यादें ...यादें ...फिर वो ही , यादें ....
वो चिट्ठी, प्रेम पत्र, अब इतिहास हो गई,वो सारी बातें
चिट्ठी चट कर गया ई -मेल,हों मोबाइल पर मुलाकातें...
न रहा अब सब्र वो ,न रहा अब वो इंतज़ार
हो रही आज इंटरनेट पे अब वो सारी बातें...
कहाँ गए वो दिन सुहाने, वो उमस भरी दोपहरी
न कहीं तारों की गिनती ,न रहीं वो चांदनी रातें...
बीता बचपन् ,गयी जवानी ,आ गया बुढापा
जग तो क्या ,अब अपनों को हम नही सुहाते...
किसको याद तलत,मुकेश और रफ़ी के नगमें
जो याद होते ,आज ब्लॉग पर हम नही सुनाते...
लौटा सकता गर, कभी वो बीता हुआ जमाना
सब लुटा के, "अकेला" लौटा हम उसी को लाते....
अशोक"अकेला" |
मोबाइल से प्रेम की तेज़ हुई रफ्तार
ReplyDeleteइक पल मे इकरार है अगले पल तकरार
... आधुनिकता की सुनामी मे प्रेम और सम्बन्धों की मासूमियत तेज़ी से लुप्त होती जा रही है। लेकिन प्रेम अपने आप मे आज भी अपना महत्व रखता है।
कोई है ... जो लौटा सके डाकिये की आहट को
ReplyDeleteबहोत अच्छे ।
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
बिल्कुल सही ... वो दिन और वो बातें ...सब गुम गये ..
ReplyDeleteइलेक्ट्रोनिक भावनाएँ ,
ReplyDeleteसुख-दुःख हो गया !
फोन-इमेल चिट्ठी
और चौपाल फेसबुक हो गया !
लौटा सकता गर, कभी वो बीता हुआ जमाना सब लुटा के, "अकेला" लौटा हम उसी को लाते....
ReplyDelete.....बिल्कुल सही
आप को भी सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
किसको याद तलत,मुकेश और रफ़ी के नगमें
ReplyDeleteजो याद होते ,आज ब्लॉग पर हम नही सुनाते...
हमें याद हैं...हम इन्हें तकरीबन रोज सुबह सुनते हैं...लेकिन हम आप जैसे लोग हैं ही कितने...भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में तलत सुनने के लिए फुर्सत किसके पास है?
नीरज
:-) नीरज जी ,हमारे पास तो "फुर्सत" ही....है !हा हा हा ....
Deleteसही बात है अब वो इंतजार वो सब्र नही रह
ReplyDeleteगया अब तो सारी बाते मोबाईल पर हो जाती है..
बहूत सुंदर अभिव्यक्ती है...
शॉर्ट मैसेज सर्विस का ज़माना है आ गया,
ReplyDeleteचिट्ठी-पाती-तार-संदेस जग से बिला गया।
आया है मुझे फिर याद वो ज़ालिम ---।
ReplyDeleteमुकेश , रफ़ी और किशोर के गानों की क्या बात थी अशोक जी ।
बहुत खूब ।
कितने बदल गये हैं जीवन के रंग..
ReplyDeleteसहगल का दर्द, रफी की मीठास,
ReplyDeleteमुकेश की पीड़ा,तलत की मखमली प्यास
किशोर की शोखियाँ,चितलकर की मस्तियाँ
मन्ना डे के तराने, सचिन दा की ताने,
हेमंत कुमार का गुंजन, महेंद्र कपूर के भजन,
प्रदीप का आव्हान, मास्टर मदन की तान.
सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फना होंगे
ऐ जानेवफा फिर भी, हमतुम न जुदा होंगे...
निगम जी . आप की नवाजी तारीफों से मैं पूरी तरह सहमत हूँ |ये सभी गायक अपनी मिसाल आप ही हैं |
Deleteआभार आपका |
काश बीते हुए वक्त को लौटाकर लाया जा सकता तो क्या बात होती तब शायद इस दुनिया में कोई अकेला न होता सब कितने खुश होते कितना अच्छा होता वाह बहुत ही सुंदर भावपूर्ण एवं प्रभावशाली रचना सर ....समय मिले कभी तो ज़रूर आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteसराहनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteजीवन के विभिन्न सरोकारों से जुड़ा नया ब्लॉग 'बेसुरम' और उसकी प्रथम पोस्ट 'दलितों की बारी कब आएगी राहुल ...' आपके स्वागत के लिए उत्सुक है। कृपा पूर्वक पधार कर उत्साह-वर्द्धन करें
hm sb bhi yhi chahte hain veer ji! din kbhi nhi laute .........nhi lautenge.
ReplyDeleteunki mithi yaadon ko smete hain na hm.wo kahan jayegi hme chhodkr.boliye..........bs bahut hai unka sahara.
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।
ReplyDeleteअतीत को दुलारता पुकारता ..........चल अकेला चल अकेला तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला ......गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा .......वो भूली दास्ताँ लो फिर याद आ गई नजर के सामने घटा सी छा गई ......कभी तन्हाइयों में यूं तुम्हारी याद आयेगी ........याद न जाए बीते दिनों की ....कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन .......पिंजरे के पंछी ओ तेरा दर्द न जाने कोय ......अच्छी पोस्ट ई -मेल ,फिमेल दोनों ...बे ....फा ....स्नेल मेल से ज़माना खफा ...........
ReplyDeleteलौटा सकता गर, कभी वो बीता हुआ जमाना
ReplyDeleteसब लुटा के,"अकेला" लौटा हम उसी को लाते....
आप 'अकेला' लौटा लाने में कोई
कोर कसर तो छोड़ नही रहे हैं.आपकी
मधुर यादों की अनुभूति हमें अभिभूत
करती है,यार चाचू.
सही कहा ...अब सब कुछ नया हो गया
ReplyDeleteबस हम ही इस ज़माने में पुराने से दिखते हैं ...
चिठ्ठी...पत्र..यादे ..वो किताबो के फूल.. अब कहाँ नज़र आते हैं