बस!वो मेरे माथे की, लकीरों को पढता था ||
यादें ...वो ...जिनके साथ मैं चलता हूँ ....
मैं और मेरा दोस्त |
मैं और मेरा दोस्त |
पुराने जख्मों से आज, फिर टीस निकल आई है
अतीत झाड-पोंछ कर,मुझे फिर तेरी याद आई है |
याद आ गया ,मिल के रूठना और मनाना वो
बड़ी निकली रे जालिम ,तेरी यह जुदाई है |
छोड़ के चल दिया ,साथ मेरा;अंजाने रास्तों पे
तोड़ के अपने, वादे निकला;तू बड़ा हरजाई है |
करता रहा उम्मीद, तुझसे मैं;भरपूर वफा की
क्या कसूर?करी जो तुने;मुझसे ऐसी बेवफाई है |
जब भी उदास होता हूँ ,बस तुझे ही याद करता हूँ
याद करके तुझे ,आज फिर मेरी आँख भर आई है |
मिसाल थी हमारी दोस्ती की, उन सबके वास्ते
छोड़ मुझे "अकेला" करी दोस्ती की जग-हँसाई है |
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खूबसूरत एहसास....
ReplyDeleteउम्दा गज़ल सर,
सादर...
यार चाचू, बहुत मार्मिक और हृदयस्पर्शी यादें हैं आपकी.
ReplyDeleteदिल में गम और आँखें नम कर देतीं होंगीं.
आपकी गजल में आपके आंसुओं की झलक दिख रही है मुझे.
सुन्दर मार्मिक प्रस्तुति के लिए आभार.
पुराने जख्मों से आज, फिर टीस निकल आई है
ReplyDeleteअतीत झाड-पोंछ कर,मुझे फिर तेरी याद आई है |
bahut hi badhiyaa
साथ बिताये लम्हे याद आते हैं, स्मृतियाँ...
ReplyDeleteजुदाई तो सचमुच बड़ी कष्टदायक होती है .
ReplyDeleteलेकिन पहले वो , फिर आप आगे निकल गए . :)
मांफ कीजियेगा , ग़म की घड़ी में भी विनोद कर रहा हूँ .
क्या कहूँ अब... मन द्रवित हो गया. किसी अपने के बिछुड़ने का दर्द बहुत कष्ट करी होता है
ReplyDeleteपुरानी गालियाँ ... बीती बातें ... कुज्रे हुवे किस्से और कुछ पुराने दोस्त .... कभी नहीं भूलते ... बेहतरीन गज़ल लिखी है ...
ReplyDeleteSo touching! Congrats on writing such a nice post.
ReplyDeleteयाद आ गया ,मिल के रूठना और मनाना वो
ReplyDeleteबड़ी निकली रे जालिम ,तेरी यह जुदाई है |
पर स्मृतियाँ कहाँ छूटती हैं ..
@ डॉ.टी.एस. दराल जी .
ReplyDeleteआप जैसे डॉ.मिलना तो एक मरीज की खुशनसीबी है ....|
आधी बीमारी तो आप की जिन्दा-दिली ही दूर कर देगी ,हा हा हा ..
बस ऐसे ही खुश रहिए और खुश रखिए|
आभार !
अपने दोस्त के यादगार चित्रों के साथ सुंदर रचना...भाव भीनी सुंदर पोस्ट,....
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट में आपका स्वागत है...
khubsurat prastuti ke liye badhai
ReplyDelete.
ReplyDeleteइस पोस्ट को कभी पढ़ कर गया था
मन भारी हो गया था ,
ज़्यादा आज भी नहीं कह पाऊंगा …
प्रणाम है आपको …………………
आपके मित्र को विनम्र श्रद्धांजलि !
शुक्रिया राजेन्द्र जी ,आप की संवेदनाओं के लिए !
ReplyDeleteये मुझे इ-मेल से प्राप्त हुई ,जो पोस्ट पे दिखाई नही दे रही थी ..
न जाने क्यों ??
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार via blogger.bounces.google.com
1:24 PM (21 minutes ago)
to me
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार has left a new comment on your post "हाथों की लकीरों पे, एतबार न मैं करता था...":
.
इस पोस्ट को कभी पढ़ कर गया था
मन भारी हो गया था ,
ज़्यादा आज भी नहीं कह पाऊंगा …
प्रणाम है आपको …………………
आपके मित्र को विनम्र श्रद्धांजलि !
Posted by Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार to यादें... at Tuesday, December 06, 2011 1:54:00 PM
.
ReplyDeleteइस पोस्ट को कभी पढ़ कर गया था
मन भारी हो गया था ,
ज़्यादा आज भी नहीं कह पाऊंगा …
प्रणाम है आपको …………………
आपके मित्र को विनम्र श्रद्धांजलि !
खूबसूरत एहसास
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