मुहँ की बात सुने हर कोई
दिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के शहरों में
ख़ामोशी पहचाने कौन....
---निदा फ़ाज़ली
यादें ......
अपनी यादों की पोटली से निकाल कर लाया हूँ ....
आप के लिए एक गज़ल...
जो अपने खुबसूरत अल्फाज़ों से सजाई है,
ज़नाब मीर ताक़ी मीर ने और गाया है अपनी दर्द भरी
मीठी आवाज़ में ज़नाब मरहूम परवेज़ मेहदी साहब ने ......
इस गज़ल में ख़ामोशी के आवाज़े हैं ....
दिल के दर्द का सुकून है ...
आँखों में अश्को की छुपी बरसात है ...
दिल के किसी कोने में छुपी यादों की बारात है ...
ग़म का बिछौना है ...
ग़र फिर भी सुकून से सोना है ....
तो ज़रूरी...चैन से रोना है ...
तो बस!!! उस रोने की ही बात है !!!
अपने साये से भी ,अश्को को छुपा कर रोना
जब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना
हाथ भी जाते हुए , वो तो मिला कर न गया
मैंने चाह जिसे ,सीने से लगा कर रोना
जब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना...
तेरे दीवाने का ,क्या हाल किया है ग़म ने
मुस्कराते हुए लोगो में भी जा कर रोना
जब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना...
लोग पढ़ लेते हैं ,चेहरे पे लिखी तहरीरे
कितना दुश्वार है लोगो से छुपा कर रोना
जब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना ...
अपने साये से भी ,अश्को को छुपा कर रोना
जब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना |
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उम्मीद करता हूँ कि मेरी पसंद ....
आप को भी पसंद आई होगी !!!
खुश रहें,स्वस्थ रहें !
जब भी रोना चिरागों को बुझा कर रोना ..... बहुत खूबसूरत गज़ल पेश की है .... सादर
ReplyDeleteलोग पढ़ लेते हैं ,चेहरे पे लिखी तहरीरे
ReplyDeleteकितना दुश्वार है लोगो से छुपा कर रोना
... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
पढ़वाने के लिए
आभार सहित सादर
बहुत खूबसूरत गज़ल है .पढ़वाने के लिए
ReplyDeleteआभार ... सादर
वाह...
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल अशोक जी.....
ReplyDeleteदिल को छु जाते हैं इसके अलफ़ाज़......
और ऊपर जो ग़ज़ल आपने लिखी है वो निदा फाजली साहब की लिखी हुई है.
सादर
अनु
अनु जी ...ऊपर वाले शे'र के शायर से रु-ब-रु करवाने के लिए
Deleteशुक्रिया आपका !
बहुत ही नायाब पसंद आपकी, आनंद आया. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत बेहतरीन सुंदर गजल साझा करने के लिए आभार ,,,अशोक जी,,
ReplyDeleteRECENT POST: मधुशाला,
अपने साये से भी ,अश्को को छुपा कर रोना
ReplyDeleteजब भी रोना हो ,चिरागों को बुझा कर रोना
वाह ! बहुत ही सुंदर मत्ला है ....
पर जिस दर्द से लिखी गई हैं ये पंक्तियाँ उस दर्द से गाईं नहीं गयीं ....
या फिर सुनने के समय उस दर्द के माहौल का होना भी जरूरी है शायद !!!!
Deleteबहुत सही कहा जी। कभी कभी जब मन उदास हो तो उदास ग़ज़लें ही मन को प्रसन्न करती हैं।
Deleteसच है..
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeletewaaaaaaaaah hot khub
ReplyDeletemuh ki bat.............ye aalfaz shayd bashir bdr ya nida fazli ke hai or shayd ise jagjit sih ne gaya hai
मुझे भी अभी पता चला है ....आप ठीक सोच रहे हैं ...ये निदा फाज़ली साहब की ग़ज़ल का शे'र है !
Deleteआभार आपका !
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(4-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
बहुत-बहुत शुक्रिया वन्दना जी !
Delete
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सलूजा साहेब !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
"मुहँ की बात सुने हर कोई
ReplyDeleteदिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के शहरों में
ख़ामोशी पहचाने कौन...."
सर यह जनाब निदा फ़ाज़ली साहब के शेर है !
पूरी ग़ज़ल आप यहाँ पढ़ सकते है ... http://www.kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%81%E0%A4%B9_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4_/_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A4%BE_%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B2%E0%A5%80
शिवम् मिश्रा जी ,
Deleteआप का बहुत-बहुत मैं शुक्रगुज़ार हूँ ...इस शे'र के शायर से रु-ब-रु करवाने के लिए ..और पूरी खुबसूरत गज़ल पढवाने के लिए !खुश रहें!
आज की ब्लॉग बुलेटिन तुम मानो न मानो ... सरबजीत शहीद हुआ है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजितनी उदास उतनी ही मिठास !
ReplyDeleteबहुत सही
ReplyDeleteबहुत बढ़िया शायरी है। आभार।
ReplyDeleteशानदार गज़ल..
ReplyDeleteहाथ भी जाते हुए , वो तो मिला कर न गया
ReplyDeleteमैंने चाह जिसे ,सीने से लगा कर रोना
वाह !!!!! खूबसूरत गज़ल, आपकी उम्दा पसंद के हम हमेशा ही कायल रहे हैं..
बहुत ही खूबसूरत गज़ल ... और उसकी अदायगी ...
ReplyDeleteआप नगीने छांट के लाते हैं ...
लोग पढ़ लेते हैं ,चेहरे पे लिखी तहरीरे
ReplyDeleteकितना दुश्वार है लोगो से छुपा कर रोना
...वाह! एक उम्दा दिल को छू जाती ग़ज़ल पढ़वाने के लिए आभार...
थमते थमते थमेंगे आंसू..,
ReplyDeleteये रोना है, कुछ हँसी नहीं है.....
----- ।। मीर ।। -----
تھمتے تھمتے تھمےگے آنسو ..،
یہ رونا ہے، کچھ ہنسی نہیں ہے .....
----- .. میر .. -----
bahut sunder sir, shayari ki duniya main ek ajeeb sa sukun hai, shayad jannat main bhi na ho.
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल सर....!
ReplyDeleteसोज़ में लिखे गीत...दिल के कितने क़रीब होते हैं....
~सादर!!!
अशोक भाई मुबारक टोरंटो प्रवास .ॐ शान्ति ....
ReplyDeleteअतिसुन्दर कोमल पदावली भाव राग आह्लादित करता हुआ ...
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