बस!!! ये ही... सच है .....|
लफ्ज़ कम हैं पास मेरे, एहसास बहुत है
एहतराम करता हूँ ,ये मेरे ख़ास बहुत हैं |
इन्ही के इर्द-गिर्द, मैं अपने ख़्वाब बुनता हूँ
अपने छोटे चमन से ,मैं ये फूल चुनता हूँ |
--अकेला...
सच!!! ये दुनियां मैंने देखी है
इसकी ये अजब कहानी है
जो मैंने आज सुनानी है ...
यहाँ कौन किसी का होता है
यहाँ कौन किसी को रोता है
यहाँ सब का सुखों से नाता है
यहाँ दुःख न किसी को भाता है ...
यहाँ सब के अपने सपने है
दुःख में न कोई अपने हैं ...
न यहाँ... कोई बंधू
न कोई है भ्राता ...
यहाँ सब का सब से
सिर्फ सुखों का है नाता ...
तेरे लिए ,मैं ये कर दूँ
तेरे लिए मैं वो कर दूँ
सुनने में अच्छा लगता है
वक्त आने पे,सब चलता है...
आज जीवन लगता उदास है
अपना न कोई आस-पास है
बहुत प्यार करता था मैं उससे
लगता था बस! यही मेरा खास है...
तुम को भी लगेगा ऐसा ही
जो मुझको आज लगता है
इसी को जीवन कहते है
बस ये ऐसे ही ठगता है ....
आज पढोगे तुम मुझको
होंठों पे मुस्कराहट लाके
ज़ोर से झटकोगे सर को
माथे पे पड़ी लट झटका के ...
इक दिन जीवन की
साँझ भी ढलेगी
न लट लटके गी
न लट झटके गी
बस! मुंडी ये तुम्हारी
इधर-उधर भटके गी...
तब न कोई आस होगा
न कोई पास होगा
अब लगेंगे सब बेगाने
न अब कोई खास होगा ...
जो मैंने देखा
जो मैंने सुना
जो मैंने सहा
वो मैंने कहा
अब सोचो तुम
अब देखो तुम ...
तुम किस के बंधू हो
कौन तुम्हारा है भ्राता
किस -किस से तुम्हारा
सुखों-दुखों का है नाता...
चलते-चलते इक बात बताऊं
आप कहें तो मैं समझाऊँ
कलह-क्लेश को दूर भगा दो
जितने चाहो मीत बना लो...
एहसान कभी न जताएंगे
बुढ़ापे में काम आ जायेंगे...
यहाँ सब की अपनी मर्ज़ी है ,
यहाँ सब का अपनाज़ज्बा है
ये भोगा मेरा अपना ही
जीवन का सच्चा तज़ुर्बा है ||
कहने को यदि सब मिल दौड़े,
ReplyDeleteकल कल बहता पानी है,
किन्तु नहीं सिद्धान्त मानते,
सबकी अलग कहानी है,
बिना शक ! सब की अलग कहानी होगी .....
Deleteफिर भी जानी-पहचानी होगी !!!
आभार!
NICE
ReplyDeleteएहसास बांटते हुए सत्य से साक्षात्कार कराती कविता!
ReplyDeleteसादर!
बस खुद से वास्ता है , किसी और से वास्ता रखा तो बस रोना है
ReplyDeleteखुद से वास्ता ...अकेले रोना ...
Deleteसबसे वास्ता ....तब भी रोना ..?
रोयें आपके दुश्मन ....दोस्त बनाएँ :-)))
शुभकामनाएँ!
यहाँ सब अपनी अपनी राह चलते हैं कोई किसी का नहीं अकेले ही चले जाना है अपने जिंदगी के तजुर्बों और जज्बातों को हमसे सांझा करने का हार्दिक आभार बहुर सुन्दर रचना
ReplyDeleteयहाँ सब के अपने सपने है
ReplyDeleteदुःख में न कोई अपने हैं ...
न यहाँ... कोई बंधू
न कोई है भ्राता ...
यहाँ सब का सब से
सिर्फ सुखों का है नाता ...
अशोक जी,...आपने अपने जीवन का सारा अनुभव,इस रचना के माध्यम लिख दिया,...
और सच्चाई भी यही है,यहाँ कोई किसी का नही होता,सब मतलब के साथी होते है
सुंदर प्रस्तुति,..
my recent post....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
हम्मम्मम
ReplyDeleteहै तो सब सच,मगर न मानने को जी चाहता है....
सादर.
उम्र का तकाज़ा भी यही है ....मत मानिएं!
Deleteखुश रहिये !
भावप्रद रचना सलूजा साहब !
ReplyDeleteबुढापे में मेरे दादा जी, जब कोई चीज उनके मनमाफिक न हो तो एक पेट डायलोग बोला करते थे;
भाई-भतीजा गाँव-गदेरा,
अन्तकाल मा कोई ना तेरा !
भाई जी, बड़े -बुजुर्ग हमेशा सच ही कहते हीं ..
Delete.बस सिर्फ हम ही नही सुनना चाहते.....तब हम ..हम होतें है ||
जिंदगी के अनुभव का खज़ाना भरा है रचना में .
ReplyDeleteयूँ ही बांटते रहें . शुभकामनायें आपको .
आभार आपका !डॉ.साहब !
Deleteइक दिन जीवन की
ReplyDeleteसाँझ भी ढलेगी
न लट लटके गी
न लट झटके गी
बस! मुंडी ये तुम्हारी
इधर-उधर भटके गी...
वाह...वाह...कितनी अच्छी बात कही है आपने...लाजवाब...बहत अच्छी रचना...बधाई स्वीकारें..
आप का दिया मान है ये .....
Deleteशुक्रिया!
लफ्ज़ कम हैं पास मेरे, एहसास बहुत है
ReplyDeleteएहतराम करता हूँ ,ये मेरे ख़ास बहुत हैं |
इन्ही के इर्द-गिर्द, मैं अपने ख़्वाब बुनता हूँ
अपने छोटे चमन से ,मैं ये फूल चुनता हूँ | बेहतरीन और अदभुत अभिवयक्ति....
खुश रहिये !
Deleteतेरे लिए ,मैं ये कर दूँ
ReplyDeleteतेरे लिए मैं वो कर दूँ
सुनने में अच्छा लगता है
वक्त आने पे,सब चलता है...
i experienced it.
जीवन की हकीकत तो यही है ... इस बात कों जितना जल्दी इंसान समझ से उतना सुखी रहता है ...
ReplyDeleteयहाँ सब की अपनी मर्ज़ी है ,
ReplyDeleteयहाँ सब का अपना ज़स्बा है
ये भोगा मेरा अपना ही
जीवन का सच्चा तज़ुर्बा है ||
कहीं जस्बा की जगह भाई साहब 'ज़ज्बा 'तो नहीं .सात तत्व परोस दिया आपने जीवन का .शुक्रिया .मैं अच्छा हूँ .
सावधान :पूर्व -किशोरावस्था में ही पड़ जाता है पोर्न का चस्का
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
यहाँ सब के अपने सपने है
ReplyDeleteदुःख में न कोई अपने हैं ...
न यहाँ... कोई बंधू
न कोई है भ्राता ...
यहाँ सब का सब से
सिर्फ सुखों का है नाता ...
जिंदगी का तजुर्बा यही कहता है.
सब अपने हैं मगर कोई भी अपना नहीं
अब हमारी आँख में एक भी सपना नहीं.
बहुत ही गहराई से निकली हुई रचना, वाह !!!!!
आप सब के मान-सम्मान के लिए बहुत-बहुत आभार!
ReplyDeleteखुश रहिये !
ज़िंदगी के अनुभव का निचोड़ लिखा है ... सत्य को कहती सुंदर भावभिव्यक्ति
ReplyDeleteसत्य हैं जी ....जिंदगी का सार लिख दिया
ReplyDeleteजिन्दगी की सच्चाई शब्दों में उतार दी है आपने ... आभार सहित शुभकामनाएं
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