न जाने कौन सा ज़हर है इन फिज़ाओं में
ख़ुद से भी ऐतबार.उठ गया है अब मेरा ........
...अकेला
मरने वाले के साथ , कौन मरता है
कल दिन में तो , अच्छा-भला था
दिल में था कितने ...जख्म लिए वो
ये गिनती भला...आज कौन करता है |
चलो अच्छा हुआ , मर गया वो......
जिन्दगी भर किन्ही ,सोचों में डूबा रहा
अच्छा हुआ ...आज मर के तर गया वो
जिन्दगी भर , तिल-तिल जलता रहा
अच्छा हुआ ...आज पूरा जल गया वो
चलो अच्छा हुआ , मर गया वो.....
चलो अब , खत्म हुई मुलाकातें
यहाँ पर जितने मुँह ...उतनी बातें
बहुत पहले से ही था , मर गया वो
जिन्दगी से जो ...था डर गया वो
चलो अच्छा हुआ , मर गया वो.....
जिन्दगी जी उसने , जैसे जमीं हो बंजर
पीठ अपनी में ...लेके घोंपा हुआ वो खंजर
जीते-जी हर , अपने से डर गया था वो
सुना है कि, कल रात मर गया वो ......
चलो अच्छा हुआ ,मर गया वो ...!!!
अशोक"अकेला" |
जिन्दगी जी उसने , जैसे जमीं हो बंजर
ReplyDeleteपीठ अपनी में,लेके भोंका हुआ वो खंजर,,,
बहुत सुंदर भावपूर्ण उत्कृष्ट रचना,,,,
recent post : प्यार न भूले,,,
बढिया रचना
ReplyDeleteमृत्यु का दूसरा नाम मुक्ति है .
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति .
सत्य है डॉ.साहब ...
Deleteजीते-जी हर , अपने से डर गया था वो
ReplyDeleteसुना है कि, कल रात मर गया वो ......
बेहतरीन प्रस्तुति
आभार आपका
मृत्यु ही जीवन का असली सत्य है...
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति...
मेरी नयी पोस्ट को भी जरूर पढ़े
सबका अपना सपना जीवन,
ReplyDeleteसबकी फिर भी मृत्यु अकेली..
अटल सत्य तो यह ही है ......
Deleteदिल को छू गयी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअपने अन्दर कई अनछुए जज्बात को समेटे बहुत ही सुन्दर रचना। वाकई काफी हद तक सच भी है। मरने के बाद कौन किसको याद रखता है। जीते जी कहते हैं तुम जियो हजारों साल ,और मर जाये तो कहेंगे ''चलो अच्छा हुआ , मर गया वो......
ReplyDelete:-) खुश रहो आमिर भाई जी ......
Deleteबहुत सुन्दर और गहन रचना....
ReplyDeleteदिल को गहरे छू गयी और व्यथित भी कर गयी...
सादर
अनु
mrutyu ke pahle ki uski jijivisha ko sundar tareeke se ukera hai aapne...behtreen rachna.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (क्या ब्लॉगिंग को सीरियसली लेना चाहिए) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
आभार! शास्त्री जी ....
Delete
ReplyDeleteअशोक भाई सच यही है आदमी ज़िन्दगी जी लेता है फिर सब कुछ रिहर्सल रह जाता है क्या जीना क्या
मरना .
ReplyDeleteअशोक भाई सच यही है आदमी ज़िन्दगी जी लेता है फिर सब कुछ रिहर्सल रह जाता है क्या जीना क्या
मरना .
मृत्यु ही असली मुक्ति है ... जीवन में तो अनगिनत कष्ट हैं .... मन को छू लेने वाली रचना
ReplyDeleteइतने कस्टो से जी रहा था वो..
ReplyDeleteचलो अच्छा हुआ मर गया वो..
संवेदनशील भाव लिए
मन को छू लेने वाली रचना...
@ संगीता जी
Delete@रीना जी
आप का बहुत-बहुत आभार!
जिन्दगी जी उसने , जैसे जमीं हो बंजर
ReplyDeleteपीठ अपनी में ...लेके भोंका हुआ वो खंजर
जीते-जी हर , अपने से डर गया था वो
सुना है कि, कल रात मर गया वो ......
....बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण रचना...बहुत सुंदर
हर दिन, हर पल.... किस तरह इंसान जीता है, मरता है....
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी रचना.....
~सादर !!!
दिलचस्प ...
ReplyDeleteचलो अच्छा हुआ मर गया वो.....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDelete"जिन्दगी भर किन्ही ,सोचों में डूबा रहा
ReplyDeleteअच्छा हुआ ...आज मर के तर गया वो"
मर मर के जीने से अच्छा है जिंदादिली से मर जाना! बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना!
गहरे अहसास ....मन को भीतर तक छू गई आपकी ये रचना ...सादर
ReplyDeleteउत्कृष्ट अभिव्यक्ति.....सशक्त रचना......
ReplyDeleteआपकी यादें अब ज़माने के सामने आ चुकी हैं। सभी भारतवासियों का ब्लॉग ''इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड '' पर आज का ब्लॉग परिचय है ''यादें '' कैसे भूल जाऊं तेरी यादो को, जिन्हे याद करने से तू याद आए॥
ReplyDeleteइंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड
bhabuk karti sundar rachna ---Pranaam !
ReplyDeleteआमिर भाई ,आपने अपने दिल की कर के मानी ...बहुत बचना चाह आपकी इस फराकदिली से जिसका असलियत में
ReplyDeleteमैं हक़दार भी नही पर .....क्या कहूँ ...कैसे कहूँ मेरे पास लफ्ज़ नही ....आपके प्यार,स्नेह और मान-सम्मान के बदले में ?
मैंने इससे पहले अभी आज ही आपको कुछ लिखा था .......कौन सुनना चाहेगा किसीके ..........खैर ....अगर आप इसमें
राज़ी और खुश हैं ...तो मैं आप के इस प्यार के ज़स्बे को अपने दिल से कबूल करता हूँ |
आपकी हर आरजू पूरी हो और आप सेहतमंद रहें ! यह मेरी दुआ है ....आमीन !
waah sir,,bahut badhiya
ReplyDelete
ReplyDeleteचलो अच्छा हुआ , मर गया वो.....
चलो अब , खत्म हुई मुलाकातें
यहाँ पर जितने मुँह ...उतनी बातें
बहुत पहले से ही था , मर गया वो
जिन्दगी से जो ...था डर गया वो
खंजर घोंपा जाता है भाई साहब .भोंक ता मनीष तिवारी सा मानुष है मंत्री पद पाने के बाद भी ढोल बजाता
है बान हारे की बान न जाए ,चाहे मंत्री ही बन जाए .आपकी सहृदय टिप्पणियाँ हमारी जान हैं .लेखन की
शान हैं .
शुक्रिया वीरू भाई जी ,गलती ठीक करवाने के लिए .....बहुत कुछ सीख रहा हूँ आपसे....ऐसे ही सिखाते रहें |
Deleteआभार!
बड़े थे दर्द सहे जमाने के उसने
ReplyDeleteजख्मों संग अश्क बहाए उसने
आज उठा जो जनाजा उसका
बस दुआ में हाथ उठाये हमने .....!!
कृपया अपना पता समस कर दें ताकि आपको पत्रिका जल्द भेज दूँ ....!!
ठीक हीर जी.....
Deleteमैं भेज रहा हूँ ...शुक्रिया !
बहुत दुखद और मार्मिक लेकिन सच्चाई के बहुत करीब रचना है अशोक जी...
ReplyDeleteनीरज
.शुक्रिया आपकी टिप्पणियों का .थकाए रहिये ,खपाए रहिये दिन भर अपने आप को नींद खुद बा खुद आयेगी ,खाब भी लायेगी .
ReplyDeleteram ram bhai
मुखपृष्ठ
http://veerubhai1947.blogspot.in/
शुक्रवार, 30 नवम्बर 2012
जलवायु परिवर्तन की आहट देख सके तो देख
ठीक है वीरू भाई जी .....
Deleteधन्यवाद्!
अपने कीमती समय में! से कुछ समय मेरे ब्लॉग पर बिताने के लिए ....
ReplyDeleteआप सब का बहुत-बहुत आभार !
सब खुश और स्वस्थ रहें!
मर्म स्पर्शीय ... पर मरने की बात क्यों ...
ReplyDeleteजीने की आस जरूरी है दूसरों के लिए ही ...