
ये ही वक्त है यादों का ,गुज़रे वक्त की बातों का....
--अशोक'अकेला'
अंगूठी...में जड़ा वो जादू का
पत्थर .....
मासूम बचपन का सच .....
गली में खेलते हुए किसी से सुना ..किसी के पास जादू की अंगूठी है
और वो उसमें किसी को भी कुछ भी दिखा सकता है .....
सिर्फ एक आने में .....मुझे भी अपनी माँ को देखने की इच्छा हुई ..
मैंने उसे कभी देखा ही नही था .....मैंने उसको अपना एक आना दिया ..
(जो मेरे दो दिन का बचाया जेब खर्च था )
उसने अपने दोनों हाथों की दिवार मेरी आँखों पर खड़ी करके...और एक टक
उसकी उंगुली और अंगूठे में पकड़ी जादू की अंगूठी की तरफ देखने कहा...
मैंने वैसा ही किया...वो बार-बार पूछ रहा था दिखाई दिया ...और मैं नही ..नही
बोले जा रहा था ....कुछ दिखे तो हाँ कहूँ.........
एक दम से वो बोला .....जो सच्चे मन से याद करेगा ...और जो अपनी माँ
को दिल से प्यार करता होगा बस उसे ही दिखाई देगा ..दुसरे को कभी नही .....
बस.......मुझे एक दम से माँ के दर्शन हो गये...मैं बोल उठा हाँ हाँ माँ दिख गयी...
आप होते तो आप को भी दिख जाता??? .....वो बचपन का जादू !!!!
--अशोक'अकेला'