कहने वाला तो कह के, यहाँ से गुज़र गया ,
जिसपे गुज़री वो तो, जहाँ से गुज़र गया |
....अकेला के, यहाँ से गुज़र गया जिसपे गुज़से गुज़र गया
जिसपे गुज़री वो तो, जहाँ से गुज़र गया |
....अकेला के, यहाँ से गुज़र गया जिसपे गुज़से गुज़र गया
मैं भी इक.... इंसान हूँ !!!
मैं भी आप की भीड़ का हिस्सा हूँ
मेरी अलग से कोई पहचान नही
मुझे भी लाया गया है ,इस दुनियां में
मैं बिन बुलाया तो मेहमान नही
मेरे अंदर मेरा ,स्वाभिमान बसता है
यह मेरा गौरव है ,कोई अभिमान नही
मेरी भी अपनी इज्ज़त है कीमत है
कोई लावारिस पड़ा ,मैं सामान नही
मैं प्यार लेना और देना जानता हूँ
नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही
लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
इससे बड़ा कोई और... अरमान नही
निश्छल स्नेह ,प्यार की कीमत न समझूँ
इतना नासमझ ,इतना बड़ा मैं नादान नही
लड़ता हूँ "अकेला" ,अपने हक् के लिए
क्यों कि,इंसान हूँ , कोई भगवान नही ||
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अशोक 'अकेला' |
मेरे अंदर मेरा ,स्वाभिमान बसता है
ReplyDeleteयह मेरा गौरव है ,कोई अभिमान नही
सबके मन की सी बात....
ठीक कहा आपने ...सबके मन की सी बात ...
Deleteआभार!
निश्छल स्नेह ,प्यार की कीमत न समझूँ
ReplyDeleteइतना नासमझ ,इतना बड़ा मैं नादान नही
आपका हर शेर उम्दा है ...जीवन के तजुर्बे का वजन है उसमें ...बहुत सुंदर भावनाएं हैं ...
शुभकामनायें ...
शुक्रिया आपका ....
Deleteबहुत बढिया रचना है भाई साहब एक दम से आपकी तरह बिंदास दो टूक .
ReplyDeleteआपकी बिंदास लेखनी को भी सलाम ...
Deleteवीरू भाई राम-राम !
जो भी हूँ, जैसा भी हूँ, मत कहना इसका भान नहीं।
ReplyDeleteयह मेरा गर्व है,अभिमान नही .....
Deleteशुक्रिया !
मैं प्यार लेना और देना जानता हूँ
ReplyDeleteनफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही
लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
इससे बड़ा कोई और... अरमान नही
शब्द कम होंगे इस उत्कृष्ट ग़ज़ल की तारीफ के लिए ये दो शेर तो जबरदस्त कहे कल के चर्चा मंच पर आइयेगा कल आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा होगी बधाई अशोक सलूजा जी
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल २/१०/१२ मंगलवार को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का स्वागत है
ReplyDeleteइस स्नेह,मान-सम्मान के लिए ....
Deleteआपका आभार !
नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही
ReplyDeleteक्या बात है ......
देखे हैं हमने भी जहां इंसान कई
पर आप सा पाक साफ़ इंसा नहीं
इसके लिए क्या कहूँ.....बस गर्दन झुकी जाती है ..
Deleteस्वस्थ रहें !
वाह! बेहतरीन गज़ल... हर एक शेअ'र ज़बरदस्त है....
ReplyDeleteदिल के उठते दर्द की उत्कृष्ट प्रस्तुति,बेहतरीन गजल,,,,अशोक जी,,,
ReplyDeleteलड़ता हूँ "अकेला" ,अपने हक् के लिए
क्यों कि,इंसान हूँ , कोई भगवान नही,,,,वाह,,,क्या बात है,
RECECNT POST: हम देख न सके,,,
वाह बहुत खूब !
ReplyDeleteहर तरफ चल रहा है जब कोई अकेला
फिर ये साथ मिलकर कौन जा रहा है
आदमी चल रहा खुद अपने ही साथ में
भगवान बस भीड़ एक बना रहा है !
आज इंसान की ही ज़रूरत है ... इंसान बने रहना ही बहुत बड़ी बात है .... सुंदर गज़ल ।
ReplyDeleteमेरी भी अपनी इज्ज़त है कीमत है
ReplyDeleteकोई लावारिस पड़ा ,मैं सामान नही
मैं प्यार लेना और देना जानता हूँ
नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही
बहुत सुंदर
क्या कहने
जब भी समय मिले, मेरे नए ब्लाग पर जरूर आएं..
http://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb
जीवन दृष्टि जीवन बोध सभी कुछ लिए है यह रचना .बधाई .
ReplyDeleteram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
bahut badiya
ReplyDeleteआज के वक्त में इंसान इंसान ही बना रहे ...ये ही बहुत बड़ी बात है
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 04-10 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....बड़ापन कोठियों में , बड़प्पन सड़कों पर । .
'लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
ReplyDeleteइससे बड़ा कोई और... अरमान नही'
साधुवाद के सिवा और क्या कहूँ
आभार आपका !
Deleteस्वस्थ रहें!
नफरत से दूर हूँ ,पर अनजान नही... बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब ...बहुत ही उम्दा ग़ज़ल पढ़ी है
ReplyDeleteलूटूं खुशियों का खज़ाना और बाँट दूं -क्या बात है
ReplyDeleteबहुत खूब गजल है..
ReplyDeleteहर शेर पर दाद कबूल करें...
लाजवाब...
शानदार...
:-)
बहुत ख़ूब! वाह!
ReplyDeleteकृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
वाह ... बहुत ही बढिया।
ReplyDelete
ReplyDeleteलूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
इससे बड़ा कोई और... अरमान नही
aise arman ka jawab nahin.
आप सब के प्यार ,स्नेह ओर मान-सम्मान का बहुत-बहुत
ReplyDeleteदिल से आभार व्यक्त करता हूँ ....ओर आप सब को बड़ी
नम्रता-पूर्वक कहना चाहूँगा कि????
यह न कोई गज़ल,न गज़ल का धोखा है....
येही मेरे अंदर की खिड़की है ,और झरोखा है!
अशोक'अकेला'
आप सब खुश ओर स्वस्थ रहें!
लूटूँ खुशियों का खजाना और बांट दूँ
ReplyDeleteइससे बड़ा कोई और... अरमान नही
एक सच्चे इन्सान के लिए इससे बड़ा अरमान नहीं हो सकता।
सकारात्मक चिंतन को प्रदर्शित करती सुंदर रचना।
आभार वर्मा जी !
Deleteखुश रहें!
मुझे आपकी नज्म पढ़कर के रफी का एक गाना याद आ गया ''जाने वालों जरा मुड के देखो मुझे ,एक इंसान हूँ मै तुम्हारी तरह.
ReplyDeleteक्या नज्म लिखी है आपने ,इसकी तारीफ के लिए हर शब्द को कम समझता हूँ.अपनी कैफियत भी कुछ ऐसी ही है.
शुक्रिया आमिर भाई !
Deleteमज़बूत शब्द, मज़बूत अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteआभार भाई जी !
आपने याद किया ...अच्छा लगा !
Deleteखुश और स्वस्थ रहें!
आभार !
बहुत अच्छा !!
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