बहुत दिनों बाद लिख रहा हूँ ...शायद फिर बहुत दिन
बाद लिख पाँऊ....जहाँ जा रहा हूँ ,वहाँ इन्टरनेट की
प्रोब्लम रहती है ....स्वस्थ रहें !
ब्लॉग पर आजकल पतझड़ का मौसम चल रहा है
पर उम्मीद अभी बाकी है ????
हर पतझड़ के बाद हरियाली आती है
लगे दिल पे चोट ,सुकूने ख्वाबो-ख्याली आती है ....,
--अशोक'अकेला'
यह मेरे दिल से निकले
मेरे अहसास हैं ..
अपने चारों तरफ़ देखे
मेरे तजुर्बात है....
जो,जैसा मैं महसूस करता हूँ ...
वो,वैसा ही साधारण सा लिख देता हूँ.......
बाद लिख पाँऊ....जहाँ जा रहा हूँ ,वहाँ इन्टरनेट की
प्रोब्लम रहती है ....स्वस्थ रहें !
ब्लॉग पर आजकल पतझड़ का मौसम चल रहा है
पर उम्मीद अभी बाकी है ????
हर पतझड़ के बाद हरियाली आती है
लगे दिल पे चोट ,सुकूने ख्वाबो-ख्याली आती है ....,
--अशोक'अकेला'
यह मेरे दिल से निकले
मेरे अहसास हैं ..
अपने चारों तरफ़ देखे
मेरे तजुर्बात है....
जो,जैसा मैं महसूस करता हूँ ...
वो,वैसा ही साधारण सा लिख देता हूँ.......
क्या आपने....? महसूस किया..!!!
जब से बच्चे बड़े हुए , बच्चे समझदार हो गये
हम बड़े थे ,छोटे हो गये, लो गुनेहगार हो गये,
जिन्हें पाला-पोसा था , हमने अपने हाथों से
वो तो आज हमारे ही, पालन हार हो गये,
जो कभी लाडले और आज्ञाकारी थे हमारे,
आज उनके ही हम तो, ताबेदार हो गये,
पढ़े-लिखों के आगे हमारे पुराने विचारों का क्या
न वो समझ पायें हमें, उनके आगे लाचार हो गये,
अब तो चलती है उनकी, हम तो सिर्फ़ सुनते हैं
बच्चों के बच्चे भी, हमसे ज्यादा समझदार हो गये ,
वो भी सिखाने लगे हैं बहुत कुछ अब हमको
देखते हैं, उनके अपने ही शिष्टाचार हो गये
आज हो गये हम पुराने, बातें भी दकियानूसी
हम पुराने अखबार के बासी समाचार हो गये,
लद गया रामायण, महाभारत और गीता का ज़माना
आज के बच्चे धूम ३ और कृष के अवतार हो गये,
था वक्त हमारे पास, रिश्तों और बजुर्गों के लिए
आज बच्चों के बच्चे ही, उनके रिश्तेदार हो गये,
.
न देखे सगे-सम्बन्धी ,न दोस्त और न रिश्तेदार
देखें बंगला गाड़ी, बटुआ वैसे ही व्यवहार हो गये,
न रही दिल में इज्ज़त ,न रहा मान-सम्मान
जैसे हो हेसियत ,वैसे ही अब व्योपार हो गये,
थे जवां, था काम, होता था नाम, सुबह और शाम
जवानी ढली , बुढ़ापे ने घर बिठाया, बेकार हो गये
जैसी करनी .वैसी भरनी, था क्या हमारा भी ज़माना
'अकेले' रह गये हम तो आज, फ़सले-बहार हो गये ...
अशोक'अकेला' |
था वक्त हमारे पास, रिश्तों और बजुर्गों के लिए
ReplyDeleteआज बच्चों के बच्चे ही, उनके रिश्तेदार हो गये,
...अक्षरश: सच कहा आपने ..हर पंक्ति अनुभव अाँखो का सच कह रही
आभार
वाह.... आज के दौर का सच तो यही है ....
ReplyDeleteबहुत सच और सटीक
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति .
ReplyDeleteशुभकामनाएं अशोक जी .
वर्तमान समय के यथार्थ का शब्दसः सटीक चित्रण । शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteआज हो गये हम पुराने, बातें भी दकियानूसी
ReplyDeleteहम पुराने अखबार के बासी समाचार हो गये,..
ऐसा बिलकुल नहीं है ... आपके अनुभव की जरूरत हमेशा थी हमेशा रहेगी ... कई बार अभी भी जरूरत आती है बच्चों को ऊँगली की ... आप स्वस्थ रहें ... शुभकामनाओं सहित ...