Monday, November 14, 2011

घने जंगल में ...सूखे कुँएं की टूटी मुंडेर ...




"कुँएं  की टूटी मुंडेर"


मैं घने जंगल में सूखे कुँएं  की
 टूटी हुई मुंडेर हूँ ...

प्यास बुझाने का वायदा तो..
 मैं करता नही पर रात की
 थकान मिटाने की मैं सवेर हूँ 
 अँधेरे में तो क्या ,दिन के उजाले में
 छन-छन के आती पेड़ों की रौशनी में
 सूखें पत्तों से भरा
 मैं एक घना ढेर हूँ ...

 कभी कोई भुला-भटका
 मुसाफिर आयेगा बैठेगा 
थोड़ी देर मुझ पर ...
प्यास तो नही थकान
 अपनी जरूर मिटायेगा|
 थोड़ी देर में चल देगा उठ कर
 न  देखेगा कभी पीछे मुड़  कर...

 न होगी हसरत फिर कभी इधर आने की
 सिर्फ जल्दी होगी उसे यहाँ से निकल जाने की

 ऐसे ही कटेगा वक्त मेरा
  फिर दिन भी ढ़ल जायेगा
  डर लगता नही अब अँधेरे से
 इंतज़ार में हूँ न जाने मुझे कब
 ये अँधेरा निगल जायेगा...

 मुझ सूखे कुँएं  की टूटी मुंडेर पर 
 न जाने कब कोई हाथ रख के  
  ठोकर खाने से सम्भल जायेगा ||


अशोक'अकेला'



19 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता,सुन्दर भाव !

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  2. वाह! बहुत सुन्दर रचना सर...
    सादर बधाई...

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  3. कुयें बने रहने का और पानी पिलाते रहने का भाव अनुपम है।

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  4. bahut umda bhaav yeh tooti munder salamat rahe logon ko aaram dene ke to kaam aa rahi hai koi mudke bhale hi na dekhe upar vala to dekhta hai.
    bahut achchi rachna.

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  5. कभी कोई भुला-भटका
    मुसाफिर आयेगा बैठेगा
    थोड़ी देर मुझ पर ...
    प्यास तो नही थकान
    अपनी जरूर मिटायेगा|बहुत सुन्दर.

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  6. बहुत जजबाती कविता सलूजा साहब !

    मुंडेर तेरी यही कहानी,

    कूआ सूखा,आँखों में पानी !

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  7. वाह...अशोक जी...कुएं की मुंडेर पर इस से बेहतर रचना शायद ही कभी पढ़ी हो...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  8. अद्भुत पंक्तियाँ ....मन की संवेदना उकेरती हैं.....

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  9. कविता कुएं, मुंडेर और सूखे पत्तों के विम्बों के माध्यम से बड़ी गहन बात की ओर इंगित कर रही है!
    अनुभवी कलम से निकली सहज रचना!
    सादर!

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  10. लोकतंत्र के चौथे खम्बे पर अपने विचारों से अवगत कराएँ ।

    औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता

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  11. @[यादें...] New comment on घने जंगल में ...सूखे कुँएं की टूटी मुंडेर ....
    Inbox
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    अनुपमा पाठक anushil623@rediffmail.com via blogger.bounces.google.com
    9:38 PM (18 hours ago)

    to me
    अनुपमा पाठक has left a new comment on your post "घने जंगल में ...सूखे कुँएं की टूटी मुंडेर ...":

    कविता कुएं, मुंडेर और सूखे पत्तों के विम्बों के माध्यम से बड़ी गहन बात की ओर इंगित कर रही है!
    अनुभवी कलम से निकली सहज रचना!
    सादर!



    Posted by अनुपमा पाठक to यादें... at Tuesday, November 15, 2011 10:08:00 PMअनुपमा पाठक जी की ओर से ये टिप्पणी ...!

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  12. आज तो अलग ही अंदाज़ झलक रहा है ।
    बहुत बढ़िया लिखा है ।

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  13. आपकी रचना ने झकझोर कर रख दिया.हर पंक्ति क्या, हर शब्द ने अंतर्मन को नम कर दिया.आँखों के सामने दृश्य सजीव हो उठे.बहुत ही उच्च कोटि की रचना है. इसे पढ़ने के बाद दिलोदिमाग उन्हीं दृश्यों में उलझ कर रह गया.मन में एक नवजात रचना ने जन्म ले लिया,शायद आपकी रचना का ही अंश है.इसे अपने ब्लॉग में पोस्ट कर रहा हूँ.कृपया आशीर्वाद देने अवश्य पधारें.

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  14. जीवन की हर अवस्था किसी न किसी के काम आती है ... बस समझ की जरूरत चाहिए ....

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  15. अशोक जी,
    अच्छी भावनाओं की उच्चकोटि रचना, पसंद आई...
    मेरे पोस्ट पर स्वागत है,...

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  16. Very beautiful lines! आपने बहुत अच्छा लिखा है! बधाई! आपको शुभकामनाएं !
    आपका हमारे ब्लॉग http://tv100news4u.blogspot.com/ पर हार्दिक स्वागत है!

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  17. गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
    मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

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  18. पहले तो आपको मेरा नमस्कार:)
    आपकी इस रचना का हर शब्द बेहतरीन है.....उस दर्द का भी क्या कहना जो किसी को दीखता ही नहीं और जब दिखता है तो ऐसी रचना ही बनती है......बहुत उत्कृष्ट रचना.
    आपकी नेहा:)

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  19. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 23-02-2012 को यहाँ भी है

    ..भावनाओं के पंख लगा ... तोड़ लाना चाँद नयी पुरानी हलचल में .

    ReplyDelete

मैं आपके दिए स्नेह का शुक्रगुज़ार हूँ !
आप सब खुश और स्वस्थ रहें ........

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