ
निगाहों में आपकी बद्त्तर हूँ
न देख मुझको,तू नफ़रत से
देखता हूँ, सब को, इस हसरत से
न मार मुझको ठोकर तू
हो न जाये कहीं चोटल तू
प्यार से मुझको उठा तू
किनारे पे रख,के जा तू
खुद को ठोकर से बचा तू
दूसरों के लिये रास्ता बना तू
खुद भी बच,और मुझको बचा तू
दिल का सुकून भी पायेगा तू
जो गै़र की ठोकर से
मुझ को बचायेगा तू
फिर मैं भी "मील का
पत्थर" बन जाऊंगा
सब के लिये निशानी
बन के काम आऊंगा
किसी भटके मुसाफिर को
आपकी यादों के इस रचना संसार में कई मील के पत्थर हैं!
ReplyDeleteसुन्दर कविता!
दुनिया वाले मन से जानते है कि इस मील के पत्थर के बिना हम जैसे घुमक्कड कितने परेशान हो जाते है।
ReplyDeleteजो गै़र की ठोकर से
ReplyDeleteमुझ को बचायेगा तू
फिर मैं भी "मील का
पत्थर" बन जाऊंगा
सब के लिये निशानी
बन के काम आऊंगा
किसी भटके मुसाफिर को
मंजिल का पता बताऊंगा ||
yahi to samajhna hai....
न मार मुझको ठोकर तू
ReplyDeleteहो न जाये कहीं चोटल तू
प्यार से मुझको उठा तू
किनारे पे रख,के जा तू
सुंदर सन्देश ..... स्वयं भी बचो और औरों को भी बचाओ ...
आपके मन से निकली कविता ने मुझे बहुत भाव विभोर कर दिया. क्षमा याचना सहित अपने मन के भावों को सादर समर्पित कर रहा हूँ :-
ReplyDeleteवो हीरा लाल-जवाहर है
खुद को कहता वो पत्थर है
सब देख रहे हैं हसरत से
उसको पाने की चाहत से.
अंधा ही ठोकर मारेगा
और खुद चोटिल हो जाएगा
जो दिल से इसे लगाएगा
दिल का अमीर हो जाएगा.
खुद अपना जीवन सफल करे
सबकी बाधाएं विफल करे.
क्रमश:....
चल आगे बढ़ और गले लगा
ReplyDeleteदिल का सकून तू पाएगा
जब तक यह पत्थर पास तेरे
तू खुद भी पूजा जाएगा.
एक पत्थर लाल-जवाहर है
एक पत्थर मील का पत्थर है
पर हमने जिसको पूजा है
वह मन-मंदिर का ईशवर है.
राह की लम्बाई कितनी, और यह समझाऊँगा।
ReplyDeleteन देख मुझे को,तू नफ़रत से
ReplyDeleteदेखता हूँ, सब को, इस हसरत से .अच्छी रचना मनोहर पथप्रदर्शक रचना .अशोक भाई कृपया पहली पंक्ति में "मुझे को ",कृपया मुझको करलें .धन्यवाद सिफारिश मानने के लिए .
वाह वाह , कवि अशोक जी ।
ReplyDeleteकविता के माध्यम से सुन्दर विचार व्यक्त किये हैं ।
सचमुच मील का पत्थर....
ReplyDeleteसुन्दर रचना सर...
सादर बधाई...
खुद को ठोकर से बचा तू
ReplyDeleteदूसरों के लिये रास्ता बना तू
खुद भी बच,और मुझको बचा तू
दिल का सुकून भी पायेगा तू
जो गै़र की ठोकर से
मुझ को बचायेगा तू ...
सटीक एवं सार्थक पंक्तियाँ! सुन्दर सन्देश देती हुई शानदार रचना लिखा है आपने!
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-715:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
मैं रास्ते में पड़ा पत्थर हूँ
ReplyDeleteनिगाहों में आपकी बद्त्तर हूँ
न देख मुझको,तू नफ़रत से
देखता हूँ, सब को, इस हसरत से....बेहतरीन रचना प्रस्तुती.....
बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .ब्लॉग दर्शन के लिए शुक्रिया अशोक भाई .सलामत रहो .सेहतमंद रहो .
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteTruelly awesome... ek fool ki abhilasha to sabne padhi hogi.. aapne patthar ko bhi zubaan de di.. uski abhilasha ko murta rup de k.. :)
ReplyDeleteyour poems are truly a masterpiece....
ReplyDeletenice
wow !...Lovely creation !...Regards,
ReplyDeletebhaut hi khubsurat rachna.....
ReplyDeleteफिर मैं भी "मील का
ReplyDeleteपत्थर" बन जाऊंगा
सब के लिये निशानी
बन के काम आऊंगा
किसी भटके मुसाफिर को
मंजिल का पता बताऊंगा ||
बहुत सुन्दर भाव
bahut sundar sandesh deti hui rachna.
ReplyDeleteवाह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
फिर मैं भी "मील का
ReplyDeleteपत्थर" बन जाऊंगा
सब के लिये निशानी
बन के काम आऊंगा
किसी भटके मुसाफिर को
मंजिल का पता बताऊंगा ||
...sach sabka apna-apna koi n koi mahtva jarur hai, aur prakriti ki to baat ni nirali hai.. kitna kuch samjhati/batati hai hamen..
..meel ke pathar ko lekar sarthak rachna padhna bahut achhla laga...
aapki rachna sach me meel ka pathar hai......
ReplyDeletesir ek vinamra prarthana hai, ek baar hamari blog pe tashreef lana!
ReplyDeleteएक पत्थर का आत्म मंथन ...आपके शब्दों में पढ़ कर अच्छा लगा ....सार्थक कविता ....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आने का और एक सही टिपण्णी देने का धन्यवाद जी
वाह...बेजोड़ भावाभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
किसी भटके मुसाफिर को
ReplyDeleteमंजिल का पता बताऊंगा |
और अपना जीवन सार्थक कर जाऊँगा………शानदार प्रस्तुति।
रचना अच्छी लगी ।
ReplyDeleteफिर मैं भी "मील का
ReplyDeleteपत्थर" बन जाऊंगा
सब के लिये निशानी
बन के काम आऊंगा
...बहुत खूब! सुंदर प्रस्तुति..
बहुत सुन्दर रचना...वाह!
ReplyDeleteकिसी भटके मुसाफिर को
ReplyDeleteमंजिल का पता बताऊंगा'
Very nice!
आपकी इस रचना की सुन्दरता उसके शीर्षक में ही अभिव्यक्त हो गयी थी,और जैसे ही इस रचना को पढ़ा यकीन हो गया!!!!!
ReplyDeleteबहुत ही उत्कृष्ट रचना:)
-आपकी नेहा बेटा:)
न मार मुझको ठोकर तू
ReplyDeleteहो न जाये कहीं चोटल तू
प्यार से मुझको उठा तू
किनारे पे रख,के जा तू
बहुत सुन्दर उदगार ..काश ये भावना हम सब में भर जाए ..
तो आनन्द और आये
भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
मील का पत्थर तो हैं ही आप और आप जैसे लोग.
ReplyDeleteजीवन मे प्रकाश स्तंभ बनकर आते हैं.कितना कुछ नही पा सकता है कोई आप लोगों के अनुभवों से.किसी को ठोकर लगे ऐसे पत्थर नही हैं आप.
'खुद को ठोकर से बचा तू
दूसरों के लिये रास्ता बना तू
खुद भी बच,और मुझको बचा तू
दिल का सुकून भी पायेगा तू
जो गै़र की ठोकर से
मुझ को बचायेगा तू ' ऐसी कामनाएं,आशाये दूसरों से ईश्वर का एक नेक बंदा ही कर सकता है. जानते हैं रास्ते पर पड़े पत्थर पर जब सिन्दूर लगा दिया जाता है तो वो भगवान के बराबर पूजनीय हो जाता है फिर कोई उसे पाँव तक लगाने की नही सोचता.आप जैसे लोगों पर तो जीवन के अनुभवों का सिन्दूर यूँ भी खूब होता है फिर कैसे कोई ठोकर लगाने की सोच भी सकता है.वीरे!लोग पराये या अपने इसे अनदेखा कर दे पर आप लोगों के ग्रेस की कद्र न कर पाना उनका अपना दुर्भाग्य है.जाने क्यों एक पीड़ा दिखती है मुझी आपकी इस कविता मे जो नई पीढ़ी द्वारा पुरानी पीढ़ी की उपेक्षा,अकेलेपन के दर्द को दर्शाती है.इस स्टेज से हर बंदे को गुजरना है वो यह सच भूल जाता है.भीतर तक हिला देती है आपकी यह कविता.
बोलीवुड का मील का पत्थर चला गया अंतिम संकार भी लन्दन में .नमन इस कार्यशील उद्यमी की अहिर्निश लगन को रचनात्मक अगन (आंच )को .
ReplyDelete.
ReplyDeleteआदरणीय चाचा बाबू अशोक जी
सादर प्रणाम !
रास्ते के पत्थर से कुछ भावनाप्रधान लोग ही रिश्ता मानते हैं
मैं भी "मील का
पत्थर" बन जाऊंगा
सब के लिये निशानी
बन के काम आऊंगा
किसी भटके मुसाफिर को
मंजिल का पता बताऊंगा
…आप जैसे संवेदनशील इंसान सबकी पीड़ा में सहभागिता निभाते हैं …
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
फिर मैं भी "मील का
ReplyDeleteपत्थर" बन जाऊंगा
सब के लिये निशानी
बन के काम आऊंगा
किसी भटके मुसाफिर को
मंजिल का पता बताऊंगा ||
बेजोड प्रस्तुति. आभार.
जो जीवन मील का पत्थर बन सके वो सार्थक है ...
ReplyDeleteहर किसी के बस में नहीं होता ये ....
bahut acha hai ekdam mast :)
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