Tuesday, April 23, 2013

टूटे रिश्तों को...जोड़ लेता हूँ !!!


जिन्दगी के टूटे सिरों को 
मैं फिर से जोड़ लेता हूँ, 
ग़मों के बिछोने पर 
ख़ुशी की चादर ओड़ लेता हूँ... 
---अशोक 'अकेला'
टूटे रिश्तों को...जोड़ लेता हूँ !!!

 अपने हौंसलो से, होड़ लेता हू
 मिले महोब्बत, निचोड़ लेता हूँ

 दुनियां के झूठे, रीति-रिवाजो से
 मुस्करा , मुहँ को मोड़ लेता हूँ

 अपने ग़मों के, बिछोने पर
 ख़ुशी की चादर, ओड़ लेता हूँ

 उलझी जिन्दगी, की डोर को
 हाथ से ख़ुद, तोड़ लेता हूँ

 अब तो आदत, सी हो गई है
 टूटे रिश्तों को, जोड़ लेता हूँ

 ज़माने संग, चल सकता नही अब
 बस 'अकेला' सपनों में, दोड़ लेता हूँ...


अशोक'अकेला'


25 comments:

  1. दुनियां के झूठे, रीति-रिवाजो से
    मुस्करा , मुहँ को मोड़ लेता हूँ

    रास्ते तो खोजने ही होते हैं .... गहरी अभिव्यक्ति

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  2. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज मंगलवार (23-04-2013) के मंगलवारीय चर्चा --(1223)"धरा दिवस"
    (मयंक का कोना)
    पर भी होगी!
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
    सूचनार्थ...सादर!

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  3. जीवन जीने की राह दर्शाती हुई ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
    शुभकामनायें .

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  4. उलझी जिन्दगी, की डोर को
    हाथ से ख़ुद, तोड़ लेता हूँ
    अब तो आदत, सी हो गई है
    टूटे रिश्तों को, जोड़ लेता हूँ
    मन को छूते भाव .... बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  5. अनुभूति की बढ़िया प्रस्तुति !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को, अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post बे-शरम दरिंदें !
    latest post सजा कैसा हो ?

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  6. मन को छूते भाव ... सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  7. waaaaaaaaaaaaah, nhetrin gazal hai.......matlese - maqte tk byuti................

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  8. अब तो आदत, सी हो गई है
    टूटे रिश्तों को, जोड़ लेता हूँ ..

    बस एक यही आदत जिन्दा रखती है जीने के भाव को ... रिश्तों को जोड़ के रखना आसां नहीं होता ... लाजवाब ख्यालात मिला के गज़ल लिखी है ...
    आशा है आप ठीक होंगे ..

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  9. अपने ग़मों के, बिछोने पर
    ख़ुशी की चादर, ओड़ लेता हूँ

    वाह , बहुत खूब कहा है !

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  10. खूबसूरत ग़ज़ल ....वाह...

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  11. (1)
    टूटे रिश्तों को...जोड़ लेता हूँ !!!

    *जिन्दगी के टूटे सिरों को * *मैं फिर से जोड़ लेता हूँ, *
    *ग़मों के बिछोने पर * *ख़ुशी की चादर ओड़ लेता हूँ..
    क्या बात है भाई साहब ! ज़िन्दगी की परवाज़ परों से नहीं हौसलों से ही भरी जाती है .

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  12. *जिन्दगी के टूटे सिरों को * *मैं फिर से जोड़ लेता हूँ, *
    *ग़मों के बिछोने पर * *ख़ुशी की चादर ओड़ लेता हूँ.
    ......................................................बहुत सकारात्मक पंक्तियाँ और सुन्दर रचना शास्त्री जी ........

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  13. ज़माने संग ,चल सकता नही अब
    बस'अकेला' सपनों में,दोड़ लेता हूँ...

    वाह !!! क्या बात है,बहुत सुंदर गजल ,,,

    RECENT POST: गर्मी की छुट्टी जब आये,

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  14. आज की ब्लॉग बुलेटिन बिस्मिल का शेर - आजाद हिंद फौज - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  15. अपने ग़मों के, बिछोने पर
    ख़ुशी की चादर, ओड़ लेता हूँ------

    जीवन जीने का अपना यथार्थवादी अंदाज
    सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति

    आदरणीय आग्रह है की मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों

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  16. कोई बस इतना सिखला दे, कैसे मन के भाव समेटूँ..

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  17. वाह अनुपम भाव संयोजन सर, आपने तो ज़िंदगी सच लिख दिया।

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  18. बहुत खूब ...जिंदगी एक अनूठी सी पहेली ...जिसे सबको जीना ही है

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  19. बहुत सुंदर नज्म, प्रबल निराशा की स्थितियों में भी लगातार संघर्ष का भाव कविता में दिखता है, हर दिन विकृत होती जा रही दुनिया को समेटने का संघर्ष आपकी कविता करती है जो स्तुत्य है।

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  20. अपने ग़मों के, बिछोने पर
    ख़ुशी की चादर, ओड़ लेता हूँ

    ....यही एक रास्ता है जीने का...बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...

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  21. उम्र के अनुभवों से जुडे बडे ही प्रेरक अहसास...

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  22. अपने ग़मों के, बिछोने पर
    ख़ुशी की चादर, ओड़ लेता हूँ

    बाऊ जी नमस्ते !!
    हर हाल में खुश रहना ही ज़िन्दगी है

    नई पोस्ट
    तेरे मेरे प्यार का अपना आशियाना !!
    हो सके तो इस छोटी सी पंछी की उड़ान को आशीष दीजियेगा

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  23. कोई एक/दो पंक्तियाँ नहीं... पूरी की पूरी रचना ही...... दिल के छू गयी....
    ~सादर!!!

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  24. waaaaaaaaaaah ! tbhi kahti hun khjaane hai aap logon ke paas zindgi ke anubhvo ka ...... toote rishton ko jodna .......... aapke swabhav aur jeene ke andaz ko btaati hai.
    bahut pyari kavita !

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मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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