यादें.....!!!
जैसे चिराग बुझा हो अभी अभी"॥
क्यों याद आता है ,वो गुज़रा ज़माना
जो नामुमकिन है,लौट के वापस आना |
वो ठंडी रातों की, हसीं मुलाकातें
वो दबे पांव तेरा, छत पे आना |
वो कंपकपाती सर्दी ,थरथराते होंट
कनखियों से देख,हौले से मुस्कुराना |
वो हाथों से मेरे, तेरी ओढ़नी का खींचना
तेरा झटके से मेरी, बाँहों में आ के समाना |
वो एकटक मेरा, तेरी आँखों में देखना
तेरा शर्म से अपनी, उठी पलकें झुकाना |
वो रौशनी का दिखना, सीड़ियों पे आहट
सुन! आ जाता आवाज़ तेरी में हकलाना |
वो हल्के में फिसलना, मेरी बाँहों से तेरा
फिर फुर्ती से सीड़ियों में, भाग के जाना |
वो तेरे जाने के बाद, लगे अधूरी मुलाकात
याद आ गई बातें, जो रह गई तुझे सुनाना |
वो भूल गया सब, अब! जब रह गया "अकेला"
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Wednesday, December 21, 2011
जब हम जवां थे .....तब रोमांस में भी रोमांच था..... !!!
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हमको अब तक आशिकी का वो ज़माना याद है...
ReplyDeleteवक्त करवट ले रहा है,
ReplyDeleteआँख भी अपनी खुली है,
कल भी उतनी मधुरिमा थी,
आज बन स्मृति खिली है।
जीवन के खास दौर की यादें .... समय के साथ बहुत कुछ बदला है....
ReplyDeleteवाह वाह सलूजा ही ।
ReplyDeleteज़वानी की यादें तो कातिलाना होती ही हैं ।
आपकी ग़ज़ल भी कम कातिल नहीं ।
बहुत सुन्दर लिखा है । बधाई ।
बहुत ख़ूबसूरत याद , सलूजा साहब !
ReplyDeleteपतंग अपनी मुहब्बत की बुलंदी पर कटी लेकिन,
मेरे हाथों से राना प्यार की तानी नही जाती !
उम्रभर के लिए जब हमसफ़र बनाया था तुझे मैंने,
तो जीवन से मेरे फिर क्यूं यह वीरानी नहीं जाती !!
आज का प्यार .....सुबह से शाम तक
ReplyDeleteफागुन से सम्बंधित रचना ' वटवृक्ष' के लिए भेजें - कहानी, कविता , ग़ज़ल , संस्मरण ..... एक सप्ताह के अन्दर
ReplyDeleteएक यात्रा सी करा दी।
ReplyDeletesundar bhavo ki behtarin abhivykti...
ReplyDeletejaise - jaise padhhati ja rahi hu ankho ke samne chitra sa ubharata ja raha hai..
क्या उम्दा रचना है सर....
ReplyDeleteसादर.
बहुत ही उम्मदा भावपूर्ण रचना॥ इस खूबसूरत गजल के बहाने आपने बहुतों कि यादें ताज़ा करा डालीं.... आभार...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_19.html
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
दिन जो पखेरू होते, पिंजरे में मैं रख लेता
ReplyDeleteपालता उनको जतन से, मोती के दाने देता
पलकों में रहता छुपाए.....
har sher bahut khoobsurat, badhai.
ReplyDeletebahut hee sahaj tareeke se prambhivyakti....rahi baat man bharne kee..abhi naa jaao chor ke ke dil abhi bhara nahi..yad aa gay..sadar badhayee aaur apne blog par amantran ke sath......
ReplyDeleteकितनी बार द्वार से लौटा छू कर बंद किवाड़ तुम्हारे ...........बहुत अच्छी रचना ...
ReplyDeleteआप सब के मान-सम्मान,स्नेह का बहुत-बहुत
ReplyDeleteअभिनन्दन और आभार !
आप सब स्वस्थ और खुश रहें !
शुभकामनाएँ!
लगता है पहली टिपण्णी स्पैम में चली गई ...
ReplyDeleteआपकी यादों का सफर बेमिसाल यादें जोड़ जाता है पटल पे ..
यादें याद आती हैं
ReplyDeleteभई वाह! गज़ब
ReplyDeleteबस
कस्म गोया तेरी खायी न गयी
बहुत सुंदर सार्थक रचना ....बहुत खूब अशोक जी.
ReplyDeleteनई पोस्ट--"काव्यान्जलि"--"बेटी और पेड़"--में click करे.
वो भूल गया सब,अब! जब रह गया"अकेला"
ReplyDeleteवक्त ने ले ली करवट, अब न चले कोई बहाना
आप 'अकेला' कहें खुद को
पर अकेले कहाँ है.
जिगर और दिल में समेटे
अपने सारा ही जहाँ हैं.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार
यार चाचू.
आनेवाले नववर्ष की हार्दिक बधाई.
समय मिले तो फिर से आईयेगा मेरे ब्लॉग पर.
आपके आशीर्वचनों से मैं धन्य हो जाता हूँ.
वाह!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया! Behtareen....
www.poeticprakash.com
very good thoughts and expression
ReplyDeleteन जाने कितनी रातें
कितने दिन बचे हैं ?
ना जाने कितने लोग
कितनी मुलाकातें
कितनी हंसी बची है ?
ना जाने कितना रोना ,
कितना हंसना
कितना सहना बचा है ?
कब बंद हो जायेंगी आँखें
किस को पता है?
ना जाने कितने मौसम
बदलेंगे
कितने फूल खिलेंगे ?
कब उजड़ेगा बागीचा
किस को पता है ?
ना जाने कितनी सौगातें
मिलेंगी ?
बह्लायेंगी या रुलायेंगी
किस को पता है ?
जब तक जी रहा
क्यों फ़िक्र करता निरंतर
ना तो परवाह कर
ना तूँ सोच इतना
जब जो होना है हो
जाएगा
जो मिलना है मिल
जाएगा
तूँ तो हँस कर जी
जीवन को
जो भी मिले
गले लग कर मिल
उससे
गुज़ारा ज़माना याद है ..बहुत खूबसूरत यादें
ReplyDeleteरूमानी यादें ...
ReplyDeleteबहुत खूब
बहुत ही खुबसूरत यादे जिन्हें शब्दों में पिरो दिया है... अपने.....
ReplyDeleteमधुरिम यादों का अनवरत सिलसिला ..बहुत ही सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति ....स्मृतियों की सुगंध ....
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