किस ने तोड़ा दिल हमारा ,ये कहानी फिर सही ......
यादें .... जब सर्दी का मौसम दरवाज़े पे दस्तक देता है,
सर्द हवाएँ चलने का अंदेशा जगाता है,तब एक बार फिर
कुछ भूली-बिसरी यादें ...ताज़ा होने को बेताब हो जाती है !
दिलो-दीमाग पर अपनी छाप छोड़ने को ...
और फिर, जब लफ्ज़ो का सहारा नही मिलता ,ज़ुबां गुंगी हो जाती है !
तब किसी और की जुबां ओर लफ्जों का सहारा लेना पड़ता है |
....चलिए ये कहानी फिर सही |
आज ज़नाब गुलाम अली साहब को सुनते हैं ...उनकी मीठी
आवाज़ में ..हम सब की शिकायत ...उनके दिलकश और प्यारे
अंदाज़ में ....पेशे खिदमत है ये गज़ल ! मेरी पसंद यकीनन
आप सब की भी ....होगी ???
शायर :मसरूर अनवर साहब:-
दिल की चोटों ने कभी, चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा ,मैंने तुझे याद किया
इसका रोना नही, क्यों तुमने किया दिल बर्बाद
इसका ग़म है, कि बहुत देर में बर्बाद किया |
यादें .... जब सर्दी का मौसम दरवाज़े पे दस्तक देता है,
सर्द हवाएँ चलने का अंदेशा जगाता है,तब एक बार फिर
कुछ भूली-बिसरी यादें ...ताज़ा होने को बेताब हो जाती है !
दिलो-दीमाग पर अपनी छाप छोड़ने को ...
और फिर, जब लफ्ज़ो का सहारा नही मिलता ,ज़ुबां गुंगी हो जाती है !
तब किसी और की जुबां ओर लफ्जों का सहारा लेना पड़ता है |
....चलिए ये कहानी फिर सही |
आज ज़नाब गुलाम अली साहब को सुनते हैं ...उनकी मीठी
आवाज़ में ..हम सब की शिकायत ...उनके दिलकश और प्यारे
अंदाज़ में ....पेशे खिदमत है ये गज़ल ! मेरी पसंद यकीनन
आप सब की भी ....होगी ???
शायर :मसरूर अनवर साहब:-
दिल की चोटों ने कभी, चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा ,मैंने तुझे याद किया
इसका रोना नही, क्यों तुमने किया दिल बर्बाद
इसका ग़म है, कि बहुत देर में बर्बाद किया |
मैं नाचीज़,ज़नाब गुलाम अली साहब के रूबरू |
उम्दा प्रस्तुति , पहली बार सुनी ! वैसे पुराने चित्र संजोये रखने का ये फायदा तो है सलूजा साहब ! आजकल तो डिगिटल के इस दौर में अल्बम बनाना हम लोग भूल ही गए है !
ReplyDeleteडिगिटल=Digital
ReplyDeleteवाह आनंद आ गया सुनकर...
ReplyDeleteसादर आभार/बधाई सर...
बहुत उम्दा... आनंद आ गया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यादें । एक बार हमने भी उनका प्रोग्राम देखा सुना था ।
ReplyDeletewaah maza aa gaya
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत उत्तम प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत अच्छी गजल । गुलाम अली की हर गजल उम्दा है ये बहुत अच्छी लगी ।
ReplyDeleteपसंदीदा गज़ल सुनाने के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ......
ReplyDeleteआपकी यादें सभी के लिए संग्रहणीय हैं!
ReplyDeleteबेहद सुन्दर हैं आपकी यादों का संसार!
सादर!
अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteअपनी जवानी के दिन याद आ गए जब इस ग़ज़ल को खूब गुनगुनाया करते थे..
ReplyDeleteनीरज
नीरज गोस्वामी neeraj1950@gmail.com via blogger.bounces.google.com
ReplyDelete4:18 PM (2 hours ago)
to me
नीरज गोस्वामी has left a new comment on your post "हम को किस के ग़म ने मारा ...ये कहानी फिर सही !!!":
अपनी जवानी के दिन याद आ गए जब इस ग़ज़ल को खूब गुनगुनाया करते थे..
नीरज
Posted by नीरज गोस्वामी to यादें... at Friday, November 25, 2011 4:48:00 PM
चीज़ों के प्रति टालू रवैया भी कुम्भ्करनी प्रवृत्ति ही है भाई साहब .आजकल लोग न गन्ना चूसतें हैं न साबुत गाज़र मूली ,गोभी कच्चा खाते हैं मुक्तावली क्या करे .फल भी पैस्ती -साइड की मार से बचने के लिए छील के खाते हैं .
ReplyDeleteहम को किस के गम ने मारा ये कहानी फिर सही ....अशोक भाई हमें टिपण्णी डिलीट करना ही नहीं आता .हमने डिलीट नहीं की .कई मर्तबा प्रकाशित ही नहीं हो पाती है और हम मुगालते में भी रह जातें हैं ,आपको देख बतियाके अच्छा लगा .ब्लॉग पे आके भी अच्छा लगा .आदाब .
४सी ,अनुराधा ,नेवल ऑफिसर्स फेमिली रेज़िदेंशियल एरिया (NOFRA),कोलाबा ,मुंबई -४००-००५ .
नाम आयेगा तुम्हारा ,
ReplyDeleteये कहानी फिर सही ....
वाह भाई जान ,, बहुत खूब
पुरानी यादें ताज़ा हो उठीं !
daanish dkmuflis@gmail.com via blogger.bounces.google.com
ReplyDelete4:54 PM (1 hour ago)
to me
daanish has left a new comment on your post "हम को किस के ग़म ने मारा ...ये कहानी फिर सही !!!":
नाम आयेगा तुम्हारा ,
ये कहानी फिर सही ....
वाह भाई जान ,, बहुत खूब
पुरानी यादें ताज़ा हो उठीं !
Posted by daanish to यादें... at Tuesday, November 29, 2011 5:24:00 PM
हमको किस के गम ने मारा ... वाह अशोक जी ... कितनी ही पुरानी यादों की गाँठ खोल दी आपने ...
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