बहुत वक्त लगा दिया मैंने, ये महसूस करने में,
अब मेरे ज़ज्बातों की कीमत, कुछ भी नही.....
--अशोक'अकेला'
अब मेरे ज़ज्बातों की कीमत, कुछ भी नही.....
--अशोक'अकेला'
मैं बीच मझधार हूँ ,
बड़ा ही लाचार हूँ
कोई न पढ़ें मुझको
मैं वो बासी अखबार हूँ
कोई न डाले गले मुझको
मुरझाया फूलों का हार हूँ
न कोई अब सुनें मुझको
पुराना वो मैं समाचार हूँ
तालाबंधी हो गई जिसकी
मैं वो लुटा कारोबार हूँ
याद करता हूँ , समय सुहाना
भटकता उसमें, मैं बार-बार हूँ
दोनों हाथों से थामें सर को
सोचता,
मैं क्यों हुआ बेकार हूँ
जो प्यार लुटाते हैं,अपना मुझ पर
मैं उनका भी दिल से शुक्रगुजार हूँ
अब प्यार से पाल रहें ,वो मुझको
रहा जिनका मैं कभी पालनहार हूँ
हंस के कहते है सब ग़म न कर
जो है उनमे, वो दिया मैं संस्कार हूँ
वो तो हैं, अब भी मेरे सब अपने
बस मैं ही 'अकेला' अब बेज़ार हूँ |
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अशोक'अकेला'' |
अच्छी ग़ज़ल....
ReplyDeleteनर्म गर्म मिज़ाज वाली....
सादर !
अनुलता
खुश रहिये अनु जी ...
Deleteआभार |
बहुत ही लाजवाब और कमाल की ग़ज़ल होते हुए भी मैं सहमत नहीं हूँ इस स्वीकरोक्ति पर ... आपका अनुभव, गहरी दृष्टि और संबल बहुत ही जरूरी है आज की पीड़ी के लिए ... जिस समाज में नारी और बुजुर्गों का सम्मान नहीं तो राक्षस समाज है ...
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Deleteदिगम्बर जी .....
न ये शिकवा है ,न शिकायत, मेरी किसी से
बस दिल से उठा,देखा-भाला मेरा एक भाव है
आज की पीढ़ी के पास, बस वक्त की कमी है
चारो तरफ बस, ज़माने से मिला एक तनाव है......
--अशोक'अकेला'
स्वस्थ रहें .....
dil se nikle alfaaz...
ReplyDeleteशुक्रिया चोपड़ा जी ...
Deleteस्वस्थ रहिये ....,
बहुत उम्दा ग़ज़ल l भाव बहुत कारुणिक है !
ReplyDeleteन्यू पोस्ट हिमालय ने शीश झुकाया है !
न्यू पोस्ट अनुभूति : लोरी !
आभार आपका ......
Deleteखुश रहें |
भैया जी… दिल से निकली बात हमेशा ही दिल तक पहुँचती है ! आपकी पँक्तियों ने दिल को छू लिया !
ReplyDeleteमगर वर्तमान पीढ़ी के लिए अगर पिछली पीढ़ी का मार्गदर्शन नहीं होगा... तो वह भटक जाएगी। जो लोग इस बात को नहीं मानते हैं.. वो भटक चुके हैं, भटक रहे हैं...
~सादर
अनिता ललित
बहना जी ...
Deleteन ये शिकवा है ,न शिकायत, मेरी किसी से
बस दिल से उठा,देखा-भाला मेरा एक भाव है
आज की पीढ़ी के पास, बस वक्त की कमी है
चारो तरफ बस, ज़माने से मिला एक तनाव है......
--अशोक'अकेला'
स्नेह के लिए आभार ...
खुश और स्वस्थ रहें |
पुराने हों आपके दुश्मन , हमेशा की तरह नवीन हैं आप ! मंगलकामनाएं आपको भाई जी !
ReplyDeleteछोटे भाई का प्यार ....बड़े को खूब भाता है ...स्वस्थ रहें .
Deleteबहुतों के मनोभावों को आपने अभिव्यक्ति दी है।
ReplyDeleteभावप्रवण रचना ।
ये मेरा तजुर्बा है .....जो अपने लिए थोड़ा वक्त और थोड़ा स्नेह मांगता है ...बस!
Deleteआप के स्नेह का आभार वर्मा जी ...
बहुत खूब सर जी
ReplyDeleteखुश रहिये ..पाबला जी .
Deleteकोई न डाले गले मुझको
ReplyDeleteमुरझाया फूलों का हार हूँ
...आज के समय का सबसे बड़ा कटु सत्य...रचना के भाव और एक एक शब्द दिल को छू गए..लेकिन आज के हालात को भूल कर एक बार फिर अपने को अपने लिए जीना होगा. बहुत प्रभावी प्रस्तुति...
आप के स्नेह के लिए आभार शर्मा जी ..स्वस्थ रहें |
Deleteमैं बीच मझधार हूँ ,
ReplyDeleteबड़ा ही लाचार हूँ
कोई न पढ़ें मुझको
मैं वो बासी अखबार हूँ
बहुत सुंदर और भावपूर्ण कविता. अद्भुत अशोक जी. बधाई स्वीकारें.
रचना जी .
ReplyDeleteआप के स्नेह के लिए बहुत आभार ..
स्वस्थ रहें |
अहसासों को महसूस करना...फिर शब्दों में ढालना...कमाल है...
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