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तब १९६९ में . |
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और अब २०१२ में |
आज शादी की ४३वीं वर्षगांठ पर ....
यादें ....
यादों... के बवंडर,
दुखों की आंधियां...
एक सदियों पीछे ले जाता है
और एक मीलों आगे....
वैसे तो आगे बड़ने को ही जिन्दगी मानते हैं
पर कभी-कभी पीछे मुड कर देखना भी
बड़ा सुखद लगता है ,अपने छोड़े हुए कदमों
के निशां,जिन रास्तों से हम चल के आये
उन्हें अपने पीछे छोड़ आये ,यादे हमेशा हमारे
साथ-साथ चलती हैं |पर अक्सर हम उन्हें नजर-अंदाज
करके बहुत आगे निकल आते हैं ,उनकी तरफ ध्यान
ही नही जाता |फिर भी चलते-चलते एक नजर पीछे
पड़ ही जाती है ,और हम फिर मुस्करा कर आगे
बड जाते हैं |जब जिन्दगी के रास्तों पर चलते-चलते
थकने लगते हैं ,तब-तब हम पीछे छूटे रास्तों को
पहचानने की कोशिश करने लगते हैं |
पर नजरें अब कमजोर हो चुकी हैं ,शरीर बुढ़ापे की
और बढ़ चला है ,यादाशत धोखा देने लगी है |
अब सब कुछ धुधला चुका है |पर यादें हैं की आती
ही जाती हैं ....यादें...यादें और अब बस यादें ...
"अपने बोलने से मुकरना तो सभी को आता है
अपने लिखे को झुठलाना समझाओ तो जाने"